जब माता ही नहीं होगी तब पुत्र कहाँ से उत्पन्न होंगे? भक्ति, ध्यान और देवासुरी भावजगत ----
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ध्यान-साधना तभी करनी चाहिए जब हृदय में भगवान के प्रति बिना किसी शर्त के भक्ति (Unconditional love for the Divine) जागृत हो जाये| बिना भक्ति के की गई कोई भी ध्यान-साधना, साधक को आसुरी/राक्षसी जगत से जोड़ सकती है, जो स्वयं के लिए ही नहीं, समाज के लिए भी घातक हो सकती है| ऐसा व्यक्ति स्वयं या तो असुर/राक्षस हो जाता है या किसी आसुरी/राक्षसी मत से जुड़ जाता है| आसुरी/राक्षसी मतों का आरंभ ऐसे ही असुर/राक्षस व्यक्तियों ने किया होता है| ये असुर/राक्षस फिर उन सब की हत्या, लूटपाट, अपहरण, बलात्कार, और देवालयों व संस्कृतियों को नष्ट करना आरंभ कर देते हैं जो उनके विचारों के अनुकूल नहीं होते|
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निज चेतना में जब तमोगुण अधिक होता है तब मनुष्य मूढ़ अवस्था में होता है| जब रजोगुण प्रधान होता है तब क्षिप्त या विक्षिप्त अवस्था होती है| सतोगुण प्रधान व्यक्ति एकाग्र या निरुद्ध अवस्था में होता है|
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ध्यान-साधना तभी करनी चाहिए जब हृदय में भगवान के प्रति बिना किसी शर्त के भक्ति (Unconditional love for the Divine) जागृत हो जाये| बिना भक्ति के की गई कोई भी ध्यान-साधना, साधक को आसुरी/राक्षसी जगत से जोड़ सकती है, जो स्वयं के लिए ही नहीं, समाज के लिए भी घातक हो सकती है| ऐसा व्यक्ति स्वयं या तो असुर/राक्षस हो जाता है या किसी आसुरी/राक्षसी मत से जुड़ जाता है| आसुरी/राक्षसी मतों का आरंभ ऐसे ही असुर/राक्षस व्यक्तियों ने किया होता है| ये असुर/राक्षस फिर उन सब की हत्या, लूटपाट, अपहरण, बलात्कार, और देवालयों व संस्कृतियों को नष्ट करना आरंभ कर देते हैं जो उनके विचारों के अनुकूल नहीं होते|
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निज चेतना में जब तमोगुण अधिक होता है तब मनुष्य मूढ़ अवस्था में होता है| जब रजोगुण प्रधान होता है तब क्षिप्त या विक्षिप्त अवस्था होती है| सतोगुण प्रधान व्यक्ति एकाग्र या निरुद्ध अवस्था में होता है|
तमोगुण ..... आलस्य, सुस्ती, कार्य को आगे के लिए टालने की प्रवृति, मूर्खता ईर्ष्या-द्वेष, लोभ, अहंकार और अज्ञान को जन्म देता है| जब अच्छे-बुरे का विचार नहीं रहता है, हर समय प्रबल लोभ, क्रोध, ईर्ष्या-द्वेष, स्वार्थ व कामुकता रूपी अज्ञान और अंधकार ह्रदय पर छाया रहता है, यह तमोगुणी तामसी मूढ़ अवस्था है|
रजोगुण ..... अंतःकरण को अशान्त और चंचल बनाता है| रजोगुणी व्यक्ति का अहंकार भी प्रबल होता है| रजोगुण जब प्रबल होता है तब मन में अनेक तरंगें, वासनायें और महत्वाकांक्षाएँ उठती हैं| ये आकांक्षाएँ यदि पूर्ण नहीं होती तब वह परेशान और दुःखी हो जाता है| यह क्षिप्तावस्था है| इच्छाओं के पूरी होने पर जो प्रसन्नता तनिक समय के लिये मिलती है व जो क्षणिक आनंद प्राप्त होता है वह विक्षिप्त अवस्था है| रजोगुण में भक्ति तो होती है पर वह सकाम भक्ति होती है, निष्काम नहीं|
सतोगुण ..... शान्ति, दिव्य प्रेम, आनन्द और ज्ञान प्रदान करता है| प्रसन्नता और शांति .... एकाग्रता का लक्षण है| तन्मयता निरुद्धता का लक्षण है| भगवान के प्रति अहेतुकी निष्काम (Unconditional) भक्ति सतोगुण से ही संभव है|
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जिन में तमोगुण प्रधान है उन्हें रजोगुण का, जिनमें रजोगुण प्रधान है उन्हें सतोगुण का, और जिन में सतोगुण प्रधान है उन्हें गुणातीत अवस्था में जाने का प्रयास करना चाहिए| यह भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है| गीता में विस्तार से इसका वर्णन है|
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इन पंक्तियों को लिखने का उद्देश्य सिर्फ यही बताना है कि जिन में भगवान के प्रति प्रबल भक्ति नहीं होती, उन्हें प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा व ध्यान-साधना आदि नहीं करने चाहिये| भक्ति माता है और ज्ञान व वैराग्य उसके पुत्र| जब माता ही नहीं होगी तब पुत्र कहाँ से उत्पन्न होंगे?
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२५ फरवरी २०२०
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जिन में तमोगुण प्रधान है उन्हें रजोगुण का, जिनमें रजोगुण प्रधान है उन्हें सतोगुण का, और जिन में सतोगुण प्रधान है उन्हें गुणातीत अवस्था में जाने का प्रयास करना चाहिए| यह भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है| गीता में विस्तार से इसका वर्णन है|
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इन पंक्तियों को लिखने का उद्देश्य सिर्फ यही बताना है कि जिन में भगवान के प्रति प्रबल भक्ति नहीं होती, उन्हें प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा व ध्यान-साधना आदि नहीं करने चाहिये| भक्ति माता है और ज्ञान व वैराग्य उसके पुत्र| जब माता ही नहीं होगी तब पुत्र कहाँ से उत्पन्न होंगे?
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२५ फरवरी २०२०