Saturday, 27 September 2025

हर घर में नित्य शिवपूजा और गीतापाठ अवश्य होना चाहिये ----

 मेरी अपनी आस्था है कि हर घर में नित्य शिवपूजा और गीतापाठ अवश्य होना चाहिए। गीता के कम से कम पाँच श्लोकों का अर्थ समझते हुए नित्य पाठ करना चाहिए। भगवान शिव देवाधिदेव हैं, उनकी पूजा से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है। अपनी अपनी गुरु-परंपरा और श्रद्धानुसार अपने इष्ट देवी/देवता की नित्य उपासना करें।

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जो नित्य वेदपाठ करना चाहते हैं, उसके लिए निम्न विधि महात्माओं ने बताई है --
पुरुष-सूक्त का नित्य पाठ वेदपाठ ही है। यदि समय मिले तो पुरुष-सूक्त के साथ साथ -- श्री-सूक्त, रुद्र-सूक्त, सूर्य-सूक्त और भद्र-सूक्त का पाठ भी करें। उपरोक्त पाँचों सूक्तों का पाठ अधिक से अधिक एक घंटे में हो जाता है। इनका फल पूरे वेदपाठ के बराबर है। जिनको अभ्यास है वे आधे घंटे में ही पाँचों सूक्तों का पाठ कर लेते हैं। इस विषय पर किन्हीं श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ महात्मा से मार्गदर्शन प्राप्त करें।
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जिनका उपनयन यानि यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका है, उन्हें नित्य कम से कम दस (१० की संख्या में) बार गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। अधिकतम की कोई सीमा नहीं है। कोई संशय है तो जहाँ से आपने दीक्षा ली हैं वहीं से अपनी गुरु-परंपरा में अपने संशय का निवारण करें। गायत्री जप का अधिकार उन्हें ही है जिनका उपनयन संस्कार हो चुका है, अन्यों को नहीं।
अपनी अपनी गुरु-परंपरानुसार नित्य संध्या करें।
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ॐ तत्सत् !!
२७ सितंबर २०२३

Thursday, 25 September 2025

नक्षत्र भी अंधकार में ही ज्योतिर्मय होते हैं ---

 नक्षत्र भी अंधकार में ही ज्योतिर्मय होते हैं ---

प्रकाश का अस्तित्व अंधकार से है। असत्य के अंधकार से हम विचलित न हों। जो परमात्मा प्रकाश में हैं, वे ही अंधकार में हैं; लेकिन वे इन दोनों से परे हैं। हमारी चेतना में निरंतर परमात्मा का प्रकाश हो जिस से असत्य व अज्ञान का अन्धकार दूर हो। परमशिव के ध्यान में शाश्वत प्रकाश है। सुख-दुःख, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म -- सब उन्हीं के मन की कल्पना है। प्रकाश का अभाव ही अंधकार है, और अंधकार का अभाव ही प्रकाश। इस प्रकाश और अंधकार के खेल से ही यह सृष्टि चल रही है।
मनुष्य विवश है, परिस्थितियों का दास है। सब कुछ प्रकृति के वश में है; मनुष्य का राग-द्वेष और अहंकार ही बंधन है। लोभ और अहंकार से मुक्त व्यक्ति ही स्वतंत्र, धार्मिक और जीवनमुक्त है। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
२६ सितंबर २०२५

Wednesday, 24 September 2025

रूस के विरुद्ध बहुत अधिक दुष्प्रचार करवाया जा रहा है।

 रूस के विरुद्ध बहुत अधिक दुष्प्रचार करवाया जा रहा है। पहले उकराइन (Ukraine) की निर्वाचित सरकार को अमेरिकी षड़यंत्र और आर्थिक सहयोग से गिरवाया गया। फिर अमेरिका के सहयोग से एक नशेड़ी विदूषक (Joker) झेलेंस्की को वहाँ का राष्ट्रपति बनवाकर उकराइन में रूसी मूल के नागरिकों का नर-संहार आरंभ करवाया गया। रूसी मूल के छोटे-छोटे बालकों की हत्या भी उकराइन की अजोव बटालियन द्वारा बड़ी क्रूरता से की गई। रूस में शरणार्थियों की बाढ़ सी आ गई थी।

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क्रीमिया का इतिहास मैंने लिख कर पिछले लेखों में प्रस्तुत किया है। यह भी लिखा है कि किन परिस्थितियों में रूस को उकराइन के दोनेत्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों को स्वतंत्र सार्वभौमिक देशों के रूप में मान्यता दी गई। यह सब कर के ही रूस ने बाध्यता में विवश होकर यह सीमित युद्ध आरंभ किया।
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अब रूस के उद्देश्यों की पूर्ति हो गई है। वह इस युद्ध को समाप्त करना चाहता है। लेकिन NATO ऐसे नहीं होने दे रहा है। अगर रूस को अधिक दबाया गया तो आणविक युद्ध भी हो सकता है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२४ सितंबर २०२२

Monday, 22 September 2025

पित्तरों के देवता भगवान अर्यमा का ध्यान व उनकी अनुभूति .....

