Friday, 5 May 2017

सुख सम्पति परिवार बड़ाई ....

"सुख सम्पति परिवार बड़ाई | सब परिहरि करिहऊँ सेवकाई ||
ये सब रामभक्ति के बाधक | कहहिं संत तव पद अवराधक ||"

>>> वर्तमान में जैसा वातावरण है उसमें घर पर रहकर साधना करना असम्भव तो नहीं है पर अत्यंत कष्टप्रद है| मेरा तो यह मानना है कि जब एक बार युवावस्था में ईश्वर की एक झलक भी मिल जाये तब उसी समय व्यक्ति को गृहत्याग कर देना चाहिए| बहुत कम ऐसे भाग्यशाली हैं, लाखों में कोई एक ऐसा परिवार होगा जहाँ पति-पत्नी दोनों साधक हों| ऐसा परिवार धन्य हैं| वे घर में रहकर भी विरक्त हैं| ऐसे ही परिवारों में ही महान आत्माएं जन्म लेती हैं|
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आज के समाज का वातावरण अत्यंत प्रदूषित और विषाक्त है जहाँ भक्ति करना असम्भव है| कोई कर सकता है तो वह धन्य है|
फिर भी जो घर-परिवार में रहना चाहें उनके लिए कुछ बातें कहना चाहूंगा ....
(1) इस योग्य बनें कि अपना जीवन निर्वाह स्वयं कर सकें, किसी के आगे हाथ फैलाना नहीं पड़े|
(2) जब तक माता-पिता जीवित हैं उनकी सेवा-सुश्रुषा करें| उन्हें कोई कष्ट ना हो| पर उनकी कोई गलत बात नहीं मानें|
(3) कोई अपने ही विचारों की आध्यात्मिक प्रकृति की लडकी मिले तो विवाह करो अन्यथा नहीं| पत्नी हमारे जीवन में सहायक हो, बाधक नहीं|
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आगे का मार्गदर्शन भगवान स्वयं करेंगे|
ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
May 5, 2016.

1 comment:

  1. "सुख सम्पति परिवार बड़ाई| सब परिहरि करिहऊँ सेवकाई||
    ये सब रामभक्ति के बाधक|कहहिं संत तव पद अवराधक||"

    मैं इसे पूर्णरूपेण मानता हूँ| सन १९८५ में मैं भी गृह त्याग कर सन्यासी बनना चाहता था| मैंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र हेतु सेवाशर्तों के अनुसार तीन माह का नोटिस भी दे दिया था| मेरी कम्पनी ने जहां मैं नौकरी करता था मुझे तीन माह के लिए कम्पनी कार्य हेतु सिंगापूर, चीन, जापान और अमेरिका के प्रवास पर भेज दिया और मेरी इतनी दिमाग की धुलाई की कि मुझे त्याग पत्र बापस लेना पडा| मुझे चार माह से अधिक विदेश में ही रखा, भारत ही नहीं आने दिया| फिर सन १९८७ में मैंने फिर सन्यासी बनने के लिए प्रयास किया पर वहाँ मेरी स्वयं की दुर्बलताएं सामने आ गईं| यदि में तीन माह के मेरे वेतन का मोह त्याग देता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती| पर व्यक्ति अपनी कमियों को छिपाने के लिए तरह तरह के तर्क और बहाने ढूंढ लेता है| मुझे विफलताएं मिलीं सिर्फ इसीलिए कि मैं मोह को नहीं छोड़ पाया|

    तब मैंने यह अनुभूत किया कि सन्यास एक स्वभाविक घटना है जो जीवन में घटित होती है, न कि संकल्प| यही सोचता रहा कि जब दुबारा वैराग्य आ जाएगा तो पीछे मुड़कर नहीं देखूँगा| पर वैसा वैराग्य दुबारा आया ही नहीं| ऐसी घटना जीवन एक-दो बार ही घटित होती है उसी समय व्यक्ति को कठोर निर्णय ले लेना चाहिए|

    सन २००३ मैं किसी बात पर नियोक्ताओं से नाराज होकर घर आ गया और दो वर्ष तक अवैतनिक अवकाश पर रहा| फिर त्यागपत्र ही भिजवा दिया| घरवाले मुझे मूर्ख समझते है और कहते है कि तुझे "माया मिली ना राम|" फिर बापस मैंने किसी कि नौकरी की ही नहीं|

    मेरे एक अति घनिष्ठ मित्र है १९६८ बेच के IAS सेवानिवृत अधिकारी| पत्नी उनको छोड़ कर चली गयी थी| धार्मिक साहित्य पढ़कर वैराग्य हुआ और वैरागी बन गए| अपनी करोड़ों की भूमि में गुरुकुल चलाने की योजना बनाई| पर समय के प्रभाव से वहीं बैठे हैं| बच्चे उनके अमेरिका में बस गये हैं| बुढ़ापे में एक युवा स्त्री से विवाह कर लिया और अपनी अनमोल संपत्ति के मोह से कहीं नहीं जाते| विद्वता और तर्क शक्ति उनकी इतनी प्रखर है कि कोई उनके सामने टिक नहीं सकता| सिर्फ संपत्ति के मोह के सामने उनका वैराग्य विफल हो गया|

    मेरे एक परम मित्र हैं जो उड़ीसा में रहते हैं| सरकारी सेवा से निवृत होने से पूर्व अपने परिवार की व्यवस्था कर दी और स्वयं के लिए एक आश्रम बनवा लिया| सेवा निवृत होते ही वैरागी साधू बन गए| पूर्वाश्रम की उनकी पत्नी और पुत्रवधु ने उनकी नाक में दम कर रखा है| वे चाहती हैं कि महात्मा जी अपनी संपत्ति उनके नाम कर दें| कहीं किसी चेले को ना दे दें| पर संपत्ति के मोह से वे कष्ट पाते हुए भी वहीँ जमे हुए हैं|

    मेरे एक और परम मित्र जो अत्यंत समृद्ध परिवार से हैं और प्रखर अर्थशास्त्री रहे हैं| उनको भी वैराग्य हो गया| पर विधिवत रूप से उन्होंने किसे भी सम्प्रदाय की दीक्षा नहीं ली| आश्रम बना कर स्वतंत्र रहते है| खूब साधना करते है और अनेक बच्चों को खूब धार्मिक संस्कार दिए हैं| उनके द्वारा तैयार किये हुए बच्चे सचमुच भारत के भविष्य हैं|

    वर्त्तमान में जैसा वातावरण है उसमें घर पर रहकर साधना करना असम्भव नहीं तो अत्यंत कष्टप्रद है| एक बार युवावस्था में ईश्वर की एक झलक मिल जाये उसी समय व्यक्ति को गृहत्याग कर देना चाहिए| बहुत कम ऐसे भाग्यशाली हैं, लाखों में कोई एक ऐसा परिवार होगा जहाँ पति-पत्नी दोनों साधक हों| ऐसा परिवार धन्य हैं| वे घर में रहकर भी विरक्त हैं| ऐसे ही परिवारों में ही महान आत्माएं जन्म लेती हैं| आज के समाज का वातावरण अत्यंत प्रदूषित और विषाक्त है जहाँ भक्ति करना असम्भव है| कोई कर सकता है तो वह धन्य है|

    "सुख सम्पति परिवार बड़ाई| सब परिहरि करिहऊँ सेवकाई||
    ये सब रामभक्ति के बाधक|कहहिं संत तव पद अवराधक||"

    जय श्री राम|

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