हम पाशों से बंध कर पशु बन जाते हैं| मुख्य पाश तीन हैं :---
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(१) पहला सबसे बड़ा पाश जिसने हमें पशु बना रखा है वह है ..... "काम वासना"| "काम" और "राम" दोनों विपरीत बिंदु हैं|
"जहाँ राम तहँ काम नहीं, जहाँ काम नहीं राम |
तुलसी कबहूँ होत है, रवि रजनी एक धाम ||"
जिस प्रकार सूर्य और रात्री एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही काम और राम एक साथ नहीं रह सकते| यह जीवन भी काम से राम के बीच की यात्रा है|
मनुष्य के सूक्ष्म शरीर में वासनाएँ नीचे के तीन चक्रों में रहती हैं| गुरु का स्थान आज्ञाचक्र और सहस्त्रार है| परमात्मा की अनुभूति सहस्त्रार से भी ऊपर होती है| परमात्मा के मार्ग में काम-वासना सबसे बड़ी बाधा है| कामजयी ही राम को पा सकता है| जिसने काम जीता, उसने जगत को जीता| ब्रह्मचर्य सबसे बड़ा तप है, जिसके लिए देवता भी तरसते हैं|
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(२) दूसरा पाश है .... राग-द्वेष | इसे समझना थोड़ा कठिन है| फिर भी शांत मन से चिंतन किया जाए तो यह समझ में आ जाता है|
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(३) तीसरा पाश है ... अहंकार| क्रोध इसी का भाई है| और भी छोटे-मोटे इसके कई साथी हैं|
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इन सब पाशों में जो बंधा है वह पशु है| इन सब पाशों से मुक्त होकर अपने सच्चिदानंद स्वरुप में स्थित होना ही "मुक्ति" है, और उपरोक्त पाशों से से मुक्त होना ही "ज्ञान" है| जो इन पाशों से मुक्त है वही वास्तविक "ज्ञानी" है |
जो विद्या हमें इस मार्ग पर ले चलती है वही "पराविद्या" है और जो उसका उपदेश देकर हमें साथ ले चलता है वही "सद्गगुरु" है|
ॐ तत्सत् ! बहुत बड़ी बात कर गया जो नहीं करनी चाहिए थी| छोटे मुंह बड़ी बात हो गयी| कुछ अधिक ही कह गया जिसके लिए क्षमा चाहता हूँ|
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आप सब मेरी निजात्मा हो, परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हो, सच्चिदानंद स्वरुप हो| आप सब को नमन! भगवान "पशुपति" सदाशिव हम सबका कल्याण करें|
ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ सितंबर २०१९
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