Monday 30 October 2017

आत्मा की विस्मृति पाप है ....

आत्मा की विस्मृति पाप है, आत्मा में स्थिति पुण्य है, आत्मज्ञान धर्म है, और आत्मानुसंधान सबसे बड़ी साधना है ......
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आत्मा की विस्मृति पाप है, आत्मा में स्थिति पुण्य है, आत्मज्ञान धर्म है, और आत्मानुसंधान सबसे बड़ी साधना है| स्वयं को पापी कहना पाप है क्योंकि यह साक्षात भगवान नारायण को गाली देना है जो ह्रदय में नित्य बिराजमान हैं| सत्य ज्ञान अनंत परम ब्रह्म सच्चिदानंद हम सब के हृदय में नित्य बिराजमान हैं, उनका चैतन्य हमारे ह्रदय में सदा प्रकाशित है|
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गहन ध्यान में दिखाई देने वाले कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का आलोक ही बाहर के तिमिर का नाश कर सकता है| अपने सर्वव्यापी शिवरूप में स्थित होना समष्टि का कल्याण है| हम सब सामान्य मनुष्य नहीं, परमात्मा की अमृतमय अभिव्यक्ति, साक्षात शिव परमब्रह्म हैं| जिस पर भी हमारी दृष्टि पड़े वह तत्क्षण परम प्रेममय हो जाए, जो भी हमें देखे वह भी तत्क्षण धन्य हो जाए| भगवान कहीं आसमान से नहीं उतरने वाले, अपने स्वयं के हृदय में ही हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

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