Monday, 23 June 2025

साकार की साधना -- निराकार से बहुत अधिक आनंददायक है ---

 साकार की साधना -- निराकार से बहुत अधिक आनंददायक है। साकार साधना के आलोचक जो तर्क देते हैं वे सब रटे-रटाये होते हैं, उनमें उनकी कोई निजानुभूति नहीं होती। उनके साथ तर्क करना समय की बर्बादी है।

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स्वनामधन्य भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने अपने परमगुरु आचार्य गौड़पाद द्वारा प्रतिपादित अद्वैत वेदांत का समर्थन करते हुए अपनी सर्वप्रथम टीका उनके ग्रंथ "मांडूक्यकारिका" पर लिखी थी। आचार्य शंकर स्वयं परम भक्त थे, और भगवती राजराजेश्वरी महात्रिपुरसुंदरी (श्रीविद्या) की आराधना करते थे। ब्रहमसूत्रों, उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता की टीका के साथ साथ उन्होने "सौन्दर्यलहरी" नामक दिव्य ग्रंथ की रचना भी की। आचार्य शंकर एक परम भक्त थे, इसलिए विभिन्न देवी-देवताओं की सबसे अधिक भक्तिमय स्तुतियाँ उन्होने लिखी हैं।
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आध्यात्मिक लेख लिखने में मुझे भी बहुत आनंद आता है, लेकिन अब एक उलझन उत्पन्न हो गई है। लिखने का एक ही उद्देश्य था कि भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती का आभास हो। अब तो भगवान स्वयं ही हृदय में आकर बैठ गए है। मैं भी स्वयं को उनके हृदय में पाता हूँ। अब भगवान के ध्यान के प्रति बहुत गहरा आकर्षण है। किसी भी तरह का कोई संशय किसी भी स्तर पर नहीं रहा है। यह उनकी परम कृपा है कि वे मुझे सदा याद रखते हैं। इसे मैं जीवन की उच्चतम उपलब्धि मानता हूँ जो भगवान की कृपा से अनायास ही प्राप्त हो गई है।
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सभी में अपने आराध्य को नमन करता हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जून २०२३

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