हृदय में भक्ति हो, और योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा हो तो कुछ भी असंभव नहीं है ---



खेचरी मुद्रा के महत्व पर जितना लिखूँ, उतना ही कम है| इसका अभ्यास किसी अच्छे सिद्ध योगी के मार्गदर्शन में किशोरावस्था से ही करने पर यह शीघ्र सिद्ध हो जाती है| इसके लिए योगावतार श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय ने "तालव्य क्रिया" नामक साधना पर ज़ोर दिया है| युवावस्था में भी इसके अभ्यास से यह सिद्ध हो जाती है| प्रोढ़ावस्था में इसकी सिद्धि अति कठिन है| फिर भी जितना हो सके उतना अभ्यास करना चाहिए| इस कथन में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि खेचरी सिद्ध योगी की आधी आध्यात्मिक यात्रा तो इसके अभ्यास से ही पूरी हो जाती है|



खेचरी मुद्रा सिद्ध होने पर मणिपुरचक्र से आज्ञाचक्र तक का सुषुम्ना मार्ग शीघ्र ही प्रशस्त हो जाता है, और सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा प्राण-तत्व पर नियंत्रण बहुत आसान हो जाता है| प्राण-तत्व की अनुभूति और सिद्धि ही कुंडलिनी जागरण है| कुंडलिनी द्वारा आज्ञाचक्र के भेदन से ज्ञानक्षेत्र में प्रवेश होता है, और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति स्वतः ही होने लगती है| खेचरी सिद्ध योगी को शीघ्र ही समाधि लाभ और समाधि में स्थिति होती है|



ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१ अप्रेल २०२१
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