Sunday 14 July 2019

अस्तेय .....

अस्तेय .....
.
महावीर स्वामी कहते हैं कि दूसरों की चीज़ों को चुराना और दूसरों की चीज़ों की इच्छा करना महापाप है| जो मिला है उसमें संतुष्ट रहें| अस्तेय का शाब्दिक अर्थ है ..... चोरी न करना| योग-सुत्रों में यह पांच यमों में आता है, और जैन मत के पंचशीलों यानि पंच महाव्रतों में से एक हैं| अस्तेय का व्यापक अर्थ है .... मन, वचन और कर्म से किसी दूसरे की सम्पत्ति को चुराने की इच्छा भी न करना| हम दूसरों के साधनों को हडपने की चेष्टा, इच्छा या प्रयत्न कभी ना करें और अपने निजि सुखों को निजि साधनों पर ही आधारित रख कर संतुष्ट रहें| अपनी चादर के अनुसार ही पाँव फैलायें किन्तु इस का यह अर्थ भी नहीं कि हम अपने साधनों को ही गँवा बैठें या परिश्रम से उन में वृद्धि न करें|
.
आज के युग में घूस खाना सबसे बड़ी चोरी है| घूसखोर को अगले जन्मों में ब्याज समेत वह सारी राशि उस व्यक्ति को बापस करनी ही पड़ती है जिस से उसने घूस ली है| चोरी करने वाले का यह जन्म तो बेकार गया, उसे और कई जन्म लेकर उसका दंड भुगतना ही होगा| घूसखोर और उसके घरवाले कितने भी प्रसन्न हो लें पर उन्हें अगले कई जन्मों तक इसका दंड भुगतना पड़ता है| किसी को ठग कर या डरा-धमका कर या अधर्म से उस को विवश कर के उस से कुछ बसूलते हैं तो इस जन्म की तो सारी आध्यात्मिक प्रगति अवरुद्ध हो ही जाती है, अगले जन्म भी कठिनाइयों से भरे हुए आते हैं| जिस कार्य को करने के लिए हमें पारिश्रमिक या वेतन मिलता है, उस कार्य को ईमानदारी से न करना भी श्रम की चोरी है, जिसका भी दंड मिलता है| ऐसे ही परस्त्री/पुरुष गमन भी चोरी की श्रेणी में ही आते हैं|
.
अस्तेय विषय पर इतना ही लिखना पर्याप्त है| हरिः ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जुलाई २०१९

No comments:

Post a Comment