जिस समय दोनों नासिका छिद्रों से साँसें चल रही हों, उसी समय साँसें सहज और लयबद्ध होती हैं, तभी मन स्थिर हो सकता है, और तभी ध्यान साधना हो सकती है| बंद नाक होने से ध्यान नहीं हो सकता| यदि साँसें एक ही नासिका छिद्र से चल रही हो, तब भी ध्यान नहीं हो सकता| ध्यान के लिए यह आवश्यक है कि दोनों नासिकाओं से साँस चल रही हो| इसी के लिए ध्यान से पूर्व अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते हैं| हठयोग में अनेक क्रियाएँ हैं जिनकी सहायता से नासिका के दोनों छिद्रों को खुला रखा जा सकता है| यदि कोई मेडिकल समस्या हो ... जैसे DNS की या Allergy की, तो उसका किसी अच्छे ENT सर्जन से शल्य चिकित्सा द्वारा उपचार करवाएँ|
ॐ तत्सत् !!
२ दिसंबर २०२१
No comments:
Post a Comment