Saturday 7 August 2021

सदा समभाव में स्थित रहने का अभ्यास करें ---

परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, इसलिये सदा समभाव में स्थित रहने का अभ्यास करें। इन्द्रिय सुख और वासनाएँ मीठा विष हैं। कर्तापन का अभिमान पाप है। मैंने इतने दान-पुण्य किये, मैनें इतने परोपकार के कार्य किये, मैनें इतनी साधना की, इतने जप-तप किए, मैं इतना बड़ा भक्त हूँ, मैं इतना बड़ा साधक हूँ, मेरे जैसा धर्मात्मा कोई नहीं है -- ऐसे भाव पापकर्म हैं, क्योंकि इन से अहंकार बढता है। जिस से अहंकार की निवृति हो -- वही पुण्य है।

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श्रीमद्भगवद्गीता में जिस समत्व की बात कही गयी है, वह ही ज्ञान है। जिस ने समत्व को प्राप्त किया है, वह ही ज्ञानी है, और वह ही स्थितप्रज्ञ है। जो सुख-दुःख, हानि-लाभ, यश-अपयश, मान-अपमान आदि में समभाव रखता है, और राग-द्वेष व अहंकार से परे है, वह ही ज्ञानी कहलाने का अधिकारी है। बहुत सारी जानकारी प्राप्त करना, अनुभव और सीख -- ज्ञान नहीं है। जिसने ग्रन्थों को रट रखा है और बहुत कुछ अनुभव से या पुस्तकों से सीखा है वह भी ज्ञानी नहीं है। ज्ञानी वही है जो समत्व में स्थित है। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
८ अगस्त २०२१

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