Friday 11 June 2021

कर्मफलों का त्याग ---

कर्मफलों का त्याग ---
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कर्मफलों का त्याग -- भगवान श्रीकृष्ण के श्रीचरणों में स्वयं का समर्पण है। जिसने कर्मफलों का त्याग कर दिया है, उसके लिए कोई "कर्मयोग" नहीं है। उसके लिए सिर्फ "ज्ञान" और "भक्ति" है, क्योंकि वह केवल एक निमित्त मात्र साक्षी है। कोई कर्मफल उस पर लागू नहीं होता, क्योंकि उसके कर्मों के कर्ता और भोक्ता तो भगवान श्रीकृष्ण स्वयं बन जाते हैं।
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समस्त कामनाओं के नाश से अमृतत्व की प्राप्ति होती है। जो कूटस्थ अक्षर ब्रह्म की उपासना करने वाले अभेददर्शी हैं, उनके लिये कर्मयोग सम्भव नहीं है। भगवान कहते हैं --
"श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते।
ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्॥१२:१२॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् -- अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है; ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है और ध्यान से भी श्रेष्ठ कर्मफल त्याग है; त्याग से तत्काल ही शान्ति मिलती है॥
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ऐसे भक्तों का उद्धार अति शीघ्र भगवान स्वयं कर देते हैं। भगवान कहते हैं --
"तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्॥१२:७॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् -- हे पार्थ ! जिनका चित्त मुझमें ही स्थिर हुआ है ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्युरूप संसार सागर से उद्धार करने वाला होता हूँ॥
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ईश्वरभाव और सेवकभाव परस्पर विरुद्ध है। इस कारण प्रमाण द्वारा आत्मा को साक्षात् ईश्वररूप जान लेने के पश्चात् कोई किसी का सेवक नहीं है।
भगवान कहते हैं --
"अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥१२:१३॥"
"सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥१२:१४॥"
अर्थात् -- भूतमात्र के प्रति जो द्वेषरहित है तथा सबका मित्र तथा करुणावान् है; जो ममता और अहंकार से रहित, सुख और दु:ख में सम और क्षमावान् है॥
जो संयतात्मा, दृढ़निश्चयी योगी सदा सन्तुष्ट है, जो अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किये हुए है, जो ऐसा मेरा भक्त है, वह मुझे प्रिय है॥
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हम सदा संतुष्ट और समभाव में रहें। अपना संकल्प-विकल्पात्मक मन और निश्चयात्मिका बुद्धि -- भगवान को समर्पित कर दें। भगवान को कभी न भूलें। मन और बुद्धि -- जब भगवान को समर्पित है, समभाव में स्थिति है और पूर्ण संतुष्टि है, -- तब हम भगवान को उपलब्ध हैं। ॐ श्री गुरवे नमः !!
ॐ तत्सत् !!

११ जून २०२१ 

पुनश्च: --- 

शाश्वत संकल्प जो बड़ी दृढ़ता से हर समय रहे ---
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मुझे इसी जीवन में, अभी, इसी समय, -- परमात्मा की प्राप्ति करनी है।
मुझे पूर्ण श्रद्धा और विश्वास है कि मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम हूँ। भगवान हर समय मुझ में स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं। मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। स्वयं परमात्मा मुझमें व्यक्त हैं। शिवोहम् शिवोहम् अहम् ब्रह्मास्मि !! ॐ ॐ ॐ !!

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