Sunday, 23 November 2025

सांस तो स्वयं महासागर ले रहा है, सांसें लेने का मेरा भ्रम मिथ्या है ---

एक बार अनुभूति हुई कि सामने एक महासागर आ गया है, तो बिना किसी झिझक के मैंने उसमें छलांग लगा दी और जितनी अधिक गहराइयों में जा सकता था उतनी गहराइयों में चला गया। फिर सांस लेने की इच्छा हुई तो पाया कि सांस तो स्वयं महासागर ले रहा है, सांसें लेने का मेरा भ्रम मिथ्या है। फिर भी पृथकता का यह मिथ्या बोध क्यों? यही तो जगत की ज्वालाओं का मूल है।

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“शिवो भूत्वा शिवं यजेत्” --- जीवन में हम क्या बनना चाहते हैं, और क्या प्राप्त करना चाहते हैं? यह सब की अपनी अपनी सोच है। इस जीवन के अपने अनुभवों और विचारों के अनुसार इस जीवन में मैं जो कुछ भी प्राप्त करना चाहता हूँ, वह तो शिवभाव में मैं स्वयं हूँ। स्वयं से परे अन्य कुछ है ही नहीं। हे प्रभु, स्वयं को मुझमें व्यक्त करो। २३ नवंबर २०२४

Saturday, 22 November 2025

भगवान से बड़ा छलिया और कोई नहीं है .....

 भगवान से बड़ा छलिया और कोई नहीं है .....

हमने भगवान के साथ बहुत अधिक छल किया होगा तभी तो वे भी हमारे साथ छल ही कर रहे हैं| उनसे बड़ा छलिया और कोई नहीं है| सर्वत्र होकर भी वे समक्ष नहीं हैं, इस से बड़ा छल और क्या हो सकता है?
चलो, तुम्हारी मर्जी ! तुम चाहे जैसा करो, पर तुम्हारे बिना हम अब और नहीं रह सकते| इसी क्षण तुम्हें व्यक्त होना ही होगा| कोई अनुनय-विनय हम नहीं करेंगे क्योंकि तुम्हारे साथ एकरूपता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| तुम्हारे बिना बड़ी भयंकर पीड़ा हो रही है, यह बहुत बड़ी विपत्ती है| अब तो रक्षा करो| इतनी निष्ठुरता से स्वयं से विमुख क्यों कर रहे हो? तुम्हारे से विमुखता ही हमारे सब दुखों कष्टों का कारण है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ गुरु ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ नवम्बर २०१९

'अहिंसा परमो धर्म' ....

 'अहिंसा परमो धर्म' ..... यह महाभारत का वाक्य है जिसे समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि हिंसा क्या है| एक वीतराग व्यक्ति ही अहिंसक हो सकता है, सामान्य सांसारिक व्यक्ति तो कभी भी नहीं| मनुष्य का राग-द्वेष, अहंकार और लोभ ही हिंसा है|

जिन्होनें काम, क्रोध, लोभ, राग-द्वेष और अहंकार रूपी सारे अरियों (शत्रुओं) का समूल नाश किया है, उन सभी अरिहंतों को मैं प्रणाम करता हूँ चाहे वे किसी भी मत-मतांतर के हों, और इस ब्रह्मांड में कहीं भी रहते हों| उन्हें बारंबार प्रणाम है|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ गुरु ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ नवम्बर २०१९

Friday, 21 November 2025

बड़ी कुटिलता से भारत में हिंदुओं को धर्म-निरपेक्षता के नाम पर द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाया गया है|

 बड़ी कुटिलता से भारत में हिंदुओं को धर्म-निरपेक्षता के नाम पर द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाया गया है|

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सारी समानता की बातें झूठी हैं| सत्य-सनातन-हिन्दू-धर्म ही भारत की अस्मिता है, जिसके बिना भारत, भारत नहीं है| हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए ही पाकिस्तान का निर्माण किया गया, और भारत को धर्म-निरपेक्ष (अधर्म-सापेक्ष) व समाजवादी घोषित कर तथाकथित अल्पसंख्यक तुष्टीकरण किया जा रहा है| भारत का संविधान हिंदुओं को अपने धर्म की शिक्षा का अधिकार अपने विद्यालयों में नहीं देता, हिंदुओं के सारे मंदिरों को सरकार ने अपने अधिकार में ले रखा है| मंदिरों के धन की सरकारी लूट हो रही है| यह धन हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए लगना चाहिए था| हिंदू धर्म को भी इस्लाम व ईसाईयत के बराबर संवैधानिक अधिकार मिलने चाहियें|
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जो लोग स्वयं को राष्ट्रवादी कहते हैं, उन्हें अपनी संतानों के लिए अपनी धार्मिक शिक्षा की माँग करनी चाहिए| अल्पसंख्यकवाद और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ईसाईयत और इस्लाम को ही अनुचित संरक्षण दिया जा रहा है, और हिंदुओं को अनंत जातियों में बांटा जा रहा है| हिन्दू धर्म के अनुयायियों को भी अन्य मज़हबों व रिलीजनों के बराबर ही संवैधानिक अधिकार मिलने चाहियें|
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सनातन-धर्म और भारत पर जितने आक्रमण और मर्मांतक प्रहार हुए हैं, उन का दस-लाख-वाँ प्रहार भी किसी अन्य संस्कृति पर होता तो वह तुरंत नष्ट हो जाती| भारत का धर्म, सृष्टि का धर्म और कालजयी है| अधोमुखी होकर मनुष्य की चेतना ही पतित हो गई थी| जब मनुष्य की चेतना का उत्थान होगा तभी उन्हें सनातन धर्म का ज्ञान होगा|
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हम जीव नहीं, शिव हैं| परमप्रेम और करुणा हमारा स्वभाव है| हमारे जीवन का उद्देश्य ... अव्यक्त ब्रह्म को व्यक्त करना है| यही सनातन धर्म का सार है, बाकी सब उसी का विस्तार है| कृपा शंकर
२२ नवंबर २०२०

