Friday, 7 February 2025

हमारे पतन का कारण हमारे जीवन में तमोगुण की प्रधानता थी --

 किसी भी कालखंड में जब भी हमारा पतन हुआ, उसका मुख्य और एकमात्र कारण हमारे जीवन में तमोगुण की प्रधानता का होना था। हमारी जो भी प्रगति हो रही है, वह तमोगुण का प्रभाव घटने, और रजोगुण में वृद्धि के कारण हो रही है।

सार्वजनिक जीवन में सतोगुण की प्रधानता तो बहुत दूर की बात है, निज जीवन में हमें सतोगुण का ही चिंतन और ध्यान करना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता के सांख्ययोग नामक दूसरे अध्याय के स्वाध्याय से यह बात ठीक से समझ में आती है। वास्तव में गीता का आधार ही उसका सांख्य योग नामक अध्याय क्रमांक २ है, जिसे समझ कर ही हम आगे की बातें समझ सकते हैं।
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हमें अपनी चेतना के ऊर्ध्व में परमात्मा के सर्वव्यापी परम ज्योतिर्मय कूटस्थ पुरुषोत्तम का ही ध्यान करना चाहिए। जो बात मुझे समझ में आती है, वही लिखता हूँ। ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत तो स्वयं परमात्मा हैं, बाकी सब से केवल सूचना ही प्राप्त होती है। कूटस्थ का अर्थ होता है परमात्मा का वह ज्योतिर्मय स्वरूप जो सर्वव्यापी है लेकिन प्रत्यक्ष में कहीं भी इंद्रियों से दिखता नहीं है। उसका कभी नाश नहीं होता। योगमार्ग में ध्यान में दिखाई देने वाली ज्योति और नाद को "कूटस्थ" कहते हैं।
ॐ परमात्मने नमः !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
६ फरवरी २०२५

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