Sunday, 11 March 2018

हमारा एकमात्र शाश्वत सम्बन्ध परमात्मा से है .....

हमारा एकमात्र शाश्वत सम्बन्ध परमात्मा से है .....
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जन्म से पूर्व और मृत्यु के पश्चात ही नहीं बल्कि जीवन में सतत निरंतर एकमात्र सम्बन्ध यदि किसी का किसी से हो सकता है तो वह भगवान से ही है| हमारा अस्तित्व भी उन्हीं का एक संकल्प या उन के मन की एक कल्पना मात्र है| यह प्रभु का प्रेम ही है जो माँ-बाप, भाई-बहिन, सगे-सम्बन्धियों और मित्रों के माध्यम से हमें प्राप्त होता है| यह मायावश भ्रम है कि हमारा कोई अपना-पराया है| यहाँ तक की गुरु-शिष्य का सम्बन्ध भी परमात्मा से ही सम्बन्ध है| गुरू भी एक निश्चित भावभूमि तक ले जा कर छोड़ देता है, आगे की यात्रा तो स्वयं को ही करनी पडती है| फिर न कोई गुरु है और न कोई शिष्य, एकमात्र परमात्मा ही सब कुछ है| सारे सम्बन्ध एक भ्रम मात्र हैं|
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हमारा अस्तित्व परमात्मा की एक अभिव्यक्ति है| वे ही इस देह को जीवंत रखे हुए हैं, वे ही इस हृदय में धडक रहे हैं|, जो भी हम अपनी आँखों से देख रहे हैं, वह परमात्मा ही है| हमारा पृथक अस्तित्व एक माया और भ्रम है| हमारा एकमात्र लक्ष्य सिर्फ उन के परम प्रेम की अभिव्यक्ति और उन में समर्पण ही है| जो भी हमें उन से दूर ले जाए वह कुसंग है जो सर्वदा त्याज्य है| जो उन का प्रेम हमारे में जागृत करे वह सत्संग है| जब हमें भूख लगती है तब भोजन तो स्वयं को ही करना पड़ता है| दूसरे का किया भोजन हमारा पेट नहीं भर सकता| वैसे ही स्वाध्याय, सत्संग और साधना तो स्वयं को ही करनी होगी| प्रभु के प्रेम में निरंतर डूबे रहना ही सत्संग है| प्रभु को विस्मृत करना कुसंग है|
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प्रभु की निरंतर सब पर कृपा बनी रहे| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ मार्च २०१४

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