Saturday, 5 November 2016

परमात्मा से विमुखता ही हमारे सब दुखों का कारण है ....

परमात्मा से विमुखता ही हमारे सब दुखों का कारण है .....
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"कह हनुमंत विपति प्रभु सोई | जब तव सुमिरन भजन न होई ||"
जब तक भगवान का भजन, स्मरण और गहन ध्यान नहीं होता तब तक बड़ी भयंकर पीड़ा रहती है| भगवान के वियोग से बड़ी विपत्ती और कोई हो ही नहीं सकती| सुख शांति और समृद्धि परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं है| जब हम अन्यत्र कहीं और अपनी प्रसन्नता के लिए देखते हैं तो कहीं भी प्रसन्नता नहीं मिलती| हमारी प्रसन्नता सिर्फ रुपये पैसे पर ही निर्भर नहीं है| हमारे पास जो कुछ भी है हमें उससे प्रसन्न रहना चाहिए| जो भी सम्पन्नता/विपन्नता जैसी भी है उसे वैसी ही स्वीकार करनी चाहिए| हमारी चेतना में कोई अभाव नहीं है, अतः पूरी दुनिया हमारी ही है| हमारे पास जो कुछ भी है हम उससे संतुष्ट रहें|
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मैं स्वयँ के प्रति ईमानदार बनने का प्रयास कर रहा हूँ, अतः भगवान ने जो समय दिया है उसे मैं उन्हीं को बापस लौटाना चाहता हूँ| यह समय मेरा नहीं है अपितु उन्हीं से उधार मिला हुआ है जिस का मूलधन ब्याज समेत चुकाना तो पड़ेगा ही| व्यवस्था उसके ब्याज की भी वे ही करेंगे|
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इस विश्व में जो कुछ भी दिखाई देता है वह लम्बाई, चौडाई और मोटाई में गहरा दिखाई देता है| पर जब मैं एक अन्य आयामविहीन दृष्टिकोण से देखता हूँ तो सब कुछ एक चेतना ही प्रतीत होती है| सारी सृष्टि एक चेतना, यानि परमात्मा के मन का विचार मात्र है| मैं यह देह नहीं बल्कि सर्वस्व हूँ|
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सृष्टिकर्ता की कोई कामना नहीं है, वे अपनी सर्वव्यापकता में ही खोये हुए हैं और संतुष्ट है| उनकी सर्वव्यापकता ही मैं हूँ, मैं ही उनका स्वप्न हूँ, और मैं ही उनका विचार हूँ| सब कुछ उन्हीं की सर्वव्यापक चेतना है| मैं उनकी चेतना ही हूँ|
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सार की बात यह है कि परमात्मा से विमुखता ही सब दुखों का कारण है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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