जैसे सूर्य की दो शक्तियाँ हैं ..... छाया और प्रकाश, वैसे ही परब्रह्म परमात्मा की दो शक्तियाँ है ..... विद्या और अविद्या|
सूर्य की तरफ आप मुख करेँ तो प्रकाश मिलता है और सूर्य की तरफ पीठ करें तो छाया मिलती है, वैसे ही ईश्वर कि ओर उन्मुख होने से विद्या प्राप्त होती है और विमुख होने से अविद्या|
विद्या उसे ही कहते हैं जो ईश्वर का बोध कराती हो, बाकी सब अविद्या है|
सूर्य की तरफ आप मुख करेँ तो प्रकाश मिलता है और सूर्य की तरफ पीठ करें तो छाया मिलती है, वैसे ही ईश्वर कि ओर उन्मुख होने से विद्या प्राप्त होती है और विमुख होने से अविद्या|
विद्या उसे ही कहते हैं जो ईश्वर का बोध कराती हो, बाकी सब अविद्या है|
जो हम वर्त्तमान में पढ़ रहे हैं वह सब सांसारिक ज्ञान अविद्या ही है|
विद्या और अविद्या दोनों का ज्ञान आवश्यक है| अविद्या के बिना विद्या भी किसी काम नहीं आती|
विद्यां च अविद्या च यस्त द्वेदोभय सह | अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते -----
विद्या और अविद्या दोनों का ज्ञान आवश्यक है| अविद्या के बिना विद्या भी किसी काम नहीं आती|
विद्यां च अविद्या च यस्त द्वेदोभय सह | अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते -----
Arun Kumar Upadhyay
ReplyDeleteपहली बार छाया-आतप का वर्णन सुना। यह कृपाशंकर जी जैसे ब्रहमविद् ही कर सकते हैं-
ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्य लोके,
गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे।
छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति,
पञ्चाग्नयो ये च त्रिणाचिकेताः।।
(कठोपनिषद्, 1/3/1)
मैं ने इसके ज्योतिषीय अर्थ पर ध्यान दिया था। परम गुहा (ब्रह्माण्ड, आकाशगंगा) का आकार (परिधि) परार्ध (परा = 1 पर 17 शून्य, उसका आधा) योजन (उषा सूक्त के अनुसार विषुव परिधि 40000 किमी का 720 भाग = 55.5 किमी) है। अतः व्यास 97000 प्रकाश वर्ष होगा। नासा का अनुमान 1990 में 1,00,000 तथा 2007 में 95,000 प्रकाश वर्ष था। 5 अग्नि विश्व के 5 पर्व हैं-सम्पूर्ण विश्व स्वयंभू, उसमें 100 अरब ब्रह्मांड, हमारे ब्रह्मांड में 100 अरब तारा, सौर मण्डल, ग्रह कक्षा, पृथ्वी ग्रह। इनमें सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी (अन्तिम अग्नि, अग्नि) का प्रभाव मिला जुला है-ये शिव के 3 नेत्र हैं-चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय। चिकेत = स्पष्ट, अलग अलग ज्ञान। नाचिकेत = मिला जुला, अलग करना सम्भव नहीं।
छाया-आतप की व्याख्या पहली बार सुनी, जो ब्रहमविद् ही कर सकते हैं।
छायातपौ = छाया + आतप।
विद्या = परा विद्या, एकीकरण = ज्ञान, मोक्ष कारक।
अविद्या = अपरा विद्या = विज्ञान।
मोक्षे धीर्ज्ञानमन्यत्र विज्ञानं शिल्प शास्त्रयोः (अमरकोष 1/1)
ज्ञानं ते ह सविज्ञानं इदं वक्ष्याम्यशेषतः (गीता, अध्याय, 4)
वर्गीकरण समझने के बाद ही उनकी एकता समझ सकते हैं।