किसी ने पूछा है कि मेरा क्या सिद्धांत/सत्संग/नियम व मत है?
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निजात्मा में रमण, निजात्मा से परमप्रेम, और निजात्मा को समर्पण ही मेरा स्वधर्म है। इस से परे मुझे कुछ भी नहीं पता। मुझमें कोई रूप-गुण या सौंदर्य नहीं है। सारा सौंदर्य आत्मा का है।
इस से अतिरिक्त मेरा कोई सिद्धांत/नियम/मत नहीं है। मैं सभी में स्वयं को, व स्वयं में सभी को पाता हूँ। मेरे आराध्य ही यह समस्त विश्व बन गये हैं। मुझे निमित्त बना कर अपनी साधना वे स्वयं करते हैं।
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ओम् तत्सत्!!
कृपा शंकर
11 मार्च 2024
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