Monday 29 May 2017

कश्मीर की समस्या और एक सामान्य नागरिक की सोच ......

कश्मीर की समस्या और एक सामान्य नागरिक की सोच ......
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कुछ दिनों पहिले मैनें दो लेख लिखे थे कि कश्मीर की समस्या राजनीतिक नहीं बल्कि मज़हबी है| इसका समाधान हो सकता है पर चीन, अमेरिका और पश्चिमी देश कभी भी नहीं चाहेंगे कि कश्मीर की समस्या का कोई समाधान हो, क्योंकि इसके पीछे उनके व्यवसायिक और राजनीतिक हित हैं| कश्मीर की समस्या भी वास्तव में नेहरू को मोहरा बनाकर ब्रिटेन और अमेरिका ने ही उत्पन्न की है, ऐसी मेरी सोच है|
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कश्मीर की समस्या ब्रिटेन ने अपने ही ख़ास आदमी हमारे प्रथम प्रधान मंत्री श्री नेहरु जी के माध्यम से उत्पन्न की जिनको उन्होंने सत्ता सौंपी थी| नेहरु जी की कमजोरी एक सुन्दर ब्रिटिश महिला के प्रति थी, और अन्य सुन्दर महिलाओं के प्रति भी जिसका अनुचित लाभ ब्रिटेन ने भरपूर उठाया और सता हस्तांतरण के पश्चात भी भारत में वही हुआ जो ब्रिटेन चाहता था|
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अमेरिका का स्वार्थ यह था की वह पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित में अपना सैनिक अड्डा स्थापित करना चाहता था जहाँ से वह चीन और मध्य एशिया पर दृष्टि रख सके| वह सैनिक अड्डा उसने स्थापित कभी का कर भी लिया है|
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चीन का स्वार्थ एक तो यह था कि कश्मीरी लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र पर उसका पूर्ण अधिकार हो ताकि सिंकियांग और तिब्बत के मध्य दूरी न रहे| और दूसरा यह कि पाक अधिकृत कश्मीर के माध्यम से पकिस्तान होते हुए वह अरब सागर तक पहुँच सके|
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जब १९४८ में जब भारतीय सेना जीतने लगी तब ब्रिटेन ने नेहरू जी को बहला-फुसला कर मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में भिजवाया और जनमत संग्रह का फैसला करवा दिया| जनमत संग्रह का निर्णय सशर्त था कि पहले पकिस्तान पूरा कश्मीर खाली करेगा, उस पर भारत का अधिकार होगा, और फिर जनमत संग्रह संयुक्त राष्ट्र संघ की निगरानी में होगा| अगर पाकिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर खाली करता तो अमेरिका को गिलगिट से अपना सैनिक अड्डा भी हटाना पड़ता जो अमेरिकी हितों के विरुद्ध था| अतः अमेरिका ने सदा पकिस्तान का साथ दिया और भारत को डराने धमकाने के लिए पाकिस्तान का प्रयोग किया| पाकिस्तान ने भारत से जो युद्ध किये हैं वे सब अमेरिका की सहमती और सहायता से ही किये हैं|
नेहरू जी को भारतीय सेना से अधिक अंग्रेजों यानि ब्रिटेन पर भरोसा था, अतः सदा उन्होंने वही किया जो ब्रिटेन चाहता था| अनुच्छेद ३७० को संविधान में जोड़ना भी उनकी एक भयानक गलती थी|
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कश्मीर में अल्पसंख्यक सुविधाएँ सिर्फ मुसलमानों को प्राप्त हैं, हिदुओं को नहीं जो वास्तव में अल्प-संख्यक हैं| कश्मीर को अब छः टुकड़ों में बाँट देना चाहिए ..... (१) जम्मू, (२) लद्दाख, (३) कश्मीर घाटी, (४) कश्मीर घाटी से बाहर का क्षेत्र, (५) पाक अधिकृत कश्मीर और (६) चीन अधिकृत कश्मीर| हिन्दुओं और बौद्धों को अल्प-संख्यक सुविधाएँ दी जाएँ|
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जब तक पकिस्तान और चीन, पाक-अधिकृत कश्मीर को खाली नहीं करते तब तक कश्मीर में जनमत संग्रह नहीं हो सकता| चीन और पाक कभी भी अधिकृत क्षेत्र को खाली नहीं करेंगे|
वैसे जनमत संग्रह हो भी जाए तो वह भारत के ही पक्ष में होगा क्योंकि पूरे कश्मीर में बहुमत शिया मुसलमानों का है जो पाकिस्तान विरोधी हैं| सिर्फ कश्मीर घाटी में ही सुन्नी बहुमत है|
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अब भारत सरकार कानूनी रूप से यह तय करे कि कौन अल्प-संख्यक है और कौन बहु-संख्यक| धारा ३७० समाप्त कर सेवानिवृत सैनिको और अन्य सभी समर्थवान भारतीयों को वहाँ बसाया जाए| कश्मीरी हिन्दुओं को एक सुरक्षित क्षेत्र दिया जाये| कश्मीर को विशेष आर्थिक पैकेज न दिए जाएँ| अपना कमाओ और खाओ| तुष्टिकरण की नीति समाप्त हो| अंततः पकिस्तान को तो तोड़ना ही पड़ेगा जो एक दुष्ट राष्ट्र है|
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मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूँ, एक सामान्य नागरिक हूँ| जैसी मेरी बुद्धि थी और जैसा मुझे समझ में आया वैसा लेख मैनें लिख दिया| बड़े बड़े राजनेता और विशेषज्ञ हैं जो इस मामले को सुलाझायेगे| बाकी जैसी प्रभु की इच्छा|
अब इस विषय पर और कुछ लिखने के लिए मेरे पास नहीं है| आगे और नहीं लिखूंगा|
इति| ॐ ॐ ॐ ||

२९ मई २०१७

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