Thursday 31 October 2019

निज जीवन सतोगुण प्रधान हो .....

निज जीवन सतोगुण प्रधान हो .....
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सतोगुण की प्रधानता निज जीवन में हो, यह गीता में भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है, इसलिए इसका प्रयास निरंतर करते रहना चाहिए| जीवन में भक्ति और ज्ञान, सतोगुण द्वारा ही संभव है| रजोगुण प्रधान व्यक्ति कर्मयोगी तो हो सकता है, पर भक्त और ज्ञानी नहीं| सतोगुण के लिए अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) की शुद्धि आवश्यक है जिस के लिए प्रथम आवश्यकता "आहार शुद्धि" है| हमारा भोजन ही हमारा आहार नहीं है; आँखों का आहार ... दृश्य, कानों का आहार ... श्रवण, नासिका का आहार ... गंध, और मन का आहार ... विचार हैं| इन सब की शुद्धि आवश्यक है तभी जीवन में सतोगुण की प्रधानता होगी|
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साधना में विक्षेप यानि चंचलता और भटकाव का कारण रजोगुण है| जड़ता और प्रमाद यानि आलस्य और दीर्घसूत्रता यानि काम को आगे के लिए टालने की प्रवृत्ति का कारण तमोगुण है| तमोगुण प्रधान व्यक्ति कभी आध्यात्मिक हो ही नहीं सकता| सत्संग द्वारा उसमें कुछ अच्छे गुण तो या सकते हैं, पर आध्यात्म नहीं|
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भक्ति से ही ज्ञान और वैराग्य का जन्म होता है| ज्ञान और वैराग्य सतोगुण के लक्षण हैं| ज्ञान और वैराग्य ही किसी को जीवनमुक्त बना सकते हैं| भगवान श्रीकृष्ण तो नित्यसत्वस्थ यानि नित्य सतोगुण में ही स्थित रहने और उस से भी परे जाने का का आदेश देते हैं .....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्||२:४५||"
निस्त्रैगुण्य होने के लिए भगवान ने यहाँ निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् होने की चार शर्तें भी रख दी हैं| यहाँ हम नित्य सत्वस्थ होने की ही चर्चा कर रहे हैं, अतः इस चर्चा के मूल विषय से भटकेंगे नहीं|
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अगली आवश्यकता अच्छे वातावरण की है जिसका निर्माण या तो हमें स्वयं करना पड़ेगा, या उसकी खोज कर उसमें रहना होगा| इससे आगे की आवश्यकता स्वाध्याय, सत्संग और साधना की है| सबसे बड़ी आवश्यकता हरिःकृपा है जिसके बिना कुछ भी संभव नहीं है|
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भगवान का सदा स्मरण करें, उनके नाम का जप करें, उनका ध्यान करें और उन्हें अपने जीवन का केंद्र-बिन्दु बनाएँ| फिर निश्चित रूप से उनकी कृपा होगी| यही सन्मार्ग है|
भगवान की कृपा थी इसलिए ये चार पंक्तियाँ लिख पाया अन्यथा मुझ अकिंचन की क्या औकात है? कुछ भी नहीं| हे प्रभु, आपकी जय हो, आप ही इस जीवन को जीते रहें, आपकी कृपा बनी रहे| हरिः ॐ तत्सत्! ॐ ॐ ॐ!!
कृपा शंकर
२१ अक्तूबर २०१९

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