Friday, 14 April 2017

अगर हमें वास्तव में परमात्मा से प्रेम हैै तो ......

April 12, 2016

अगर हमें वास्तव में परमात्मा से प्रेम हैै तो ......
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दिन का आरम्भ भगवान के ध्यान से करें| दिन में हर समय भगवान को अपनी चेतना में रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही पुनश्चः उन्हें अपनी चेतना में जीवन का केंद्रबिंदु बनाएँ| उनके उपकरण मात्र बनें| समर्पण का निरंतर प्रयास हो|
रात्रि को सोने से पहिले यथासंभव गहनतम ध्यान करके ही सोयें| रात्रि का ध्यान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है|
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जो द्विज हैं यानि जिन्होंने यज्ञोपवीत धारण कर रखा है उन्हें नित्य संध्या (संधि क्षणों में की गई साधना) और ब्रह्मगायत्री का यथासंभव अधिकाधिक जप करना चाहिए| मानसिक रूप से तो किसी भी परिस्थिति में कर ही सकते हैं| हर कार्य का आरम्भ ब्रह्मगायत्री के मानसिक जप से ही करें| कुछ आचार्यों के अनुसार जिन द्विजों ने यज्ञोपवीत धारण कर रखा है उनकी धर्म-पत्नियों को भी ब्रह्मगायत्री का जप करना चाहिए| संध्या तो सब का कर्तव्य है| सामान्यतः रात्री और दिवस का सन्धिक्षण, मध्याह्न, दिवस और रात्री का सन्धिक्षण और मध्यरात्रि का समय संध्याकाल होता है| इन संधिक्षणों में की गयी साधना को संध्या कहते हैं| अपनी गुरु परम्परानुसार सभी को संध्या करनी चाहिए| संध्या का फल कभी क्षीण नहीं होता|
योगियों के लिए हर श्वास प्रश्वास और हर क्षण सन्धिक्षण है| अतः वे अपने कूटस्थ में निरंतर प्रणव का ध्यान करते हैं|
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जैसा हम सोचते हैं वैसे ही हम बन जाते हैं| निरंतर भगवान का ध्यान करेंगे तो स्वतः ही उपास्य के सारे सद्गुण हमारे में खिंचे चले आयेंगे और हमारी सारी विकृतियाँ स्वतः ही दूर हो जायेंगी|
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भगवान के प्रति अहैतुकी परम प्रेम हमारा स्वाभाविक धर्म है| उनके प्रति समर्पित होकर जीवन का हर कार्य करना और शरणागति द्वारा पूर्ण समर्पण हमारा परम धर्म है| हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा| बिना धर्म का पालन किये हम निराश्रय और असहाय हैं|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण का वचन है .....
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते | स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ||२:४०||
अर्थात इस महाभय से हमारी रक्षा थोड़ा बहुत धर्म का पालन ही करेगा|
जब भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है तो उसकी पालना हमें करनी ही होगी|
अन्य सारे उपाय अति जटिल और कठिन है अतः सबसे सरल मार्ग के रूप में स्वाभाविक रूप से धर्म का पालन हमें करना ही चाहिए, तभी धर्म ही हमारी रक्षा करेगा| धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है और धर्म की रक्षा ही हमारी स्वयं की रक्षा है|

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