Saturday, 6 December 2025

भारतवर्ष सदा एक हिदू राष्ट्र था, हिन्दू राष्ट्र है, और हिन्दू राष्ट्र ही रहेगा .....

 भारतवर्ष सदा एक हिदू राष्ट्र था, हिन्दू राष्ट्र है, और हिन्दू राष्ट्र ही रहेगा .....

भारतवर्ष ही धर्म है और धर्म ही भारतवर्ष है| भारतवर्ष के बिना धर्म नहीं है, और धर्म के बिना भारतवर्ष नहीं है| हिन्दू राष्ट्र एक विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है| यह सृष्टि परमात्मा के संकल्प से प्रकृति द्वारा चल रही है| यदि हमारा संकल्प परमत्मा के संकल्प से जुड़ जाए तो हम भी इस सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहार में भागीदार हो सकते हैं| हमारा दृढ़ संकल्प इस सृष्टि का परावर्तन कर सकता है| हमारे साधू संत धर्मरक्षार्थ ही साधना करते हैं न कि किसी मुक्ति के लिए| हिन्दु राष्ट्रकी स्थापना ब्रह्मतेजयुक्त संतों के संकल्प से होगी| हमें सबसे बड़ी आवश्यकता है ब्रह्मतेज की| वह ब्रह्म तेज ही भारत को पुनर्ज्जीवन देगा|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
०६ दिसंबर २०१३

Thursday, 4 December 2025

सत्यनिष्ठा से निरंतर परमात्मा के हृदय में रहो, व परमात्मा को सदा निज हृदय में रखो ---

सत्यनिष्ठा से निरंतर परमात्मा के हृदय में रहो, व परमात्मा को सदा निज हृदय में रखो। यही हमारा सर्वोच्च रक्षा-कवच है।


अपनी चेतना के उच्चतम बिन्दु पर रहें। वहीं से नीचे उतर कर इस भौतिक देह के माध्यम से साधना करें, और पुनश्च: उच्चतम पर लौट जायें। उच्चतम पर ही परमशिव पुरुषोत्तम की अनुभूति होती है। यह मनुष्य देह भगवान द्वारा दिया हुआ एक साधन है जिसे स्वस्थ रखें, क्योंकि इसी के माध्यम से हम आत्म-साक्षात्कार कर सकते हैं। शब्दजाल में न फँसें। अपनी अनुभूति स्वयं करें। कोई अन्य नहीं है। अपने आराध्य इष्ट देव की छवि को आत्म-भाव से कूटस्थ में सदा अपने समक्ष रखें। जब भूल जायें तब याद आते ही पुनश्च उनका स्मरण और आंतरिक दर्शन प्रारम्भ कर दें।

पुरुषोत्तम भगवान वासुदेव की छवि मेरे समक्ष कूटस्थ सूर्य-मण्डल में निरंतर बनी रहती है। उनका जपमंत्र भी निरंतर स्वतः ही चलता रहता है। वे ही परमशिव हैं, वे ही जगन्माता हैं, व वे ही श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं। मैं तो एक निमित्त साक्षी मात्र हूँ। भगवान आपनी साधना स्वयं कर रहे हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !! कृपा शंकर ४ नवंबर २०२३

Tuesday, 2 December 2025

उपासना'.... 'तैलधारा' की तरह क्यों होती है? गुरु रूप ब्रह्म कौन हैं? ---

 उपासना'.... 'तैलधारा' की तरह क्यों होती है? गुरु रूप ब्रह्म कौन हैं?

