संसार के सारे बंधनों का कारण -- हमारी चित्त की वृत्तियाँ ही हैं। ये चित्त की वृत्तियाँ क्या होती हैं? इनसे मुक्त कैसे हों? ---
Saturday, 28 May 2022
संसार के सारे बंधनों का कारण -- हमारी चित्त की वृत्तियाँ ही हैं ---
सारी इच्छायें भगवान को समर्पित कर दें, और अपने आत्म-स्वरूप में रहें ---
सारी इच्छायें भगवान को समर्पित कर दें, और अपने आत्म-स्वरूप में रहें ---
हमारे हर विचार, हर सोच, और हर भाव का स्त्रोत केवल परमात्मा है ---
>>> अपने हर विचार, हर सोच, और हर भाव के पीछे यह अनुभूत करो कि इन सब का स्त्रोत केवल परमात्मा है। न तो मैं कुछ सोच रहा हूँ, और न कुछ चिंतन कर रहा हूँ। परमात्मा ही एकमात्र कर्ता हैं, उन्हीं का एकमात्र अस्तित्व है। वे ही एकमात्र चिंतक हैं।
विश्व बड़ी तेजी से संकट की ओर बढ़ रहा है ---
विश्व बड़ी तेजी से संकट की ओर बढ़ रहा है। जिस तरह से अमेरिका व इंग्लैंड द्वारा NATO के माध्यम से यूक्रेन को भड़का कर और उसे शस्त्रास्त्रों की आपूर्ति कर के रूस पर युद्ध थोपा जा रहा है, उसमें निकट भविष्य में एक ऐसी स्थिति आ सकती है कि रूस बाध्य होकर अपनी दुर्धर्ष हाइपरसोनिक मिसाइलों से इंग्लैंड और अमेरिका पर हाइड्रोजन बमों की वर्षा कर सकता है। इसमें रूस को भी बहुत अधिक हानि होगी लेकिन इंग्लैंड और अमेरिका तो राख के ढेर में बदल जाएंगे। अमेरिका पर प्रहार करने को उत्तरी कोरिया और चीन भी अपनी कमर कस के बैठे हैं। युद्ध की स्थिति में उत्तरी कोरिया स्वयं के अस्तित्व को दांव पर लगाकर प्रशांत महासागर में अमेरिका के पश्चिमी तट, हवाई और गुआम द्वीप समूह का तो पूरा ही विनाश कर देगा। चीन भी ताइवान पर अधिकार करने के लिए युद्ध आरंभ कर देगा। इधर पश्चिम-एशिया में या तो ईरान ही रहेगा या इज़राइल। दोनों में से एक का नष्ट होना तो तय है। अरब देश इज़राइल का साथ देंगे। पाकिस्तान भी भारत के साथ बदमाशी कर सकता है। पाकिस्तान पर भरोसा करना गिरगिट पर भरोसा करना है। इस वर्ष के अंत तक यूरोप व एशिया के एक बहुत बड़े भूभाग और अमेरिका के विनाश के संभावना है। जापान और चीन के मध्य भी निकट भविष्य में युद्ध हो सकता है। महादेव की कृपा ने ही पहले भी कई बार बचाया है, और आगे भी वह ही बचा सकती है। अंततः भारत का पुनरोदय होगा। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
व्यवहार में कोई भक्ति, साधना/उपासना नहीं, तो सारा शास्त्रीय ज्ञान बेकार है ---
बड़ा उच्च कोटि का व अति गहन अध्ययन/स्वाध्याय, शास्त्रों का पुस्तकीय ज्ञान, बड़ी ऊँची-ऊँची कल्पनायें, दूसरों को प्रभावित करने के लिए बहुत आकर्षक/प्रभावशाली लिखने व बोलने की कला, --- पर व्यवहार में कोई भक्ति, साधना/उपासना नहीं, तो सारा शास्त्रीय ज्ञान बेकार है।
हम अपने दिन का प्रारंभ और समापन भगवान के ध्यान से ही करें ---
हम अपने दिन का प्रारंभ और समापन भगवान के ध्यान से ही करें। हमारा मन सत्य को ही हृदय में रखे, और असत्य विषयों की कामना का परित्याग करे। परमात्मा ही एक मात्र सत्य है। केवल परमात्मा की ही अभीप्सा हो, अन्य किसी भी तरह की कामना न हो। गीता में भगवान कहते हैं -
गुरु की कृपा और आध्यात्मिक प्रगति हो रही है या नहीं ? ---
गुरु की कृपा और आध्यात्मिक प्रगति हो रही है या नहीं ?
