मेरे से बाहर कोई समस्या नहीं है, सारी समस्या मैं स्वयं हूँ .....
यह समस्या अति विकट है| हे कर्णधार, इस समस्या का हल तुम्ही हो |
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"दीनदयाल सुने जब ते, तब ते मन में कछु ऐसी बसी है |
तेरो कहाये कै जाऊँ कहाँ, अब तेरे ही नाम की फ़ेंट कसी है ||
तेरो ही आसरो एक मलूक, नहीं प्रभु सो कोऊ दूजो जसी है |
ए हो मुरारी ! पुकारि कहूँ, मेरी नहीं, अब तेरी हँसी है ||"
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सभी समस्याएँ प्राणिक (Vital) और मानसिक (Mental) धरातल पर उत्पन्न होती हैं| उन्हें वहीं पर निपटाना होगा| पर वहाँ माया का साम्राज्य इतना प्रबल है जिसे भेदना हमारे लिए बिना हरिकृपा के असम्भव है|
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हमारी एकमात्र समस्या है ..... परमात्मा से पृथकता|
यह बिना शरणागति और समर्पण के दूर नहीं होगी| इस विषय पर बहुत अधिक लिख चुका हूँ, अब और लिखने की ऊर्जा नहीं है| परमात्मा का ध्यान और चिंतन भी सत्संग है| हमें चाहिए सिर्फ सत्संग, सत्संग और सत्संग|
यह निरंतर सत्संग मिल जाए तो सारी समस्याएँ सृष्टिकर्ता परमात्मा की हो जायेंगी|
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हे प्रभु, तुम्हारे चरणों में पूर्ण प्रीति बनी रहे इसके अतिरिक्त अब अन्य कोई इच्छा नहीं है| तुम्हें निवेदन तो कर दिया है पर यह अर्जी भी कभी ना कभी तो स्वीकार करनी ही पड़ेगी| 'आशा' पिशाचिन नहीं पालना चाहता, अतः ना भी करें तो कोई बात नहीं|
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हे प्रभु, आप के भक्तों की आप से कोई पृथकता नहीं हो, आप के वे पूर्ण उपकरण हों, और आपसे पृथक वे अन्य कुछ भी ना हों|
जिस पर भी उन की दृष्टी पड़े वह परम प्रेममय हो निहाल हो जाये| वे जहाँ भी जाएँ वहीं आपके प्रेम की चेतना सब में जागृत हो जाये| आपकी उपस्थिति से जड़ वस्तु भी चैतन्य हो जाये|
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आप के भक्तों में किसी भी तरह का कोई आवेग ..... भूख, प्यास, विषाद, भ्रम, बुढ़ापा और मृत्यु ना हो| वे सब प्रकार की अवस्थाओं ---- जन्म, स्थिति, वृद्धि, परिवर्तन, क्षय और विनाश से परे हों|
हम सब आपके साथ एक हों और आपके पूर्ण पुत्र हों| आपकी जय हो|
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>>>> हम साधना करते हैं, मंत्रजाप करते हैं, पर हमें सिद्धि नहीं मिलती इसका मुख्य कारण है.... असत्यवादन| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है और किसी भी स्तर पर मन्त्रजाप का फल नहीं मिलता| इस कारण कोई साधना सफल नहीं होती|
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>>>> सत्य और असत्य के अंतर को शास्त्रों में, और विभिन्न मनीषियों ने स्पष्टता से परिभाषित किया है| सत्य बोलो पर अप्रिय सत्य से मौन अच्छा है| प्राणरक्षा और धर्मरक्षा के लिए बोला गया असत्य भी सत्य है, और जिस से किसी की प्राणहानि और धर्म की ग्लानी हो वह सत्य भी असत्य है|
यह समस्या अति विकट है| हे कर्णधार, इस समस्या का हल तुम्ही हो |
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"दीनदयाल सुने जब ते, तब ते मन में कछु ऐसी बसी है |
तेरो कहाये कै जाऊँ कहाँ, अब तेरे ही नाम की फ़ेंट कसी है ||
तेरो ही आसरो एक मलूक, नहीं प्रभु सो कोऊ दूजो जसी है |
ए हो मुरारी ! पुकारि कहूँ, मेरी नहीं, अब तेरी हँसी है ||"