 पित्तरों के देवता भगवान अर्यमा का ध्यान व उनकी अनुभूति .....

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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
"अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्| पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्||१०:२९||
अर्थात् मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ; मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ||
पितृलोक में पित्तरों के देवता भगवान अर्यमा हैं| पुण्यात्माओं का वे ही कल्याण करते हैं| यदि हम पूर्ण भक्ति भाव से उनका गहरा ध्यान करें तो वे निश्चित रूप से अपनी उपस्थिती का आभास कराते हैं और हमारे किसी प्रश्न का उत्तर भी दे सकते हैं| इस तरह की अनुभूति मुझे भी हुई है, और मेरे एक प्रश्न का उत्तर भी उनसे मिला है|
"ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः| ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय||"
अर्थात् पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ हैं| अर्यमा पितरों के देव हैं| अर्यमा को प्रणाम|
हे पिता, पितामह, और प्रपितामह; हे माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम| आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें||
23 सितंबर 2020

हम जीवात्म भाव से मुक्त हों ...

 हम जीवात्म भाव से मुक्त हों ...

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हे मनमोहन भगवान वासुदेव, हमारा मन तुम्हारे ही श्रीचरणों में ही समर्पित हो, तुम्हें छोड़कर यह मन अन्यत्र कहीं भी नहीं भागे| तुम ही गुरु हो और तुम ही परमशिव और परमगति हो| तुम्हारे ही आदेश हैं ...
"यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्| यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्||९:२७||"
अर्थात् हे कौन्तेय तुम जो कुछ कर्म करते हो, जो कुछ खाते हो, जो कुछ हवन करते हो, जो कुछ दान देते हो और जो कुछ तप करते हो, वह सब तुम मुझे अर्पण करो|
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"ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्| ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना||४:२४||"
अर्थात् अर्पण (अर्थात् अर्पण करने का साधन श्रुवा) ब्रह्म है, और हवि (शाकल्य अथवा हवन करने योग्य द्रव्य) भी ब्रह्म है, ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा जो हवन किया गया है वह भी ब्रह्म ही है| इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है||
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"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||"
अर्थात् तूँ मुझ में ही मन और चित्त लगा, मेरा ही भक्त यानि मेरा ही भजन पूजन करने वाला हो, तथा मुझे ही नमस्कार कर| इस प्रकार करता हुआ तूँ मुझ वासुदेव में अपने साधन और प्रयोजन को समर्पित कर के मुझे ही प्राप्त होगा| मैं तुझ से सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तूँ मेरा प्रिय है|
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"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
अर्थात् सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो||
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इस नश्वर देह के साथ हमारा संबंध सिर्फ कर्मफलों का है| इस जन्म में किये हुए सकाम कर्मफलों को भोगने के लिए फिर से देह धारण करनी होगी| इसमें हमारी इच्छा नहीं चलती, सब कुछ प्रकृति के नियमों के अनुसार होता है| हमें कर्म करने का अधिकार है पर उनके फलों को भोगने में हम स्वतंत्र नहीं हैं| उनका फल भुगतने के लिए प्रकृति हमें बाध्य कर देती है| हमारे सारे सगे-सम्बन्धी, माता-पिता, संतानें, शत्रु-मित्र ..... सब पूर्व जन्मों के कर्मफलों के आधार पर ही मिलते हैं| अतः जिस भी परिस्थिति में हम हैं वह अपने ही कर्मों का भोग है, अतः कोई पश्चात्ताप न करके इस दुश्चक्र से निकलने का प्रयास करते रहना चाहिए|
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इस निरंतर हो रहे जन्म-मरण के दुश्चक्र से मुक्ति के लिए सर्वप्रथम तो हमें परमात्मा को स्थायी रूप से अपने हृदय में बैठाना होगा, और परमप्रेम से उनको समर्पित होना होगा| फिर सतत् दीर्घकाल की साधना द्वारा कर्ताभाव और देहबोध से मुक्त होना होगा|
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
२३ सितम्बर २०२०

ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर ...

 ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर ...


