अब भगवान को क्या चढ़ाऊँ? क्या समर्पित करूँ?
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भगवान को देने के लिए मेरे पास में कुछ भी नहीं है| एक पापों की गठरी है जिसे अनेक जन्मों से ढो रहा हूँ| इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है| मेरे पास कोई गुण नहीं है, सारे अवगुण ही अवगुण हैं| अब कुछ तो चढ़ाना ही पड़ेगा|
अपने सारे अवगुण, दोष और यह पापों की गठरी ही भगवान को अर्पित कर रहा हूँ| और कुछ है ही नहीं| अच्छा या बुरा जो कुछ भी है, अपने आप को ही भगवान को समर्पित कर रहा हूँ| इस देह और इस व्यक्ति से भी अब कोई मोह नहीं रहा है|
अब न तो कोई आराधना संभव है, और न कोई उपासना| जो भी जिस भी स्थिति में है, यह अस्तित्व उन्हीं का है| इसे ही स्वीकार कीजिये| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०२१
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