अंडमान के संरक्षित नार्थ सेंटिनल द्वीप पर जाने की अनुमति एक विदेशी पादरी को किसने दी ?

 अंडमान के संरक्षित नार्थ सेंटिनल द्वीप पर जाने की अनुमति एक विदेशी पादरी को किसने दी? किस के आदेश से वहाँ हेलिकोप्टर गया? यह एक आपराधिक कृत्य था जिसके लिए दोषी को सजा मिलनी चाहिए| यह द्वीप संरक्षित द्वीप है जिस के आसपास जाने की किसी को भी अनुमति नहीं है| भारत सरकार के एक वैज्ञानिक अनुसंधान जहाज द्वारा इस द्वीप के आसपास के भौगोलिक क्षेत्र में चालीस वर्ष पूर्व १९७८ में एक वैज्ञानिक भूगर्भीय सर्वे हुआ था| मैं भी उस जहाज पर था| वहां के निवासियों को दूरबीन से देखा था| वे नग्न रहते हैं, कोई कपड़ा नहीं पहिनते हैं| किसी भी बाहरी व्यक्ति को वहां नहीं आने देते, और स्वयं भी कहीं नहीं जाते| बाहर के विश्व से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है| वे लोग अभी भी पाषाण युग में रहते हैं| कोई उनकी बोली भी नहीं समझता| भारत सरकार ने उसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है, किसी को भी वहां जाने की अनुमति नहीं है| अतः इस विदेशी पादरी की हिम्मत कैसे हुई अवैध रूप से वहाँ जाने की? किस ने उसको बचाने के लिए हेलिकोप्टर वहां भेजा? यह वहाँ चर्च के प्रभाव को दिखाता है|

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अंडमान की ज़रावा जनजाति भी ऐसे ही रहती थी| जिनसे बड़ी कठिनाई से भारत सरकार के ही एक सिख पुलिस अधिकारी ने बड़े प्रेम से बड़ी मुश्किल से संपर्क किया था जो कई वर्षों में सफल हुआ| मैं चालीस वर्ष पूर्व उस अधिकारी से पोर्ट ब्लेयर में मिला भी था| अब वे जरावा जनजाति के लोग धीरे धीरे समाज के संपर्क में आ रहे हैं| जरावा जनजाति कभी बड़ी संख्या में थी| वे लोगों से मिलते जुलते भी थे| ब्रिटिश शासन के समय की बात है| एक दूधनाथ तिवारी नाम के भारतीय बंदी की मित्रता उनकी एक महिला से हो गयी और वह उसके साथ रहने भी लगा| जरावा जनजाति अंडमान पर ब्रिटिश अधिकार से बड़ी त्रस्त थी| एक बार उन्होंने योजना बनाई कि रात के समय धावा बोलकर सभी अंग्रेजों को मार देंगे| उनके पास सिर्फ तीर-कमान ही होते थे| दूधनाथ ने गद्दारी की और अँगरेज़ अधिकारियों को सारी बात बता दी| रात के समय जब जरावा जनजाति ने अपने नुकीले तीरों से हमला किया तब अँगरेज़ अधिकारी सतर्क थे और उन्होंने बंदूकों से फायर कर के सैंकड़ों जरावा लोगों को मार डाला| बचे-खुचे जरावा लोग एक दुर्गम क्षेत्र में चले गए और बाहरी विश्व से अपने सम्बन्ध तोड़ लिए|
२२ नवम्बर २०१८

“धार्याति सा धर्म:” ... धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है ---

 “धार्याति सा धर्म:” ... धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है| धर्म कभी भय और प्रलोभन पर आधारित नहीं होता| जहाँ सिर्फ भय और प्रलोभन है, वह धर्म नहीं, अधर्म है| भय या प्रलोभन के वशीभूत होकर किए गए कर्म कभी धार्मिक नहीं हो सकते, वे अधार्मिक ही होंगे| भारत में धर्म की व्याख्या अनेक ग्रन्थों में की गई है, लेकिन कणाद ऋषि द्वारा वैशेषिक सूत्रों में की गई परिभाषा ही सर्वमान्य और सर्वाधिक लोकप्रिय है ... "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स धर्म:||"

