मेरी निजी आस्था ---.
सब से बड़ी विपत्ति, दुर्भाग्य और पराजय तब है, जब भगवान का स्मरण नहीं होता। अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) का निरंतर भगवान में लगना ही मेरी प्रकृति और स्वभाव है। मैं मेरे परमात्मा के साथ एक हूँ। चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, भगवान का विस्मरण कभी नहीं होगा। मेरे सारे पाप-पुण्य, अवगुण-गुण और पूरा अस्तित्व उन्हें समर्पित है। जब समय आयेगा तब यह शरीर नष्ट हो जाएगा, और तुरंत दूसरा मिल जाएगा; लेकिन मैं अजर, अमर, शाश्वत आत्मा हूँ, जो अपने पारब्रह्म परमात्मा परमशिव के साथ एक है। उनके प्रेम पर मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।
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अपनी आस्थों के साथ मैं कोई समझौता नहीं करता। कोई अन्य नहीं है, एकमात्र अस्तित्व केवल और केवल भगवान का है। जल की एक बूँद, महासागर को जान नहीं सकती, लेकिन समर्पित होकर महासागर के साथ एक तो हो ही सकती है। तब वह बूँद, बूँद नहीं रहती, स्वयं महासागर हो जाती है। सम्पूर्ण सृष्टि भगवान में है, और भगवान सम्पूर्ण सृष्टि में हैं। उनके सिवाय अन्य कोई नहीं है।
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हर साँस के साथ हम उन्हीं का स्मरण करें। उन्हीं के अनंत नाद व ज्योति में स्वयं का लय कर दें। कहीं कोई पृथकता नहीं रहे। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०२२
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