मेरी एक उलझन है जिसे मैं व्यक्त नहीं कर सकता ---
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मेरी एक उलझन है जिसे मैं व्यक्त नहीं कर सकता इसलिए केवल आत्म-संतुष्टि के लिए ही इन पंक्तियों को लिखना आरंभ कर दिया। इस उलझन का एकमात्र कारण स्वयं का अज्ञान है। अवचेतन और अचेतन मन में छिपी हुई पूर्व जन्मों की कुछ अज्ञानमय भावनाएं, स्मृतियाँ, व आदतें जब जागृत हो जाती हैं, तब वे ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देती हैं।
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कोई बात नहीं। परमात्मा की समस्त अनंतता व विस्तार मैं ही हूँ। जब परमात्मा को समर्पित होने की भावना और संकल्प है तो इन सीमितताओं से भी ऊपर उठूँगा। इस समय मेरा लक्ष्य है -- "वीतरागता" और "स्थितप्रज्ञता"। और कुछ भी नहीं। फिर आगे केवल परमात्मा है।
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अब पीछे मुड़कर देखने को कुछ भी नहीं है। जो वीतराग और स्थितप्रज्ञ है, वह परमात्मा को उपलब्ध हो गया है। उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है। वह कृतार्थ और कृतकृत्य है। ऐसा व्यक्ति इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में देवता है। उसे पाकर यह पृथ्वी सनाथ और धन्य है।
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ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! शिवोहं शिवोहं !! अहं ब्रह्मास्मि !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ अक्तूबर २०२५
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