Tuesday, 9 September 2025

विद्या वह है जो हमें परमात्मा का बोध कराये। जो केवल सांसारिक ज्ञान कराये वह अविद्या है।

 मेरी आप से प्रार्थना है कि आप विद्या, अविद्या, ज्ञान और अज्ञान -- इन शब्दों पर विचार करें। ​मेरी समझ से विद्या वह है जो हमें परमात्मा का बोध कराये। जो केवल सांसारिक ज्ञान कराये वह अविद्या है। लेकिन दोनों का अध्ययन आवश्यक है। समत्व में स्थिति, और क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है। इसका सिर्फ पढ़ाई-लिखाई से कोई संबंध नहीं है। ईशावास्योपनिषद तो कहता है कि जो विद्या और अविद्या, को जो जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्त्व प्राप्त कर लेता है।

.
मैं यह शरीर हूँ, यह सबसे बड़ा अज्ञान है। हर सांसारिक कामना और अभिलाषा भी अज्ञान ही है। अज्ञान से मुक्ति भगवान की परम कृपा से ही होती है। ऐसे ही लोगों का संग करें जिनके ह्रदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर परमप्रेम भरा पड़ा है, और जो निज जीवन में परमात्मा को उपलब्ध होना चाहते हैं। कृपा शंकर ९ सितंबर २०२३

No comments:

Post a Comment