उपदेश और ज्ञान वहीं देना चाहिए जहाँ उनके प्रति श्रद्धा-विश्वास-निष्ठा हो ---
(१) आध्यात्मिक उपदेश और ज्ञान वहीं देना चाहिए जहाँ उनके प्रति श्रद्धा-विश्वास-निष्ठा और वास्तव में आवश्यकता हो। श्रोता की भी पात्रता होती है।
इस संसार ने मुझे आनंद का प्रलोभन दिया था, लेकिन मिला सिर्फ छल-कपट और झूठ ---
इस संसार ने मुझे आनंद का प्रलोभन दिया था, लेकिन मिला सिर्फ छल-कपट और झूठ। सारी आस्थाएँ अब सब ओर से हटकर केवल ईश्वर में ही प्रतिष्ठित हो गई हैं। किसी भी तरह की कोई आकांक्षा नहीं रही है। किसी से किसी भी तरह की कोई अपेक्षा नहीं है।
धर्म और आध्यात्म -- बलशाली और समर्थवान व्यक्तियों के लिए हैं, शक्तिहीनों के लिए नहीं ---
धर्म और आध्यात्म -- बलशाली और समर्थवान व्यक्तियों के लिए हैं, शक्तिहीनों के लिए नहीं ---
हम यह देह नहीं, यह देह हमारे अस्तित्व का एक छोटा सा भाग, और अनंत परमात्मा को अनुभूत करने का एक साधन मात्र है --
हम यह देह नहीं, यह देह हमारे अस्तित्व का एक छोटा सा भाग, और अनंत परमात्मा को अनुभूत करने का एक साधन मात्र है ---
मेरे अवचेतन मन में छिपे घोर तमोगुण का नाश भगवती महाकाली करें ---
मेरे अवचेतन मन में छिपे घोर तमोगुण का नाश भगवती महाकाली करें ---
हमारे पतन का एकमात्र कारण -- हमारे जीवन में तमोगुण की प्रधानता है ---
मैं अपने जीवन के पूरे अनुभव के साथ कह सकता हूँ कि हमारे पतन का एकमात्र कारण -- हमारे जीवन में तमोगुण की प्रधानता है। बिना सतोगुण के रजोगुण भी पतनोन्मुखी होता है। जीवन में सतोगुण श्रेष्ठ होता है, लेकिन इन सब गुणों से ऊपर उठना यानि त्रिगुणातीत होना ही सर्वश्रेष्ठ है, जो हमारे परमात्मा को पाने के मार्ग को प्रशस्त करता है।
हमें भगवान नहीं मिलते, इसका मुख्य कारण है "सत्यनिष्ठा का अभाव" ---
हमें भगवान नहीं मिलते, इसका मुख्य कारण है "सत्यनिष्ठा का अभाव" ---
जीवन के अंतकाल में भगवत्-प्राप्ति कैसे हो? ---
जीवन के अंतकाल में भगवत्-प्राप्ति कैसे हो? ---
भारत में केवल महान पुण्यात्माओं का ही जन्म और निवास हो ---
सत्य सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण का समय आ रहा है ---
मेरा अंतिम घोष है --- "सत्य सनातन धर्म की जय हो। असत्य और अंधकार की शक्तियाँ पराभूत हों।"
लययोग ---
एक ध्वनि ऐसी भी है जो किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती। परमात्मा की उस निःशब्द ध्वनि में तेलधारा की तरह तन्मय हो जाना -- एक बहुत बड़ी उपासना है, जिसे लययोग कहते हैं।