Saturday 13 August 2016

तन्मया .......

तन्मयाः --------
...........
जो उसमें तन्मय होकर उसी में लीन हैं, जिनमें अहंकार का स्थान भगवद्कृपा से भरा हुआ है, ह्रदय में स्वार्थ का लेशमात्र भी स्थान नहीं है, जिनकी वासनाओं का पूर्ण नाश हो चुका है, और ह्रदय में इच्छाओं के लिए कोई स्थान ही नहीं है ...........
.
ऐसे प्राणी स्वयं धरती पर चलते फिरते भगवान हैं| उनका शरीर ही भगवान का सच्चा मंदिर है| वे इस बात से अनभिज्ञ हैं कि कौन उनको क्या कहता है| जिस स्थान पर ऐसी आत्माएँ निवास करती हैं वह स्थान तीर्थ बन जाता है| अपनी दिव्यता के परम क्षेत्र में पहुँच कर वे जो भी करते हैं वही सुकर्म हो जाता है| वे समस्त जगत के कल्याण के लिए शुभ और परमानंद देने वाले हैं|
.
उन्हें देखकर पित्तर आनंदित होते हैं, देवता भी आनन्दोन्मत्त होकर उनके सम्मुख नृत्य करने लगते है, और यह पृथ्वी सनाथ हो उठती है| धन्य है वह कुल, वह परिवार वह देश जहाँ ऐसी महान आत्माएँ जन्म लेती हैं|
.
ॐ नमः शिवाय | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment