Monday 27 June 2016

क्या मैं यह देह हूँ ? क्या पूर्ण समष्टि ही मेरी देह नहीं है ? ....

क्या मैं यह देह हूँ ? क्या पूर्ण समष्टि ही मेरी देह नहीं है ? .....
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जब मैं इस तथाकथित मेरी देह को देखता हूँ तब स्पष्ट रूप से यह बोध होता है कि यह मूल रूप से एक ऊर्जा-खंड है, जो पहले अणुओं का एक समूह बनी, फिर पदार्थ बनी| फिर इसके साथ अन्य सूक्ष्मतर तत्वों से निर्मित मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार आदि जुड़े| इस ऊर्जा-खंड के अणु निरंतर परिवर्तनशील हैं|
इस ऊर्जा-खंड ने कैसे जन्म लिया और धीरे धीरे यह कैसे विकसित हुआ इसके पीछे परमात्मा का एक संकल्प और विचार है| ये सब अणु और सब तत्व भी एक दिन विखंडित हो जायेंगे| पर मेरा अस्तित्व फिर भी बना रहेगा|
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अब यह प्रश्न उठता है कि मैं कौन हूँ ? क्या मैं यह शरीर हूँ ?
>>>>> निश्चित रूप से मैं यह शरीर रूपी-ऊर्जा खंड नहीं हूँ <<<<<
फिर मैं कौन हूँ ?
यह सत्य है कि मैं परमात्मा के मन का एक विचार हूँ जिसे परमात्मा ने पूर्ण स्वतंत्रता दी है|
>>>> मैं परमात्मा का अमृत पुत्र हूँ| मैं और मेरे पिता एक हैं| मैं यह देह नहीं हूँ, बल्कि परमात्मा का एक संकल्प हूँ| परमात्मा की अनंतता मेरी ही अनंतता है, उनका प्रेम ही मेरा भी प्रेम है, और उनकी पूर्णता मेरी भी पूर्णता है| <<<<<
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"मैं" अपरिछिन्न और अपरोक्ष केवल एक हूँ, मेरे सिवाय अन्य किसी का अस्तित्व नहीं है| जो ब्रह्म है वह ही इस सम्पूर्णता के साथ व्यक्त हुआ है| मैं उसके साथ एक हूँ अतः निश्चित रूप से मैं यह देह नहीं अपितु प्रत्यगात्मा विकार-रहित ब्रह्म हूँ| मैं धर्म और अधर्म से परे जीवन-मुक्त और विदेह-मुक्त हूँ|
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यह मेरा अंतर्भाव है| यदि मैं स्वयं को देह मानता हूँ तो यह मेरा अहंकार होगा| मैं सर्वव्यापि आत्म-तत्व हूँ जो सत्य है| जो कुछ भी सृष्ट हुआ है, और जो कुछ भी सृष्ट होगा, वह मैं ही हूँ| पूरी समष्टि भी मैं हूँ, और जो समष्टि से परे है, वह भी मैं ही हूँ| मैं पूर्ण हूँ और परमात्मा के साथ एक हूँ|
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शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि | अयमात्मा ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||

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