मेरे बड़े भाई साहब डॉ.दया शंकर बावलिया को महान उनके जीवन में प्रस्फुटित वेदान्त दर्शन ने बनाया| वे सदा हँसमुख और प्रसन्न रहते थे, किसी ने उन को कभी उदास या अप्रसन्न नहीं देखा| वे अपने पास उपचार के लिए आए हुए रोगियों की सेवा ईश्वर-सेवा मान कर ही करते थे| वे एक प्रख्यात नेत्र चिकित्सक (Ophthalmologist) तो थे ही, एक समाजसेवी भी थे| भारतवर्ष और सनातन धर्म/संस्कृति से उन्हें बहुत प्रेम था| पुस्तकों को पढ़ने के वे बहुत शौकीन थे| उनके पास अपनी स्वयं की पुस्तकों का विशाल संग्रह था| लेकिन पिछले अनेक वर्षों से वे सिर्फ उपनिषदों व उन के शंकर-भाष्य का ही स्वाध्याय कर रहे थे| कुछ दिनों पूर्व ही उन्होने दुबारा श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय आरंभ किया था| उनकी साधना भी गुप्त और अज्ञात ही थी|
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अपने आध्यात्मिक जीवन का आरंभ उन्होने अपने से वरिष्ठ नेत्र-चिकित्सक डॉ.योगेश चन्द्र मिश्र (पीतांबरा पीठ, दतिया के स्वामीजी महाराज के शिष्य) से बगलामुखी दीक्षा लेकर आरंभ किया था| संत-सेवा भी उनके स्वभाव में थी| रामानंदी संप्रदाय के एक विद्वान सिद्ध संत अवधेश दास (औलिया बाबा) जी महाराज से उन्हें विशेष प्रेम था| उन की उन्होने खूब सेवा की| जयपुर ले जा कर अच्छे से अच्छे अस्पतालों में उनका उपचार करवाया था| नाथ संप्रदाय के एक सिद्ध संत रतिनाथ जी से भी उनका विशेष प्रेम और खूब मिलना-जुलना था| क्षेत्र के सभी संत-महात्माओं से उनके बहुत अच्छे संबंध और प्रेम-भाव था|
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रा.स्व.से.संघ के वे सीकर विभाग (झुंझुनूँ , चुरू व सीकर जिलों के) के संघ-चालक थे| यह भी अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी| उनकी मनोकामना थी कि भारतवर्ष अपने परम वैभव के साथ एक आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र बने|
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जिस ब्राह्मण समाज में उन्होने जन्म लिया उसकी दुर्दशा से वे बहुत अधिक व्यथित थे| समाज के युवकों में व्याप्त नशाखोरी, अशिक्षा, धर्मविमुखता आदि को दूर करने के लिए उन्होने उनमें एक आत्मविश्वास जगाया| हमारे यहाँ का ब्राह्मण समाज उन्हें अपना सबसे बड़ा संरक्षक ही मानता था|
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अपने सच्चिदानंद स्वभाव में स्थिति को ही वे मोक्ष मानते थे, अन्यथा आत्मा तो नित्य मुक्त है| मैं उनको अपनी श्रद्धांजलि ईशावास्योपनिषद के पहले और सत्रहवें श्लोक से देता हूँ ...
"ॐ ईशावास्यमिदम् सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत |
तेनत्येक्तेन भुञ्जीथा मा गृध: कस्य स्विद्धनम् ||१||"
"वायुरनिलममृतमथेदं भस्मान्तं शरीरम् |
ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर ||१७||"
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ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते | ॐ शांति: शांति: शांतिः ||
२३ सितंबर २०२०

Sunday, 21 September 2025

(प्रश्न) : ब्रह्मशक्ति क्या है?

 (प्रश्न) : ब्रह्मशक्ति क्या है?

(उत्तर) : वर्षों पूर्व गोवा की सनातन संस्था के मार्गदर्शक डॉ.चारुदत्त पिंगले जी का एक लेख पढ़ा था जिसमें उन्होंने सभी हिंदुओं के लिये लिखा था कि हमें एक ब्रह्मशक्ति के जागरण की आवश्यकता है। इसके लगभग एक वर्ष पश्चात एक कार्यक्रम में दिल्ली में उनसे मिलना हुआ, जिसमें मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने ही ऐसा कहा था। उन्होने हाँ में उत्तर दिया। फिर मेरी चेतना में यह प्रश्न जागृत हुआ कि ब्रह्मशक्ति क्या है?
डॉ. पिंगले जी एक बार हमारे घर पर भी अचानक ही पधारे थे। जितने प्रबुद्ध नागरिकों को कम से कम समय में एकत्र कर सकता था, एकत्र किया और घर पर ही एक छोटी सी गोष्ठी भी रखी। फिर एक दिन पता चला कि वे झुंझुनूं के श्रीअरविंद आश्रम में ठहरे हुये हैं और मुझे याद कर रहे हैं। मैं वहाँ जाकर उनसे मिल कर आया। उनका पूरे भारत में भ्रमण होता है जिसका एकमात्र उद्देश्य हिंदुओं में आध्यात्मिक जन-जागृति है।
मेरी बहुत इच्छा थी और अभी भी है कि गोवा जाकर उनके सद्गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले जी के दर्शन करने की। लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया। डॉ. जयंत बाळाजी आठवले जी के बारे में सुना है कि वे एक वयोवृद्ध सिद्ध महापुरुष हैं जिन्होंने जीवन में परमात्मा का साक्षात्कार किया है। उनकी साधना भारत को हिन्दूराष्ट्र बनाने की साधना है।
ईश्वर की इच्छा थी कि मैं स्वयं अपनी साधना से ब्रह्मशक्ति का साक्षात्कार करूँ। ऐसा किसी सिद्ध महापुरुष गुरु की परमकृपा और अनुग्रह से ही हो सकता है। पूर्व-जन्मों के गुरुओं का आशीर्वाद काम आया और इस विषय में अब कोई संशय नहीं रहा है। यह विषय बुद्धि का नहीं, अनुभूतियों का है। इसका बोध कुंडलिनी जागरण और सभी चक्रों के भेदन के पश्चात ही होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में बताये हुये पुरुषोत्तम-योग की साधना से भगवान पुरुषोत्तम ही नहीं, परमशिव और ब्रह्मशक्ति का भी साक्षात्कार होता है। इस विषय पर किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है। साक्षात्कार में पूर्णता तो अभी तक नहीं आयी है, लेकिन बनते बनते काम बन जायेगा, ऐसा एक दिव्य आश्वासन मुझे प्राप्त है। किसी भी तरह का कोई बौद्धिक संशय नहीं है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०२५

कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत को तोड़कर खालिस्तान बनाया जा सकता है ---

कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत को तोड़कर खालिस्तान बनाया जा सकता है। यह मैं अपनी जानकारी के आधार पर कह रहा हूँ। भारत में खालिस्तानियों को सारा धन कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत की राजधानी वेंकूवर सिटी से आता है। सारी खालिस्तानी गतिविधियों का संचालन वहीं से होता है। वास्तव में इसके पीछे भारत के शत्रु अंग्रेजों का हाथ है। खलिस्तानियों को सारा धन और प्रोत्साहन ईसाई चर्च दे रहा है, जिसका उद्देश्य सनातन हिन्दू धर्म को नष्ट करना है।

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ब्रिटिश कोलम्बिया में मैं कम से कम पाँच-छह बार गया हूँ, अनेक मित्र वहाँ थे, और वहाँ खूब घूमा हूँ। अतः वहाँ की परिस्थितियों का अच्छा ज्ञान है। सारे खालिस्तानी समर्थक उसी क्षेत्र में रहते हैं। कभी समय मिला तो वहाँ के अपने अनुभव लिखूंगा।
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पुनश्च: ---
आप कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया प्रांत में कहीं भी जाएँगे तो भारत से जाकर बसे हुए पंजाबी सिक्ख वहाँ अवश्य मिलेंगे। वेंकूवर सिटी की इंडिया स्ट्रीट में एक पंजाबी मार्केट है, जहां जाकर ऐसा लगता है जैसे आप पंजाब के ही किसी नगर में घूम रहे हों। किसी भी अपरिचित भारतीय व्यक्ति को देखकर वे बहुत प्रसन्न होते हैं, और बड़े प्रेम से बात करते हैं। खालिस्तान विरोधी भी वहाँ खूब हैं। कई घरों में तो भाई-भाई के बीच दीवार खिंच गई है। भाई-भाई में खालिस्तान के कारण प्रेम समाप्त हो गया है। क्योंकि एक भाई खालिस्तान का विरोधी है तो दूसरा समर्थक। एक-दो ऐसे भी भारतीय सिक्ख मुझे मिले हैं, जिन की पत्नियाँ मेक्सिकन थीं। उन्हें विवाह योग्य कोई भारतीय महिला नहीं मिली तो मेक्सिकन महिला से विवाह कर लिया।
पंजाबियों के बाद गुजराती लोग सबसे अधिक हैं। अब तो उनमें आपस में विवाह भी होने लगे हैं। तीसरे नंबर पर दक्षिण भारतीय तमिल भी वहाँ अच्छी संख्या में हैं।

मैं अपनी जिज्ञासावश वहाँ के अनेक चर्चों में उन की प्रार्थना सभाओं में भी गया हूँ। मुझे हृदय से दुःख तो इस बात का हुआ कि अनेक भारतीय पंजाबी लोगों ने अपना धर्म छोड़कर ईसाई मत अपना लिया है।

वेंकूवर नगर के मध्य में एक बहुत बड़ा स्टेनली पार्क हैं, जहां छुट्टी के दिन खूब वयोवृद्ध पंजाबी जोड़े घूमने आते हैं। वे अपनी ही व्यथा का वर्णन करते हैं जो वास्तव में हृदय विदारक होती है।
२२ सितंबर २०२३

