Saturday 2 October 2021

हम कितने भाग्यशाली हैं कि भगवान स्वयं हमें याद कर रहे हैं ---

 

हम कितने भाग्यशाली हैं कि भगवान स्वयं हमें याद कर रहे हैं ---
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भगवान की प्राप्ति के लिए ऐसी छटपटाहट और पीड़ा होनी चाहिए जैसे किसी ने एक परात में जलते हुए कोयले भर कर सिर पर रख दिए हों, और हमें उस अग्नि की दाहकता से मुक्ति पानी हो| ऐसी भक्ति हमें अनेक जन्मों के पुण्य और परमात्मा की कृपा द्वारा ही प्राप्त हो सकती है| वराह पुराण में भगवान् हरि कहते हैं --
"वातादि दोषेण मद्भक्तों मां न च स्मरेत्।
अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम्॥"
अर्थात् -- यदि वातादि दोष के कारण मृत्यु के समय मेरा भक्त मेरा स्मरण नहीं कर पाता तो मैं उसका स्मरण कर उसे परम गति प्राप्त करवाता हूँ॥
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अतः भगवान का नाम निरन्तर जपें और सदा प्रसन्न रहें। निश्चय कर संकल्प सहित अपने आप को परमात्मा के हाथों में सौंप दो| जहाँ हम विफल हो जाएँगे, वहाँ वे हाथ थाम लेंगे|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अक्टूबर २०१७

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