भारत राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करना हमारा धर्म है ---
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भारत की अस्मिता सत्य-सनातन-धर्म है। भारत में सभी को बहुत अधिक सावधान होने की आवश्यकता है। अगले कुछ वर्ष भारत के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होंगे, जिनके बारे में कुछ भी कहना "छोटे मुंह बड़ी बात" होगी। विश्व दो भागों में बँट रहा है, और विश्व की चिंतन-धारा भी बदल कर दो भागों में बँट रही है। चर्च-आधारित आधुनिक पश्चिमी सभ्यता, मार्क्सवाद, और इस्लामी आतंकवाद -- ये तीनों ही सनातन-धर्म के परम शत्रु हैं। ये कैसे भी सनातन-धर्म को नष्ट करना चाहते हैं। सनातन धर्म ही नहीं रहा, तो भारत भी नहीं रहेगा।
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निज जीवन में परमात्मा की अभिव्यक्ति ही हमारा सनातन-स्वधर्म है। हम स्वधर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म ही हमारी रक्षा करेगा। भगवान की भक्ति हमारा स्वभाव होना चाहिए। भगवान के भक्त को कोई नष्ट नहीं कर सकता। गीता में भगवान का वचन है --
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥९:३०॥ "
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥९:३१॥"
अर्थात् -- यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है, वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है॥
हे कौन्तेय, वह शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और शाश्वत शान्ति को प्राप्त होता है। तुम निश्चयपूर्वक सत्य जानो कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता॥
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ अक्तूबर २०२३
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