Sunday, 26 October 2025

हमारे चिंतन की दिशा सदा परमात्मा की ओर ही रहे ---

 परमात्मा के प्रति परमप्रेम, पूर्ण समर्पण, उपासना, और आत्म-साक्षात्कार ही हमारा स्वधर्म है। जैसे चुंबक की सूई का मुंह सदा उत्तर की ओर होता है, वैसे ही हमारे चिंतन की दिशा सदा परमात्मा की ओर ही रहे।

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हमारा दायित्व है कि हम अपनी संतानों में इतना आत्म-विश्वास जागृत करें कि वे बिना किसी भय या संकोच के अपनी कोई भी समस्या या उलझन अपने माता-पिता को बता सकें। सभी से मेरी प्रार्थना है कि वे अपने स्वधर्म का दृढ़ता से पालन करें, और अपने बच्चों को भी सदाचरण और धर्मरक्षा की शिक्षा दें।
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बच्चों को बात-बात पर बुरी तरह मारना-पीटना और डराना-धमकाना नहीं चाहिए। इससे उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता, और वे कायर व डरपोक बन जाते हैं। हम यह सुनिश्चित करें कि हमारी संतानें इतनी शक्तिशाली, सामर्थ्यवान, साहसी, व आत्म-विश्वासी हों, कि वे अपने धर्म व स्वयं की रक्षा अधर्मियों से करने में समर्थ हों।
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परमात्मा से प्रेम करो। सुख व आनंद है ही परमात्मा में, अन्यत्र कहीं भी नहीं है। परमात्मा से दूर होने वाले सब दुःखी हैं, कोई सुखी नहीं हैं।
हरिः ॐ तत्सत् !! हर हर महादेव !! महादेव महादेव महादेव !!
कृपा शंकर
२७ अक्टूबर २०२५

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