साधना का मार्ग कठिनाइयों ही कठिनाइयों से भरा है|
इसका तुरंत प्राथमिक उपचार यह है .....
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(1) अपने परिवेश को बदलो| जिन परिस्थितियों और जैसे वातावरण में आप रह रहे हैं, उसे बदलो| कुसंग का त्याग करो और सत्संग करो| चित्त में निरंतर परमात्मा का स्मरण प्रयासपूर्वक करते रहो| यही सबसे बड़ा सत्संग है|
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(2) कर्ताभाव का त्याग करो| सदा यह ध्यान रखो कि गुरु और परमात्मा स्वयं आपके माध्यम से साधना कर रहे हैं| सारा श्रेय और सारा फल उन्हीं को अर्पित कर दो| ध्यान के समय ह्रदय में अपने इष्ट का और सहस्त्रार में गुरु का बोध निरंतर रखो| अपनी सारी कठिनाइयाँ उन्ही को सौंप दो| कोई कामना न रहे|
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अतःकरण का शुद्ध हो जाना ही परमेश्वर की प्रसन्नता है| अन्तःकरण की शुद्धता ही सबसे बड़ी सिद्धि है|
इसका तुरंत प्राथमिक उपचार यह है .....
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(1) अपने परिवेश को बदलो| जिन परिस्थितियों और जैसे वातावरण में आप रह रहे हैं, उसे बदलो| कुसंग का त्याग करो और सत्संग करो| चित्त में निरंतर परमात्मा का स्मरण प्रयासपूर्वक करते रहो| यही सबसे बड़ा सत्संग है|
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(2) कर्ताभाव का त्याग करो| सदा यह ध्यान रखो कि गुरु और परमात्मा स्वयं आपके माध्यम से साधना कर रहे हैं| सारा श्रेय और सारा फल उन्हीं को अर्पित कर दो| ध्यान के समय ह्रदय में अपने इष्ट का और सहस्त्रार में गुरु का बोध निरंतर रखो| अपनी सारी कठिनाइयाँ उन्ही को सौंप दो| कोई कामना न रहे|
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अतःकरण का शुद्ध हो जाना ही परमेश्वर की प्रसन्नता है| अन्तःकरण की शुद्धता ही सबसे बड़ी सिद्धि है|
ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
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