हरिः, मैं तेरा निरंतर हूँ, और निरंतर तेरा ही रहूँगा| तुम्हें पाने की क्षमता इस समय मुझ में नहीं है तो कोई बात नहीं; एक न एक दिन तुम्हारी कृपा से वह भी अवश्य ही होगी| तुम भी मुझ से दूर अब नहीं रह सकते| तुम्हें पाने की पात्रता मुझ में तुम्हें अविलंब विकसित करनी ही होगी|
.
ब्रह्मतेज -- कोई अवधारणा मात्र नहीं, एक सत्य है जिसको मैं इस समय भी प्रत्यक्ष अनुभूत कर रहा हूँ| पर उसे धारण करने की क्षमता इस समय मुझ में नहीं है| हो सकता है उसके लिए मुझे और जन्म लेने पड़ें| यह वैसे ही है जैसे एक चौबीस वोल्ट के बल्ब में ग्यारह हज़ार वोल्ट की विद्युत जोड़ दी जाये| उस ब्रह्मतेज को इस देह में अवतरित करने का अभी प्रयास करूंगा तो यह देह उसी समय नष्ट हो जायेगी| इस देह में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि उसके तेज को सहन कर सके|
.
इसकी पात्रता के लिए मनसा-वाचा-कर्मणा अखंड ब्रह्मचर्य, सात्विक तपस्वी विरक्त जीवन, व गुरुओं और परमात्मा का आशीर्वाद चाहिए| मैं आध्यात्मिक मार्ग पर बहुत देरी से आया| उस से पूर्व, कुछ पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण म्लेच्छ लोगों, म्लेच्छ वातावरण, व म्लेच्छ देशों में भी रहना और भ्रमण करना पड़ा| जीवन में जो शुचिता रहनी चाहिए थी, वह नहीं थी| लेकिन परमात्मा की कृपा मुझ अकिंचन पर है, और उनसे आश्वासन भी प्राप्त है कि आत्म-तत्व में मेरी प्रतिष्ठा निश्चित रूप से एक न एक दिन अवश्य होगी|
.
सच्चिदानंद तो मिलेंगे ही, आज नहीं तो कल या उसके पश्चात ही सही| मैं आनंदित हूँ| और कुछ भी नहीं चाहिए| उनकी चेतना अन्तःकरण में बनी रहे|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ फरवरी २०२१
No comments:
Post a Comment