Saturday, 4 October 2025

इस दीपक में अधिक ईंधन नहीं बचा है। इसलिए --

 

इस दीपक में अधिक ईंधन नहीं बचा है। इसलिए --
(१) सामाजिक संपर्क बहुत सीमित कर रहा हूँ। जिनसे मुझे शक्ति और प्रेरणा मिलती है, ऐसे ही सज्जनों से संपर्क रहेगा, हर किसी से नहीं।
(२) जिसमें मेरी आस्था है वही साधना/उपासना सम्पन्न होगी, अन्य कुछ भी नहीं।
(३) मेरे पास अपना स्वयं का बहुत बड़ा निजी पुस्तकालय है, लेकिन अब किसी स्वाध्याय की आवश्यकता नहीं है। जो आवश्यक है जैसे श्रीमद्भगवद्गीता आदि के अतिरिक्त अन्य कुछ भी पढ़ने की इच्छा नहीं है।
(४) गीता में बताई हुई ब्राह्मी-स्थिति ही मेरी आदर्श है --
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति॥"
अर्थात् - हे पार्थ, यह ब्राह्मी स्थिति है। इसे प्राप्त कर पुरुष मोहित नहीं होता। अन्तकाल में भी इस निष्ठा में स्थित होकर ब्रह्मनिर्वाण (ब्रह्म के साथ एकत्व) को प्राप्त होता है॥
यह ब्राह्मी-स्थिति ही क्रिया की परावस्था है, यही कूटस्थ-चैतन्य है। भगवान वासुदेव ही इस जीवन के एकमात्र कर्ताधर्ता हैं। वे ही परमशिव हैं जिन का ध्यान इस व्यक्ति के माध्यम से निरंतर होता है। इससे आगे की बातें रहस्य ही रहें तो ठीक है। सारा जीवन उन्हें समर्पित है। अन्य कुछ भी नहीं चाहिए। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ अक्टूबर २०२२

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