हरिःद्वार की यात्रा चल रही है। हरिःद्वार (कूटस्थ) और उसका मार्ग (सुषुम्ना में ब्रह्मनाड़ी) स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।

 

हरिःद्वार की यात्रा चल रही है। हरिःद्वार (कूटस्थ) और उसका मार्ग (सुषुम्ना में ब्रह्मनाड़ी) स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। हरिःद्वार के मार्ग का पक्का पता चलते ही घड़ी में समय देखना बंद कर देना चाहिए। सिर्फ श्रीहरिः की ओर ही देखो, घड़ी की ओर नहीं। श्रीहरिः की ओर देखते देखते, उसी की चेतना में चलते रहो, चलते रहो, और चलते रहो। अचानक ही एक दिन पाओगे कि हरिःद्वार तो बहुत पीछे छूट गया है, और हम श्रीहरिः के मध्य उनकी गोद में हैं। श्रीहरिः के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है।
दिन का आरंभ और समापन, हृदय के सम्पूर्ण प्रेम से हो। जीवन का हर क्षण उन्हें समर्पित हो।
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आध्यात्म में जो हमारे स्वभाव के अनुकूल है वही ठीक है। जो बात समझ में आये, उसे स्वीकार करें, जो समझ में न आये उसे छोड़ दें। समय नष्ट न करें, आगे बढ़ते रहें। किसी भी तरह की उलझन में न पड़ें। सारा मार्गदर्शन भगवान से प्राप्त होगा। किसी भी बात के लिए रुकें मत।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ सितंबर २०२३

हमारे पास ऐसा कौन सा सबसे अधिक कीमती धन है जिसे किसी भी परिस्थिति में खोना नहीं चाहिए ---

 हमारे पास ऐसा कौन सा सबसे अधिक कीमती धन है जिसे किसी भी परिस्थिति में खोना नहीं चाहिए ---

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सबसे बड़ा धन जो हमारे पास हो सकता है, वह है -- स्वयं में श्रद्धा और विश्वास। जीवन में निरंतर अनंत आनंदमय अवस्था ही भगवान का ध्यान है। आनंद भी ऐसा जो सचेतन, नित्य-नवीन, और शाश्वत हो। बिना श्रद्धा और विश्वास के हम न तो ध्यान कर सकते हैं, और न ही कोई आराधना। भगवान हमसे हमारा अंतःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार) माँगते हैं, और कुछ भी नहीं। हमें उन से परमप्रेम होगा तभी हम उन्हें अपना अंतःकरण दे सकते हैं।
बिना श्रद्धा और विश्वास के हम भगवान को तो क्या, किसी को भी कुछ भी नहीं दे सकते।
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"भवानी शङ्करौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥" (रामचरितमानस)
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"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥४:३९॥
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः॥४:४०॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥
श्रीमते रामचंद्राय नमः॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०२३

पितृ पक्ष चल रहा है, पूरी श्रद्धा से अपने पित्तरों का श्राद्ध करें ---

 पितृ पक्ष चल रहा है, पूरी श्रद्धा से अपने पित्तरों का श्राद्ध करे। जिस परिवार में बड़े-बूढ़ों की सेवा नहीं होती, पित्तरों का अनुग्रह उस परिवार पर नहीं होता। पित्तरों के देवता भगवान अर्यमा हैं। गीता में भगवान कहते हैं --

"अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्। पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥"
अर्थात् "मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ; मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ॥"
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श्राद्ध शब्द 'श्रद्धा' से बना है। स्कंद पुराण का कथन है कि 'श्राद्ध' नाम इसलिए पड़ा है कि उस कृत्य में श्रद्धा मूल है। ॠग्वेद में श्रद्धा को 'देवत्व' नाम दिया गया है। मनु व याज्ञवल्क्य ऋषियों ने धर्मशास्त्र में नित्य व नैमित्तिक श्राद्धों की अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि श्राद्ध करने से कर्ता पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है, तथा पितर संतुष्ट रहते हैं जिससे श्राद्धकर्ता व उसके परिवार का कल्याण होता है। श्राद्ध महिमा में कहा गया है-
'आयु: पूजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छति तथा राज्यं पितर: श्राद्ध तर्पिता।।'
अर्थात - जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके पितर संतुष्ट होकर उन्हें आयु, संतान, धन, स्वर्ग, राज्य मोक्ष व अन्य सौभाग्य प्रदान करते हैं। हमारी संस्कृति में माता-पिता व गुरु को विशेष श्रद्धा व आदर दिया जाता है, उन्हें देवतुल्य माना जाता है। 'पितरं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवता:' - अर्थात पितरों के प्रसन्न होने पर सारे ही देवता प्रसन्न हो जाते हैं।
२१ सितम्बर २०२१

भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं ? --- (पुनर्प्रेषित लेख).

 भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं ? --- (पुनर्प्रेषित लेख).

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यह एक प्रश्न है जो मैं आप सब से पूछ रहा हूँ कि भगवान कहाँ हैं, और कहाँ नहीं हैं? लोग अपनी सीमित चेतना व सीमित अल्प ज्ञान से पूछते हैं कि भगवान कहाँ है? इसका कोई उत्तर है तो वह स्वयं के लिए ही हो सकता है| दूसरों को कोई संतुष्ट नहीं कर सकता| परमात्मा की स्पष्ट प्रत्यक्ष उपस्थिती कहाँ कितनी है यह हम अनुभूत ही कर सकते हैं|
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वर्षा ऋतु चल रही है| वर्षा के पश्चात पृथ्वी से एक बड़ी मोहक गंध निकलती है| वह गंध जहाँ जितनी अधिक मात्रा में है, वहाँ परमात्मा की उपस्थिति उतनी ही अधिक है| यह हम अनुभूत कर सकते हैं| किसी व्यक्ति को देखते ही मन श्रद्धा से भर उठता है, और हम स्वतः ही उसे नमन करते हैं| यह उस व्यक्ति का तप है जिसे हम नमन करते हैं| परमात्मा ही उसके तप में व्यक्त होते हैं| हम किसी भी प्राणी को देखते हैं तो उस व्यक्ति की जो प्राण चेतना है वह परमात्मा ही है| परमात्मा सभी प्राणियों के प्राणों में व्यक्त होते हैं| अग्नि का तेज और बर्फ की शीतलता भी परमात्मा ही है| हर पदार्थ के अणु जिस ऊर्जा से निर्मित हैं, वह ऊर्जा भी परमात्मा है| उस ऊर्जा के पीेछे का विचार भी परमात्मा है| सारा जीवन और उस से परे भी जो कुछ है वह परमात्मा ही है| और भी अधिक स्पष्ट अनुभूति ध्यान साधना में सर्वव्यापी ब्रह्म तत्व की आनंददायक अनुभूति से होती है, जिसके पश्चात कोई संदेह नहीं रहता| जो विकार हैं वे सांसारिक पुरुषों के अज्ञान और अधर्म आदि के कारण ही हैं|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ......
"पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ| जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु||७:९||"
अर्थात् पृथ्वी में पवित्र गन्ध हूँ और अग्नि में तेज हूँ सम्पूर्ण भूतों में जीवन हूँ और तपस्वियों में मैं तप हूँ||
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रामचरितमानस के आयोध्याकाण्ड में ऋषि वाल्मीकि भगवान श्रीराम से यही प्रश्न पूछते है कि जहाँ आप न हों वह स्थान तो बता दीजिये ताकि मैं चलकर वही स्थान आपको दिखा दूं? वे स्वयं सारे स्थान भी बता देते हैं जहाँ भगवान श्रीराम को रहना चाहिए| बड़ा ही सुंदर प्रसंग है जो सभी को एक बार तो पढ़ना और समझना ही चाहिए .....
"काम क्रोध मद मान न मोहा, लोभ न क्षोभ न राग न द्रोहा |
जिनके कपट दंभ नहीं माया, तिन्ह के ह्रदय बसहु रघुराया ||
जे हरषहिं पर सम्पति देखी, दुखित होहिं पर बिपति विशेषी |
जिनहिं राम तुम प्राण पियारे, तिनके मन शुभ सदन तुम्हारे ||
जाति पांति धनु धरम बड़ाई, प्रिय परिवार सदन सुखदाई |
सब तजि रहहुँ तुम्हहि उर लाई, तेहिं के ह्रदय रहहु रघुराई ||"
यहाँ इस बात का स्पष्ट उत्तर मिल जाता है कि भगवान कहाँ हैं और कहाँ नहीं हैं| आप सब में व्यक्त परमात्मा को नमन!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ सितंबर २०१९

