Monday 9 October 2017

किस को शुभ कामनाएँ दूँ और किस को नमन करूँ ? .....

किस को शुभ कामनाएँ दूँ और किस को नमन करूँ ? .....
.
विगत जीवन का जब सिंहावलोकन करता हूँ तो पाता हूँ कि इस लोकयात्रा में परमात्मा अधिकांशतः सदा मित्रों के रूप में मेरे समक्ष आए | मैं अति भाग्यशाली हूँ कि जीवन में मुझे बहुत अच्छे अच्छे मित्र मिले | वे सब मित्र परमात्मा की ही साक्षात साकार अभिव्यक्तियाँ थीं | मुझे उन सब में साक्षात परमात्मा के दर्शन होते हैं |
.
देश विदेश में अनजान देशों और अपरिचित स्थानों पर भी परमात्मा सदा मित्र के रूप में मिले | उन्होंने कहीं पर भी कभी कोई असुविधा या कष्ट नहीं होने दिया | आज पता ही नहीं है कि उनमें से अधिकाँश आत्माएँ कहाँ और कैसे हैं | अनेक तो इस लोक को छोड़कर अज्ञात में चली गयी हैं|
.
मुझे किसी का भी अभाव नहीं अनुभूत होता, क्योंकि स्वयं परमात्मा ही माता-पिता, भाई-बंधू, सगे-सम्बन्धियों और सभी मित्रों के रूप में आये | इस जन्म से पहिले भी वे मेरे साथ थे और आगे भी सदा रहेंगे | उनका साथ शाश्वत है | अन्य सारे साथ मिथ्या भ्रम मात्र हैं |
.
माता-पिता, सभी सम्बन्धियों और मित्रों से जो प्रेम मिला वह परमात्मा का ही प्रेम था जो परमात्मा ने उनके माध्यम से दिया | यह सारा खेल, यह सारी लीला स्वयं परमात्मा के मन की एक कल्पना मात्र है | वे ही यह मैं बन गए हैं | उनके सिवाय अन्य किसी का अस्तित्व नहीं है |
.
एक विराट अथाह महासागर एक जल की बूँद को क्या दे सकता है ? एक जल की बूँद एक महासागर से क्या प्राप्त कर सकती हैं ? हम सब महासागर से छिटक कर बिखरी हुई जल की बूँदें हैं जिन्हें बापस महासागर में विलीन होना है |
.
सभी को मंगल कामनाएँ और सप्रेम नमन !
.
किस को शुभ कामनाएँ दूँ और किस को नमन करूँ ? अस्तित्व तो एकमात्र परमात्मा का ही है | मेरा भी पृथकता का बोध एक भ्रम मात्र ही है |
.
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

०७ अक्टूबर २०१७

No comments:

Post a Comment