साकार या निराकार ? .....
मेरी अल्प व सीमित बुद्धि से साकार व निराकार में कोई अंतर नहीं है| जो कुछ भी सृष्ट हुआ है वह सब साकार है, चाहे वह परमात्मा की सर्वव्यापकता हो, या कोई मन्त्र या कोई ज्योति हो या कोई भाव हो| पूरी सृष्टि ही साकार है|
जिसकी सृष्टि ही नहीं हुई है सिर्फ वह ही निराकार है|
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आजकल भगवान की साधना कम, और भगवान के नाम पर व्यापार अधिक हो रहा है| निराकार ब्रह्म की परिकल्पना एक परिकल्पना ही है| हम भगवान के जिस भी रूप की उपासना करते हैं, उपास्य के गुण उपासक में निश्चित रूप से आते हैं|
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योगसुत्रों में भी कहा गया है कि किसी वीतराग पुरुष का चिंतन करने से हमारा चित्त भी वैसा ही हो जाता है| हम भगवान राम का ध्यान करेंगे तो भगवान राम के कुछ गुण हम में निश्चित रूप से आयेंगे| भगवान श्री कृष्ण, भगवन शिव, हनुमान जी, जगन्माता आदि जिस भी किसी के रूप को हम ध्यायेंगे हम भी वैसे ही बन जायेंगे| अतः हमारी क्या अभीप्सा है और स्वाभाविक रूप से हम क्या चाहते हैं, वैसी ही हमारी साधना हो|
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भगवान की साधना सिर्फ भगवान के प्रेम के लिए ही करें| भगवान को अपना अहैतुकी परम प्रेम दें, उनके साथ व्यापार ना करें| भगवान के साथ हम व्यापार कर रहे हैं इसीलिए सारे विवाद उत्पन्न हो रहे हैं| कई हिन्दू आश्रमों में भगवान् श्री कृष्ण के साथ साथ ईसा मसीह की भी पूजा और आरती होती है| कुछ काली मंदिरों में माँ काली की प्रतिमा के साथ मदर टेरेसा के चित्र की भी पूजा होती है| यह एक व्यापार है|
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साकार और निराकार में कोई भेद नहीं है| वास्तव में कुछ भी निराकार नहीं है| जो भी सृष्ट हुआ है वह साकार है| जो स्वयं को निराकार का साधक कहते हैं वे भी या तो भ्रूमध्य में प्रकाश का ध्यान करते हैं या किसी मंत्र का जप या ध्यान करते हैं| वह प्रकाश भी साकार है और मन्त्र भी साकार है| स्वयं को निराकार के साधक बताने वाले अपने गुरु के मूर्त रूप का ध्यान करते हैं, वह भी साकार है| किसी भाव का मन में आना ही उसे साकार बना देता है| अतः इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है| देव भूत्वा देवम यजेत, शिव भूत्वा शिवम यजेत|
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मुझे कोई निराशा, हताशा व संशय आदि नहीं हैं| मेरा चिंतन एकदम स्पष्ट है|
किसी से कोई कामना या अपेक्षा भी नहीं है| भगवान की साधना ही साधना का फल है| वे स्वयं ही साधक, साधना और साध्य हैं| साधना में कोई माँग नहीं बल्कि समर्पण होता है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
३० जून २०१७
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