भगवान ही भक्ति हैं, भगवान ही भक्त हैं, भगवान ही क्रिया और कर्ता हैं ---
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भूल कर भी कभी साधक, उपासक, भक्त या कर्ता होने का मिथ्या भाव मन में नहीं आना चाहिए| मैं यह बात अपनी निज अनुभूतियों से लिख रहा हूँ, कोई मानसिक कल्पना नहीं है| एक बार ध्यान करते करते एक भाव-जगत में चला गया, जहाँ कोई अदृश्य शक्ति मुझसे पूछ रही थी कि तुम्हें क्या चाहिए| स्वभाविक रूप से मेरा उत्तर था कि आपके प्रेम के अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| मुझे उत्तर मिला कि -- "प्रेम का भी क्या करोगे? मैं स्वयं सदा तुम्हारे समक्ष हूँ, मेरे से अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है|" तत्क्षण मुझे मेरी अभीप्सा (तड़प, अतृप्त प्यास) का उत्तर मिल गया| एक असीम वेदना शांत हुई| अगले ही क्षण मैं फिर बापस सामान्य चेतना में लौट आया| वास्तव में हमें परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए| वे हैं तो सब कुछ हैं, उनके बिना कुछ भी नहीं है|
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वे निरंतर हमारे हृदय में हैं| वे निकटतम से भी अधिक निकट, और प्रियतम से भी अधिक प्रिय हैं| वे सदा हमारे हृदय में हैं| भगवान कहते हैं ---
"ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति| भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया||१८:६||"
" उमा दारु जोषित की नाईं| सबहि नचावत रामु गोसाईं||" (श्रीरामचरितमानस)
हम सब कठपुतलियाँ हैं भगवान के हाथों में| कठपुतली में थोड़ा मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार डाल दिया है, जो हमें दुःखी कर रहा है|
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निमित्त मात्र होने के लिए भगवान कह रहे हैं ---
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ||११:३३||"
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अब और कहने के लिए कुछ भी नहीं बचा है| अंत में थोड़ा अति-अति संक्षेप में प्राणतत्व और परमशिव का अपना अनुभव भी साझा कर लेता हूँ| परमात्मा का मातृ रूप जिसे हम अपनी श्रद्धानुसार कुछ भी नाम दें, वे भगवती आदिशक्ति -- प्राण-तत्व के रूप में हमारी सूक्ष्म देह के मेरुदंड की सुषुम्ना नाड़ी में सभी चक्रों को भेदते हुए विचरण कर रही हैं| जब तक उनका स्पंदन है, तभी तक हमारा जीवन है| वे ही साधक हैं, और वे ही कर्ता हैं| जिनका वे ध्यान कर रही हैं, उनको मैं मेरी श्रद्धा से परमशिव कहता हूँ, आप कुछ भी कहें| परमशिव एक अनुभूति है जो गहरे ध्यान में इस भौतिक देह के बाहर की अनंतता से भी परे होती है| वह अवर्णणीय है|
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सारी साधना वे जगन्माता, भगवती, आदिशक्ति ही स्वयं कर के परमशिव को अर्पित कर रही हैं| हम तो साक्षीमात्र हैं उस यजमान की तरह जिस की उपस्थिति इस यज्ञ में आवश्यक है| और कुछ भी नहीं| वे ही गुरु रूप में प्रकट हुईं और मार्गदर्शन किया| वे ही इस जीवात्मा का विलय परमशिव में एक न एक दिन कर ही देंगी| और कुछ भी नहीं चाहिए| उन परमशिव और जगन्माता को नमन !!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० जनवरी २०२१
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