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सभी समस्याएँ प्राणिक (Vital) और मानसिक (Mental) धरातल पर उत्पन्न होती हैं| उन्हें वहीं पर निपटाना होगा| पर वहाँ माया का साम्राज्य इतना प्रबल है जिसे भेदना हमारे लिए बिना हरिकृपा के असम्भव है|
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हमारी एकमात्र समस्या है ..... परमात्मा से पृथकता|
यह बिना शरणागति और समर्पण के दूर नहीं होगी| इस विषय पर बहुत अधिक लिख चुका हूँ, अब और लिखने की ऊर्जा नहीं है| परमात्मा का ध्यान और चिंतन भी सत्संग है| हमें चाहिए सिर्फ सत्संग, सत्संग और सत्संग|
यह निरंतर सत्संग मिल जाए तो सारी समस्याएँ सृष्टिकर्ता परमात्मा की हो जायेंगी|
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हे प्रभु, तुम्हारे चरणों में पूर्ण प्रीति बनी रहे इसके अतिरिक्त अब अन्य कोई इच्छा नहीं है| तुम्हें निवेदन तो कर दिया है पर यह अर्जी भी कभी ना कभी तो स्वीकार करनी ही पड़ेगी| 'आशा' पिशाचिन नहीं पालना चाहता, अतः ना भी करें तो कोई बात नहीं|
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हे प्रभु, आप के भक्तों की आप से कोई पृथकता नहीं हो, आप के वे पूर्ण उपकरण हों, और आपसे पृथक वे अन्य कुछ भी ना हों|
जिस पर भी उन की दृष्टी पड़े वह परम प्रेममय हो निहाल हो जाये| वे जहाँ भी जाएँ वहीं आपके प्रेम की चेतना सब में जागृत हो जाये| आपकी उपस्थिति से जड़ वस्तु भी चैतन्य हो जाये|
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आप के भक्तों में किसी भी तरह का कोई आवेग ..... भूख, प्यास, विषाद, भ्रम, बुढ़ापा और मृत्यु ना हो| वे सब प्रकार की अवस्थाओं ---- जन्म, स्थिति, वृद्धि, परिवर्तन, क्षय और विनाश से परे हों|
हम सब आपके साथ एक हों और आपके पूर्ण पुत्र हों| आपकी जय हो|
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>>>> हम साधना करते हैं, मंत्रजाप करते हैं, पर हमें सिद्धि नहीं मिलती इसका मुख्य कारण है.... असत्यवादन| झूठ बोलने से वाणी दग्ध हो जाती है और किसी भी स्तर पर मन्त्रजाप का फल नहीं मिलता| इस कारण कोई साधना सफल नहीं होती|
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>>>> सत्य और असत्य के अंतर को शास्त्रों में, और विभिन्न मनीषियों ने स्पष्टता से परिभाषित किया है| सत्य बोलो पर अप्रिय सत्य से मौन अच्छा है| प्राणरक्षा और धर्मरक्षा के लिए बोला गया असत्य भी सत्य है, और जिस से किसी की प्राणहानि और धर्म की ग्लानी हो वह सत्य भी असत्य है|
>>>> जिस की हम निंदा करते हैं उसके अवगुण हमारे में भी आ जाते हैं|
जो लोग झूठे होते हैं, चोरी करते हैं, और दुराचारी होते हैं, वे चाहे जितना मंत्रजाप करें, और चाहे जितनी साधना करें उन्हें कभी कोई सिद्धि नहीं मिलेगी|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२९ मई 2016
जो लोग झूठे होते हैं, चोरी करते हैं, और दुराचारी होते हैं, वे चाहे जितना मंत्रजाप करें, और चाहे जितनी साधना करें उन्हें कभी कोई सिद्धि नहीं मिलेगी|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२९ मई 2016
हम तमोगुण से रजोगुण में, रजोगुण से सतोगुण में, और सतोगुण से त्रिगुणातीत हों| जीव से शिव बनें, नर से नारायण बनें, और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति बनें|
ReplyDeleteशिवोहं शिवोहं शिवोहं | शिव शिव शिव | ॐ ॐ ॐ ||