Saturday, 7 August 2021

यो मां पश्यति सर्वत्र ---

आज प्रातः उठते ही श्रीमद्भगवद्गीता के दो चरम श्लोक स्मृति में सामने आये -- अध्याय ६ का ३०वाँ श्लोक, और अध्याय १८ का ६६वाँ श्लोक। सारी चेतना "मां"(माम्) शब्द पर अटक गई। किसी अज्ञात शक्ति ने कहा कि इस शब्द में जीवन और मृत्यु का रहस्य छिपा है, जिसके अनुसंधान से सारे संशय मिट जायेंगे। आँखें प्रसन्नता व हर्ष के आंसुओं से भर गई और एक भाव-समाधि लग गई। गुरुकृपा कहो या हरिःकृपा से एक बहुत बड़ा रहस्य अनावृत हुआ, और आगे के लिए मार्ग-दर्शन मिला। यह शब्द (माम् या मां) भगवान का श्रीमुख भी है (जिस पर कल चर्चा की जा चुकी है) और आत्म-तत्व भी। यह वास्तव में एक बहुत बड़ा रहस्य है जो गुरुकृपा से ही समझ में आ सकता है।

"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।६:३०॥"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥१८:६६॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ गुरु !! जय गुरु !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
७ अगस्त २०२१

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