Wednesday 24 August 2016

महाविनाश की दिशा ............

महाविनाश की दिशा ............
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वर्तमान समय में कालचक्र जिस दिशा में घूम रहा है वह महाविनाश की दिशा है|
मनुष्यों में लोभ, घृणा, मोह, अहंकार और स्वार्थ बहुत अधिक बढ़ गया है|
मूक निरीह प्राणियों की जीभ के स्वाद के लिए तड़पा तड़पा कर क्रूरता से ह्त्या और अत्याचार भी मनुष्य जाति का एक पैशाचिक कृत्य है जिसे प्रकृति अब और अधिक सहन नहीं कर पाएगी|
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मतान्धता और पारस्परिक घृणा के कारण हो रहे नरसंहार और अत्याचार मनुष्य जाति का महाविनाश कर देंगे| इस महाविनाश से सिर्फ भगवान ही बचा सकते हैं|
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इस समय राष्ट्र को धर्मरक्षा के लिए एक ब्रह्मत्व की आवश्यकता है| जब ब्रह्मत्व जागृत होगा तो क्षातृत्व और अन्य गुण भी स्वतः ही प्रकट होंगे| वर्तमान घटना क्रमों की पृष्ठभूमि में आसुरी शक्तियां हैं| राक्षसों, असुरों और पिशाचों से मनुष्य अपने बल पर नहीं लड़ सकते| उन्हें दैवीय शक्तियों का आश्रय और सहयोग लेना ही पड़ेगा|
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इस कालखंड में वैसे भी मनुष्य जाति विफल ही रही है अपने उद्देश्य में| वर्तमान सभ्यता विनाश की ओर जा रही है| मनुष्यों द्वारा अहंकार तृप्ति के लिए किये जा रहे धर्मविरुद्ध कार्य असुरों और राक्षसों के ही हैं| सनातन धर्म पर हो रहे मर्मान्तक प्रहारों से हमें अपने अस्तित्व की रक्षा आत्म बल जगाकर करनी ही होगी और साथ साथ ईश्वर की शरण भी लेनी होगी|
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असत्य और अन्धकार की शक्तियों का महाविनाश तो सुनिश्चित है ही, और उसके पश्चात सम्पूर्ण अखंड भारत में धर्म की पुनर्स्थापना होना भी सुनिश्चित है|
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ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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