जो भी अस्तित्व है वह भगवान का है, जो भी उपासना हो रही है, वहाँ उपास्य और उपासक -- भगवान स्वयं हैं ---
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प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठते ही लघुशंकादि से निवृत होकर मेरुदंड को उन्नत रखते हुए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के अपने आसन पर बैठ जाएँ। दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर, व चेतना -- उत्तरा-सुषुम्ना (आज्ञाचक्र और सहस्त्रारचक्र के मध्य) में रहे। तभी एक चमत्कार घटित हो जाता है, जिसका मैं साक्षीमात्र ही रह जाता हूँ।
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यहाँ तो मैं हूँ ही नहीं। मेरा अस्तित्व-बोध एक मिथ्या भ्रम है। यहाँ तो परमपुरुष वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण स्वयं पद्मासन में ध्यानस्थ बैठे हैं। उनके अतिरिक्त इस पूरी सृष्टि में कोई अन्य है ही नहीं। स्वयं को भूल जाएँ। भगवान स्वयं बिन्दु, नाद, और कला से परे हैं। उन्हें स्वयं का ध्यान करने दें। हम एक साक्षीमात्र यानि निमित्तमात्र होकर रहें।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अप्रेल २०२१
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