भारत पर एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक आक्रमण हो रहा है| इस का उद्देश्य
भारतीयों में अपनी अस्मिता, स्वाभिमान और देशभक्ति की भावना को मिटा देना
है ताकि भारत के और टुकड़ेे कर के उसे नष्ट कर दिया जाये|इसके
पीछे अमेरिका, चीन, पाकिस्तान जैसे देशों का हाथ तो है ही, साथ साथ
अंग्रेजों के उन मानसपुत्रों का भी हाथ है जिनके हाथ में अँगरेज़ भारत की
सत्ता सौंप गए थे| इनका साथ दे रहे हैं भारत के असंख्य जयचंद|
.
पहले यह आक्रमण धर्मनिरपेक्षतावाद, सर्वधर्मसमभाववाद के विचार थोपने, जातीय आधार पर वर्गसंघर्ष करवाने और हमारे गौरवशाली अतीत को विस्मृत करवाने के रूप में था, अब भारतीयों को असहिष्णु बताकर उनमें आत्महीनता का बोध लाने के रूप में है| भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र तभी बन सकता है जब सभी भारतीयों में अपने भारतीय होने का स्वाभिमान यानि आत्म-गौरव हो|
.
हमें अपने सही इतिहास, साहित्य और वैभव का ज्ञान होना अति आवश्यक है| हमें हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली और संगठित होना होगा| इसके लिए दैवीय शक्तियों के सहयोग की भी आवश्यकता होगी और जीवन में परमात्मा की भी| भारत हमारे लिए कोई भूमि का टुकडा नहीं, साक्षात माता है| आध्यात्म की और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारत में ही हुई है| भारत एक ऊर्ध्वमुखी विभा-रत मनीषियों का समूह है| सनातन धर्म का ज्ञान सर्वप्रथम भारतीयों को ही हुआ और सनातन धर्म का पुनरोत्थान भी भारत से ही होगा| भारत की अस्मिता सनातन धर्म है और भारत की राजनीति भी सनातन धर्म ही होगी|
.
हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत,
हे वन्दनीय भारत, अभिनंदनीय भारत |
जीवन सुमन चढ़ाकर, आराधना करेंगे,
तेरी जनम-जनम भर, हम वंदना करेंगे|
हम अर्चना करेंगे ||१||
महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है,
तू प्राण है हमारा, जननी समान तू है |
तेरे लिए जियेंगे, तेरे लिए मरेंगे,
तेरे लिए जनम भर, हम साधना करेंगे |
हम अर्चना करेंगे ||२||
जिसका मुकुट हिमालय, जग जग मगा रहा है,
सागर जिसे रतन की, अंजुली चढा रहा है |
वह देश है हमारा, ललकार कर कहेंगे,
इस देश के बिना हम, जीवित नहीं रहेंगे |
हम अर्चना करेंगे ||३||
भारत माता की जय | वन्दे मातरम् ||
.
सभी को शुभ कामनाएँ और सादर नमन |
ॐ नमःशिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय |
.
पहले यह आक्रमण धर्मनिरपेक्षतावाद, सर्वधर्मसमभाववाद के विचार थोपने, जातीय आधार पर वर्गसंघर्ष करवाने और हमारे गौरवशाली अतीत को विस्मृत करवाने के रूप में था, अब भारतीयों को असहिष्णु बताकर उनमें आत्महीनता का बोध लाने के रूप में है| भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र तभी बन सकता है जब सभी भारतीयों में अपने भारतीय होने का स्वाभिमान यानि आत्म-गौरव हो|
.
हमें अपने सही इतिहास, साहित्य और वैभव का ज्ञान होना अति आवश्यक है| हमें हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली और संगठित होना होगा| इसके लिए दैवीय शक्तियों के सहयोग की भी आवश्यकता होगी और जीवन में परमात्मा की भी| भारत हमारे लिए कोई भूमि का टुकडा नहीं, साक्षात माता है| आध्यात्म की और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारत में ही हुई है| भारत एक ऊर्ध्वमुखी विभा-रत मनीषियों का समूह है| सनातन धर्म का ज्ञान सर्वप्रथम भारतीयों को ही हुआ और सनातन धर्म का पुनरोत्थान भी भारत से ही होगा| भारत की अस्मिता सनातन धर्म है और भारत की राजनीति भी सनातन धर्म ही होगी|
.
हे जन्म भूमि भारत, हे कर्म भूमि भारत,
हे वन्दनीय भारत, अभिनंदनीय भारत |
जीवन सुमन चढ़ाकर, आराधना करेंगे,
तेरी जनम-जनम भर, हम वंदना करेंगे|
हम अर्चना करेंगे ||१||
महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है,
तू प्राण है हमारा, जननी समान तू है |
तेरे लिए जियेंगे, तेरे लिए मरेंगे,
तेरे लिए जनम भर, हम साधना करेंगे |
हम अर्चना करेंगे ||२||
जिसका मुकुट हिमालय, जग जग मगा रहा है,
सागर जिसे रतन की, अंजुली चढा रहा है |
वह देश है हमारा, ललकार कर कहेंगे,
इस देश के बिना हम, जीवित नहीं रहेंगे |
हम अर्चना करेंगे ||३||
भारत माता की जय | वन्दे मातरम् ||
.
सभी को शुभ कामनाएँ और सादर नमन |
ॐ नमःशिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय |
कृपा शंकर
११ अप्रेल २०१६
११ अप्रेल २०१६
हे प्रभु, हमारे राष्ट्र भारतवर्ष को इतनी सामर्थ्य, शक्ति, उत्साह और प्रेरणा दो कि वह भीतर और बाहर के अपने सभी शत्रुओं का नाश कर सके|
ReplyDeleteभारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव और गौरव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हो|
हम आपके साथ एक हों और आपके पूर्ण उपकरण हों| हमारे हर विचार और कार्य के पीछे आपकी शक्ति हो, हमारा कोई पृथक अस्तित्व ना हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
दुनियाँ का सबसे बड़ा झूठ :-- "सर्वधर्म समभाव" ये शब्द किसी महाकुटिल घोर धूर्त नास्तिक के मन की कल्पना है जो हिन्दुओं को मुर्ख बनाने के लिए की गयी है| जो लोग ऐसा कहते हैं वे या तो धूर्त हैं या मुर्ख जिन्होनें किसी भी धर्म का अध्ययन नहीं किया है| वास्तविकता तो यह है कि सारे मज़हब ही आपस में लड़ना सिखाते हैं| विश्व में जितनी भी लडाइयाँ चल रही हैं वे मज़हब के नाम पर ही चल रही हैं| यदि सभी धर्म समान ही होते हैं, तो फिर धर्मांतरण और विध्वंश की क्या आवश्यकता थी और है?
ReplyDelete