सिर्फ परमात्मा (ब्रह्म) ही सत्य है .....
.
सिर्फ परमात्मा ही सत्य हैं| यह आभासीय जगत उनका एक लीला-विलास है| हम एक शाश्वत-आत्मा, परमात्मा का अंश ही नहीं, उनके साथ एक हैं| हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| हमारे चैतन्य में सिर्फ परमात्मा ही रहें|
गीता में भगवान कहते हैं .....
"समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः| ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्||९:२९||"
अर्थात् मैं समस्त भूतों में सम हूँ; न कोई मुझे अप्रिय है और न प्रिय; परन्तु जो मुझे भक्तिपूर्वक भजते हैं, वे मुझमें और मैं भी उनमें हूँ||
.
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः| मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति||१५:७||"
अर्थात् इस जीव लोक में मेरा ही एक सनातन अंश जीव बना है| वह प्रकृति में स्थित हुआ (देहत्याग के समय) पाँचो इन्द्रियों तथा मन को अपनी ओर खींच लेता है अर्थात् उन्हें एकत्रित कर लेता है||
.
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं ...
"ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन विमल सहज सुख राशी |
सो माया वश भयो गोसाईं बंध्यो जीव मरकट के नाहीं ||"
अर्थात् जैसे बन्दर मुट्ठी बाँध के संकड़े मुँह वाले बर्तन में खुद ही फँसता है, वैसे ही जीव भी स्वयं की मान्यताओं से फँस जाता है|
.
हमारा एकमात्र अस्तित्व परमात्मा है, हमारा एकमात्र संबंध परमात्मा से है, और हम परमात्मा से पृथक नहीं हैं| हमारा मत-मतांतर, हमारा सिद्धान्त, हमारा धर्म, हमारा सर्वस्व परमात्मा ही है| उस से पृथक कुछ भी नहीं है| जैसे समुद्र में जल की एक बूंद होती है, वैसे हम भी इस महासागर के अंश और स्वयं यह महासागर हैं|
ॐ तत्सत् || ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अक्तूबर २०२०
No comments:
Post a Comment