Saturday 21 August 2021

उन के प्रेम में एक बार मग्न होकर तो देखो, जीवन में आनंद ही आनंद होगा ---

 

सारी शाश्वत जिज्ञासाओं का समाधान, सभी प्रश्नों के उत्तर, पूर्ण संतुष्टि, पूर्ण आनंद और सभी समस्याओं का निवारण - सिर्फ और सिर्फ परमात्मा में है। अपनी चेतना को सदा भ्रूमध्य में रखो, और निरंतर परमात्मा का स्मरण करो। अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम उन्हें दीजिये। पूरा मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे। हमारी एकमात्र समस्या ईश्वर की प्राप्ति है, अन्य कोई समस्या नहीं है। गीता में भगवान कहते हैं --
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
अर्थात् - अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ॥
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बहुत अधिक लोगों की भीड़ से अधिक अच्छा तो दो-तीन लोगों का साथ है जो परमात्मा की चेतना में सदा रहते हों। दो लाख लोगों की भीड़ में बड़ी कठिनता से कोई एक व्यक्ति होता है जिसका साध्य परमात्मा हो। अधिकांश लोगों के लिए परमात्मा एक साधन मात्र है, साध्य तो संसार है। कोई अच्छा साथ न मिले तो परमात्मा के साथ अकेले रहना ही अधिक अच्छा है। जहाँ कोई अन्य नहीं है, वही तो "अनन्य योग" है। हमारी भक्ति कहीं व्यभिचारणी न हो।
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महाभारत के अनुशासन पर्व में भगवान श्रीकृष्ण, महाराज युधिष्ठिर को तंडि ऋषि कृत "शिवसहस्त्रनाम" का उपदेश देते हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण को उपमन्यु ऋषि से प्राप्त हुआ था। उसका १६६वां श्लोक है --
"एतद् देवेषु दुष्प्रापं मनुष्येषु न लभ्यते। निर्विघ्ना निश्चला रुद्रे भक्तिर्व्यभिचारिणी॥"
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महाभारत के भीष्म पर्व में कुरुक्षेत्र की रण-भूमि में भगवान श्रीकृष्ण, अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को जो भगवद्गीता का उपदेश देते हैं, उसके १३वें अध्याय का ११वां श्लोक है --
"मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी। विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि॥"
इसे भगवान ने अनन्ययोग कहा है, जिसके लिए अव्यभिचारिणी भक्ति, एकान्तवास के स्वभाव, और (असंस्कृत) जनों के समुदाय में अरुचि का होना बताया है।
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नदी का विलय जब महासागर में हो जाता है, तब नदी का कोई नाम-रूप नहीं रहता, सिर्फ महासागर ही महासागर रहता है। हमारी आयु अनंत है। हम यह देह नहीं, एक शाश्वत आत्मा, और परमात्मा का अंश हैं। यह सृष्टि परमात्मा की अभिव्यक्ति और उनकी लीला है। परमात्मा से परमप्रेम हो जाने पर वे स्वयं ही हमारा ध्यान करते हैं, और अपना बोध कराते हैं। उन के प्रेम में एक बार मग्न होकर तो देखो। जीवन में आनंद ही आनंद होगा
ॐ तत्सत् !!
२१ अगस्त २०२०

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