नेहरू-गांधी परिवार की अमर कहानी ---

 नेहरू-गांधी परिवार की अमर कहानी ---

अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव लिखते हैं - ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे। मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। जवाहर लाल की पुत्री का नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी था, और पत्नी का नाम था कमला नेहरू, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी।
आनन्द भवन का असली नाम था "इशरत मंजिल" जिसके मालिक थे मुबारक अली। मुबारक अली बहुत बड़े वकील थे, जिनके यहाँ मोतीलाल नेहरू सहायक की नौकरी करते थे।
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फ़िरोज़ गांधी का असली नाम फिरोज खान था जो नवाब अली खान के बेटे थे। नवाब अली खान एक गुजराती व्यापारी थे, जो इलाहाबाद और प्रतापगढ़ जिलों के दारू के सबसे बड़े ठेकेदार थे, और जवाहर लाल के घर पर किराने का सारा सामान, दारू, और आवश्यकता का हर सामान पहुंचाते थे। डिलीवरी बॉय का काम फिरोज खान करते थे। नवाब अली खान की कब्र इलाहाबाद में है जहाँ श्रद्धा-सुमन कोई अर्पित नहीं करता। नवाब अली खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे, और उनकी मां का उपनाम था "घांदी" (गांधी नहीं)। घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। एक झूठ हमें बताया जाता है कि राजीव गांधी पहले पारसी थे। एक भ्रम पैदा करने के लिये यह झूठ फैलाया गया था। इंदिरा प्रियदर्शिनी को शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था। एक तन्हा जवान लड़की जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और मां लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों, थोड़ी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी? इसी बात का फ़ायदा फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसला कर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा "मैमूना बेगम"। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था? जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गांधी को मिली तो उन्होंने ताबड़तोड़ नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गांधी रख लें। यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गांधी। विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गांधी ने इस बात का उल्लेख कभी आज तक कहीं नहीं किया और वे महात्मा भी कहलाये। फिरोज खान और मेमुना बेगम को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊंची नाक का भ्रम बना रहे।
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इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ नेहरू एज"(पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीति-रिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था। कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था। यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गांधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, हालांकि तलाक नहीं हुआ था। फ़िरोज गांधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे मांगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन
मूर्ति भवन" मे आने- जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ राहत मिली थी। १९६० में फ़िरोज गांधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालत में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गांधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गांधी (या श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात संजय गांधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था। संजय गांधी एक पारिवारिक मित्र मोहम्मद यूनुस का बेटा था। संजय गांधी का असली नाम दरअसल संजीव गांधी था, अपने बड़े भाई राजीव गांधी से मिलता जुलता। लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गांधी का नाम बदल कर नया पासपोर्ट संजय गांधी के नाम से बनवाया था (इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था)। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गांधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ। कहां? मोहम्मद यूनुस के घर पर, है ना आश्चर्य की बात। मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीति- रिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफ़िल रहें। मेनका जो कि एक सिख लडकी थी,संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था। पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गांधी अपनी मां को ब्लैकमेल करते थे, जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गांधी को अपने असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी। संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाबियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे। संजय गांधी के तीन अन्य मित्र कमलनाथ,अकबर अहमद डम्पी और विद्याचरण शुक्ल, ये चारों उन दिनों "चाण्डाल चौकडी" कहलाते थे। इनकी रंगरेलियों के किस्से तो बहुत मशहूर हो चुके हैं जैसे कि अंबिका सोनी और रुखसाना सुलताना (अभिनेत्री अमृता सिंह की मां) के साथ।
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राजीव गांधी ने, तूरिन (इटली) की महिला ऐंटोनिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना 'तथाकथित' पारसी धर्म छोड़ कर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था। राजीव गांधी बन गये थे रोबेर्तो और उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लड़की का नाम था "बियेन्का" और लड़के का "रॉल"। बड़ी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीति-रिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम "बियेन्का" से बदलकर प्रियंका और "रॉल" से बदलकर राहुल कर दिया गया। बेचारी भोली-भाली आम जनता !
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प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने लंदन की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था। हमें बताया गया है कि राजीव गांधी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है। ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहां से बिना किसी डिग्री के निकलना पड़ा था,क्योंकि वे लगातार तीन साल फ़ेल हो गये थे। लगभग यही हाल ऐंटोनिया माईनो का था। हमें यही बताया गया है कि वे भी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं। जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे कैम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गांधी कैम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा मांगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गांधी ने मुहैया कराई है,उन्होंने बडे ही मासूम अंदाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे कैम्ब्रिज की स्नातक हैं,अर्थात उनके चमचों ने यह बेपर की उडाई थी)। खोजी पत्रकार कहते हैं कि अंतोनियों मायनों वहाँ एक दारूखाने में शराब परोसने की काम करती थी जहां राजीव गांधी शराब पीने आते थे। पैसे खत्म हो जाने पर उधार की शराब खूब पी। अंतोनियों ने सारी उधार अपने साथ शादी की शर्त पर माफ कर दी। क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाजों के तहत किया गया,ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से। इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ता-धर्ता है और "रॉल" को भारत का भविष्य बताया जा रहा है। मेनका गांधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथों-हाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं,इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं।और यदि कोई ऐंटोनिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनी बेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है और हिन्दुस्तान की बदकिस्मती पर सिर धुनना ही होगा।
आजकल रौल गांधी -- एक जनेऊधारी दत्तात्रेय-गौत्रीय कश्मीरी ब्राह्मण बन गए हैं। बियांका भी गले में जनेऊ डाल कर घूमती है। इस बढेरन ने भी अपने बेटे का नाम रखा है - रोहन राजीव गांधी। नेहरू-गांधी खानदान ज़िन्दाबाद। यहाँ सब गांधी ही पैदा होते हैं।

