आत्मा से अन्य कुछ भी नहीं है ---
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यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय "ईशावास्योपनिषद्" के मंत्र ६ और ७ कहते हैं ---
"यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥६॥"
(यः तु सर्वाणि भूतानि आत्मनि एव अनुपश्यति च सर्वभूतेषु आत्मानम्। ततः न विजुगुप्सते॥)
"यस्मिन् सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद् विजानतः।
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ॥७॥"
(यस्मिन् विजानतः आत्मा एव सर्वाणि भूतानि अभूत्। तत्र एकत्वम् अनुपश्यतः कः मोहः कः शोकः॥)
हिन्दी में भावार्थ --
जो सभी भूतों प्राणियों को आत्मा में ही देखता है, और सभी भूतों या सत्ताओं में आत्मा को; वह फिर सर्वत्र एक ही आत्मा के प्रत्यक्ष दर्शन के पश्चात्, किसी से घृणा नहीं करता।
पूर्ण ज्ञान, विज्ञान से सम्पन्न होने के कारण जिस मनुष्य के अन्दर यह परमोच्च चेतना जाग गयी है कि स्वयम्भू आत्मसत्ता ही स्वयं सभी भूत, सभी सत्ताएं या सम्भूतियां बना है, उस मनुष्य में फिर मोह कैसे होगा, शोक कहां से होगा जो सर्वत्र एकता का अनुभव करता है।
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