Friday, 1 February 2019

अभी भी आशा की एक किरण बाकी है .....

अभी भी आशा की एक किरण बाकी है .....
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जब जागो तभी सबेरा ! गीता का नौवां अध्याय पढ़कर लगता है कि अभी भी उम्मीद बाकी है, कुछ खोया नहीं है| यह बात हमारे जैसे उन सभी लोगों के लिए है जिन्होनें अब तक कोई भजन-बंदगी नहीं की है और सारा जीवन प्रमाद में बिता दिया है| उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है| भगवान उन्हें भी एक मौक़ा और दे रहे हैं| भगवान कहते हैं .....
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् |
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ||९:३०||
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति |
कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ||९:३१||
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः |
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ||९:३२||
किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा |
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ||९:३३||
भावार्थ :--
यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है| अर्थात्‌ उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है||३०||
वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है| हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता ||३१||
हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं||३२||
फिर इसमें कहना ही क्या है, जो पुण्यशील ब्राह्मण था राजर्षि भक्तजन मेरी शरण होकर परम गति को प्राप्त होते हैं| इसलिए तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर ||३३||
मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर| इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ||३४||
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कुछ नहीं किया तो कोई बात नहीं, अब तो भगवान से प्रेम कर ही लेना चाहिए| ऐसा मौक़ा फिर कहाँ मिलेगा?
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!!
कृपा शंकर
३० जनवरी २०१९

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