Saturday, 21 August 2021

आसुरी जगत का प्रभाव हम पर कैसे होता है? ---

 

आसुरी जगत का प्रभाव हम पर कैसे होता है? ---
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सूक्ष्म जगत की आसुरी और पैशाचिक शक्तियाँ निरंतर अपने शिकार ढूँढ़ती रहती हैं। जिसके भी चित्त में वासनाएँ होती हैं, उस व्यक्ति पर अपना अधिकार करके वे उसे अपना उपकरण बना लेती हैं, और उस से सारे गलत काम करवाती हैं। जितना हमारा गलत और वासनात्मक चिंतन होता है, उतना ही हम उन आसुरी शक्तियों को स्वयं पर अधिकार करने के लिए निमंत्रित करते हैं। भौतिक जगत पूर्ण रूप से सूक्ष्म जगत के अंतर्गत है। सूक्ष्म जगत की अच्छी या बुरी शक्तियाँ ही यहाँ अपना कार्य कर रही हैं। कई बार मनुष्य कोई जघन्य अपराध जैसे ह्त्या, बलात्कार या अन्य कोई दुष्कर्म कर बैठता है; फिर सोचता है कि उसके होते हुए भी यह सब कैसे हुआ, मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता था। पर उसे यह नहीं पता होता कि वह किन्हीं आसुरी शक्तियों का शिकार हो गया था जिन्होंने उस पर अधिकार कर के यह दुष्कर्म करवाया।
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ईश्वर के मार्ग में ही नहीं, अन्य सभी क्षेत्रों में भी हमारी सभी बुराइयों की जड़ हमारे स्वयं का लोभ और अहंकार हैं। लोभ और अहंकार के कारण ही - काम, क्रोध, राग-द्वेष, प्रमाद, व दीर्घसूत्रता आदि जन्म लेते हैं। हमारा लोभ और अहंकार ही सूक्ष्म जगत की आसुरी शक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। प्रेतबाधा एक वास्तविकता है। जिनका मन कमजोर होता है, उन्हें यह प्रेतबाधा अधिक होती है, लेकिन वास्तविक कारण अवचेतन मन में छिपा लोभ और अहंकार ही है।
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अगर हम संसार में कोई अच्छा कार्य करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है कि परमात्मा को निरंतर स्वयं के भीतर प्रवाहित होने दें, उसके उपकरण बन जाएँ। परमात्मा का साथ ही शाश्वत है, अन्य सब नश्वर हैं। परमात्मा को निरंतर अपने चित्त में, अपने अस्तित्व में प्रवाहित होने दें, सब बातों का सार यही है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ अगस्त २०२१
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पुनश्च :--
लोभ और अहंकार ही सबसे बड़ी हिंसा हैं। इनसे मुक्ति ही अहिंसा है, जो हमारा परमधर्म है।
पैशाचिक जगत भी हम पर हावी है। प्राणियों को तड़पा-तड़पा कर मारने से पिशाचों को तृप्ति मिलती है। ये पिशाच ही इतना खून-खराबा और हिंसा करवाते हैं। ये अपार यौन सुख व धन का लोभ देकर अपने शिकारों को अपने वश में रखते हैं। मनुष्य इन का सामना नहीं कर सकता। इनसे मुक्त होने के लिए उसे दैवीय सहायता लेनी ही पड़ती है।
पिशाचों के शिकार हुये मनुष्य नर-पिशाच बन जाते हैं, इसका एक उदाहरण - तालिबानी हिंसा है। इससे अधिक नहीं लिखना चाहता, क्योंकि मेरी बात कोई सुनेगा भी नहीं, पसंद भी नहीं करेगा, और मेरे अनेक शत्रु हो जाएँगे। इतना ही बहुत है। धन्यवाद॥

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