Saturday, 20 September 2025

जिनमें सत्यनिष्ठा नहीं है, मैं उनके किसी काम का नहीं हूँ, सिर्फ सत्यनिष्ठ साधक ही मुझसे सपर्क रखें ---

जिनमें सत्यनिष्ठा नहीं है, मैं उनके किसी काम का नहीं हूँ, सिर्फ सत्यनिष्ठ साधक ही मुझसे सपर्क रखें। अन्य सब मुझे विष की तरह त्याग दें।

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मैं कृपा शंकर नाम का व्यक्ति नहीं, भगवान को पाने की अभीप्सा की वह दाहक अग्नि हूँ जो तब तक आपको बेचैन रखेगी जब तक आप भगवान को उपलब्ध नहीं हो जाओगे। जब आप परमात्मा को उपलब्ध हो जाओगे तब मुझे आनंद रूप में स्वयं के भीतर ही पाओगे। यह शरीर तो एक दिन भस्म होकर अनंत में विलीन हो जाएगा, लेकिन मैं एक शाश्वत आत्मा हूँ जो अपने प्रभु के साथ एक होकर सदा रहूँगा।
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हमें भगवान की प्राप्ति नहीं होती, इसका एकमात्र कारण सत्यनिष्ठा का अभाव है। अन्य कोई कारण नहीं है। हम झूठ बोल रहे हैं। हमने भगवान को कभी चाहा ही नहीं। भगवान सत्यनारायण हैं। वे ही एकमात्र सत्य हैं। यदि इसी जीवन में भगवत्-प्राप्ति करनी है तो अभी से यथासंभव अधिकतम समय भगवान के स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में बिताएँ।
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आने वाले अगले कुछ महीने आध्यात्मिक साधना के लिए अति श्रेष्ठ हैं। यदि आप श्रद्धालु निष्ठावान हैं तो आपको इसी जीवन में भगवान की प्राप्ति निश्चित रूप से होगी। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान का यह स्पष्ट संदेश है --
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥१८:५८॥"
अर्थात् - मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे॥
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥
श्रीमते रामचंद्राय नमः॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२३

आज का दिन बड़ा शुभ है, जीवन का हर पल शुभ है, शुभ ही शुभ है, और शुभ ही शुभ रहेगा ---

कल रात्री को परमात्मा की गहनतम चेतना में सोया, पूरी रात परमात्मा की गहनात्म चेतना में ही विश्राम किया। आज प्रातः जगन्माता की गोद से वैसे ही उठा जैसे एक शिशु अपनी माँ की गोद से सोकर उठता है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार -- सब में परमात्मा ही परमात्मा भरे पड़े है, और कुछ भी नहीं है। इस जीवन के अंत काल तक परमात्मा ही रहेंगे और पुनर्जन्म के समय भी केवल परमात्मा ही रहेंगे।

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जिनको सिर्फ ईश्वर से प्रेम हैं, केवल उन्हीं का स्वागत है। भगवान ने मुझे ठीक ही बोध कराया था कि कोई दो लाख लोगों में से एक के ही हृदय में भगवान की भक्ति होती है।
ॐ नमः शिवाय॥
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२४

बिना मांगी चार सलाह वृद्धावस्था के लिये ---

"दुनिया भी अजब सराय-ए-फ़ानी देखी, हर चीज़ यहाँ की आनी-जानी देखी।

जो आके न जाये वो बुढ़ापा देखा, जो जाके न आये वो जवानी देखी ॥" (फ़ानी)

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इसीलिए बिना मांगी ४ सलाह दे रहा हूँ। किसी को अच्छी लगे तो ठीक, और न लगे तो भी ठीक ---
(१) अब से न तो कोई ऐसा चिंतन करना है, और न कोई ऐसा कार्य करना है जो निज चेतना को ईश्वर से विपरीत दिशा में कर दे। हर समय सतर्क और ईश्वर की चेतना में रहना है।
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(२) जहाँ जो और जितना पूछा जाये, बस उतनी ही सलाह दीजिये। बाकी मौन रहिये। नयी पीढ़ी को बड़े-बूढ़ों की सलाह अच्छी नहीं लगती है।
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(३) जो कुछ भी हो रहा है, उसे होने दीजिए। साक्षी भाव में रहें, और हर समय प्रसन्न रहें। कभी कुछ लेने की जिद्द न करें। जो मिल जाये सो ठीक, और जो न मिले वह भी ठीक।
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(४) परिवार में सभी की यथासंभव सहायता कीजिए। अपना काम स्वयं करें। हर समय मुस्कराते रहें। वृद्धावस्था में बस इतना ही पर्याप्त है। और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० सितंबर २०२४