Sunday, 10 November 2024

हमारा आध्यात्मिक पतन कब होता है? ---

आध्यात्मिकता और लौकिकता में बहुत बड़ा अंतर है। आध्यात्म में जिस क्षण भी कुछ पाने की कामना या आकांक्षा हमारे अन्तःकरण में उत्पन्न होती है, उसी क्षण हमारा पतन होने लगता है। परमात्मा की अभीप्सा यानि पूर्ण समर्पण के अतिरिक्त अन्य कुछ भी भाव हमारे अन्तःकरण में न हों। कैसी भी कामना हो, वह हमें पतन के गड्ढे में डालती है। भक्ति में कामना का होना एक व्यभिचार है। कामनायुक्त भक्ति व्यभिचारिणी भक्ति होती है। भगवान की प्राप्ति हमें अव्यभिचारिणी भक्ति द्वारा ही हो सकती है। हम आत्माराम होकर निरंतर आत्मा में रमण करें।

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एक ओर तो हम ब्रह्मज्ञान यानि वेदान्त की बात करते हैं, दूसरी ओर लौकिक कामनाएँ करते हैं। दोनों ही एक दूसरे के विपरीत हैं। हृदय में एक अभीप्सा होनी चाहिए, न कि कोई आकांक्षा। आध्यात्म में हम परमात्मा को समर्पित होते हैं, न कि उनसे कोई आकांक्षा करते हैं। पूर्णतः समर्पित होना ही परमात्मा को प्राप्त करना है। भगवान से परमप्रेम की अवधारणा विश्व को भारतवर्ष की सबसे बड़ी देन है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३१ अक्तूबर २०२४

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