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जिस से हमारे अभ्यूदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो, वही धर्म है| अभ्युदय का अर्थ है ... जिस से हमारा उत्तरोत्तर विकास हो| निःश्रेयस का अर्थ है ... कष्टों या दुखों का अभाव, कल्याण, मंगल, मुक्ति और मोक्ष| इस का अर्थ यही हुआ कि ... "जिस से हमारा उत्तरोत्तर विकास, कल्याण और मंगल हो, व सब तरह के दुःखों, कष्टों से मुक्ति मिले वही धर्म है|
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अभ्युदय और निःश्रेयस ये वे दो लक्ष्य हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए मनुष्य अपने जीवन में प्रयत्न करते हैं| अभ्यूदय का सबसे बड़ा लक्ष्य है निज जीवन में ईश्वर की प्राप्ति, यानि निज जीवन में ईश्वर को व्यक्त करना| निःश्रेयस का सबसे बड़ा लक्ष्य है अनात्मबोध से मोक्ष यानि मुक्ति|
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मनुस्मृति में धर्म के लक्षण बताए गए हैं| बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में और महाभारत, व रामायण जैसे ग्रन्थों में धर्म की गहनतन और अति विस्तृत जानकारी है, जिसका स्वाध्याय जिज्ञासु को स्वयं करना होता है|
शब्द "ख" आकाश तत्व यानि परमात्मा को व्यक्त करने के लिए होता है| परमात्मा से समीपता ही सुख है, और परमात्मा से दूरी होना ही दुःख है| विषय-वासनाओं में कोई सुख नहीं है, यह सुख का आभासमात्र है जो अंततः दुःखों की ही सृष्टि करता है|
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जैसा मेरी अति अल्प और सीमित बुद्धि से समझ में आया वह मेंने लिख दिया| इस से अधिक जानकारी के लिए जिज्ञासुओं को स्वयं स्वाध्याय और सत्संग करना होगा| अंत में यही कहूँगा कि सत्य-सनातन-धर्म ही धर्म है, अन्य सब पंथ, मज़हब और रिलीजन हैं|
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कृपा शंकर
२१ नवंबर २०२०

Thursday, 20 November 2025

जो हम स्वयं की दृष्टि में हैं, भगवान की दृष्टि में भी वही हैं। अतः निरंतर अपने शिव-स्वरूप में रहने की उपासना करें। यही हमारा स्वधर्म है।

 जो हम स्वयं की दृष्टि में हैं, भगवान की दृष्टि में भी वही हैं। अतः निरंतर अपने शिव-स्वरूप में रहने की उपासना करें। यही हमारा स्वधर्म है।

भगवान को हम वही दे सकते हैं, जो हम स्वयं हैं। जो हमारे पास नहीं है वह हम भगवान को नहीं दे सकते। हम भगवान को प्रेम नहीं दे सकते क्योंकि हम स्वयं प्रेममय नहीं हैं।
गीता के सांख्य योग में भगवान हमें -- "निस्त्रैगुण्य", "निर्द्वन्द्व", "नित्यसत्त्वस्थ", "निर्योगक्षेम", व "आत्मवान्" बनने का आदेश देते हैं --
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥२:४५॥"
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इसे और भी अधिक ठीक से समझने के किए भगवान का ध्यान करें। आचार्य शंकर व अन्य आचार्यों के भाष्य पढ़ें। इसका चिंतन, मनन, व निदिध्यासन करें। बनना तो पड़ेगा ही, इस जन्म में नहीं तो अनेक जन्मों के पश्चात। मंगलमय शुभ कामनाएँ !!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ नवम्बर २०२३
जो हम स्वयं की दृष्टि में हैं, भगवान की दृष्टि में भी वही हैं। अतः निरंतर अपने शिव-स्वरूप में रहने की उपासना करें। यही हमारा स्वधर्म है।
भगवान को हम वही दे सकते हैं, जो हम स्वयं हैं। जो हमारे पास नहीं है वह हम भगवान को नहीं दे सकते। हम भगवान को प्रेम नहीं दे सकते क्योंकि हम स्वयं प्रेममय नहीं हैं।
गीता के सांख्य योग में भगवान हमें -- "निस्त्रैगुण्य", "निर्द्वन्द्व", "नित्यसत्त्वस्थ", "निर्योगक्षेम", व "आत्मवान्" बनने का आदेश देते हैं --
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥२:४५॥"
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इसे और भी अधिक ठीक से समझने के किए भगवान का ध्यान करें। आचार्य शंकर व अन्य आचार्यों के भाष्य पढ़ें। इसका चिंतन, मनन, व निदिध्यासन करें। बनना तो पड़ेगा ही, इस जन्म में नहीं तो अनेक जन्मों के पश्चात। मंगलमय शुभ कामनाएँ !!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ नवम्बर २०२३