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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
"ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।
सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्||१२:३||"
"संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।
ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः॥१२:४॥"
अर्थात् -- "परन्तु जो भक्त अक्षर ,अनिर्देश्य, अव्यक्त, सर्वगत, अचिन्त्य, कूटस्थ, अचल और ध्रुव की उपासना करते हैं॥"
"इन्द्रिय समुदाय को सम्यक् प्रकार से नियमित करके, सर्वत्र समभाव वाले, भूतमात्र के हित में रत वे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं॥"
अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने उपरोक्त श्लोक पर विस्तृत व अति सुंदर टीकाएँ लिखी हैं, जिन का स्वाध्याय करना चाहिये, विशेषतः शंकर भाष्य का।
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उपासना का शाब्दिक अर्थ है .... समीप बैठना| हमें किसके समीप बैठना चाहिए? मेरी चेतना में इसका एक ही उत्तर है ... गुरु रूप ब्रह्म के| गुरु रूप ब्रह्म के सिवाय अन्य किसी का अस्तित्व चेतना में होना भी नहीं चाहिए| यहाँ यह भी विचार करेगे कि गुरु रूप ब्रह्म क्या है|
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भगवान आचार्य शंकर के अनुसार "उपास्य वस्तु को शास्त्रोक्त विधि से बुद्धि का विषय बनाकर, उसके समीप पहुँचकर, तैलधारा के सदृश समान वृत्तियों के प्रवाह से दीर्घकाल तक उसमें स्थिर रहने को उपासना कहते हैं"| यहाँ उन्होंने "तैलधारा" शब्द का प्रयोग किया है जो अति महत्वपूर्ण है| तैलधारा के सदृश समानवृत्तियों का प्रवाह क्या हो सकता है? पहले इस पर विचार करना होगा|
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ध्यान साधना में जब प्रणव यानि अनाहत नाद की ध्वनी सुनाई देती है तब वह तैलधारा के सदृश होती है| प्रयोग के लिए एक बर्तन में तेल लेकर उसे दुसरे बर्तन में डालिए| जिस तरह बिना खंडित हुए उसकी धार गिरती है वैसे ही अनाहत नाद यानि प्रणव की ध्वनी सुनती है| प्रणव को परमात्मा का वाचक यानि प्रतीक कहा गया है|
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समानवृत्ति क्या हो सकती है? जहाँ तक मैं समझता हूँ इसका अर्थ है श्वास-प्रश्वास और वासनाओं की चेतना से ऊपर उठना| चित्त स्वयं को श्वास-प्रश्वास और वासनाओं के रूप में व्यक्त करता है| अतः समानवृत्ति शब्द का यही अर्थ हो सकता है|
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मेरी सीमित अल्प बुद्धि से "उपासना" का अर्थ .... हर प्रकार की चेतना से ऊपर उठकर ओंकार यानि अनाहत नाद की ध्वनी को सुनते हुए उसी में लय हो जाना है| "मेरी दृष्टी में यह ओंकार ही गुरु रूप ब्रह्म है|"
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हमें ओंकार की चेतना से भी शनेः शनेः ऊपर उठना होगा| ओंकार तो उस परम शिव का वाचक यानि प्रतीक मात्र है जिस पर हम ध्यान करते हैं| हमारी साधना का उद्देश्य तो परम शिव की प्राप्ति है| उपासना तो साधन है, पर उपास्य यानि साध्य तो परम शिव हैं| उपासना का उद्देश्य उपास्य के साथ एकाकार होना है| "उपासना" और "उपनिषद्" दोनों का अर्थ एक ही है| प्रचलित रूप में परमात्मा की प्राप्ति के किसी भी साधन विशेष को "उपासना" कहते हैं|
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व्यवहारिक रूप से किसी व्यक्ति में कौन सा गुण प्रधान है उससे वैसी ही उपासना होगी| उपासना एक मानसिक क्रिया है| उपासना निरंतर होती रहती है| मनुष्य जैसा चिंतन करता है वैसी ही उपासना करता है|
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तमोगुण की प्रधानता अधिक होने पर मनुष्य परस्त्री/परपुरुष व पराये धन की उपासना करता है जो उसके पतन का कारण बनती है| चिंतन चाहे परमात्मा का हो या परस्त्री/पुरुष का, होता तो उपासना ही है|
रजोगुण प्रधान व सतोगुण प्रधान व्यक्तियों की उपासना भी ऐसे ही अलग अलग होगी| अतः एक उपासक को सर्वदा सत्संग करना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में कुसंग का त्याग करना चाहिए क्योंकि संगति का असर पड़े बिना रहता नहीं है| मनुष्य जैसे व्यक्ति का चिंतन करता है वैसा ही बन जाता है| योगसूत्रों में एक सूत्र आता है ..... "वीतराग विषयं वा चित्तः", इस पर गंभीरता से विचार करें|
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उपासना के लिए व्यक्त तथा अव्यक्त दोनों आधार मान्य हैं| जीव वस्तुत: शिव ही है, परंतु अज्ञान के कारण वह इस प्रपंच के पचड़े में पड़कर भटकता फिरता है| ज्ञान के द्वारा अज्ञान की ग्रंथि का भेदन कर अपने परम शिवत्व की अभिव्यक्ति करना ही उपासना का लक्ष्य है|
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साधारणतया दो मार्ग उपदिष्ट हैं - ज्ञानमार्ग तथा भक्तिमार्ग।
ज्ञान के द्वारा अज्ञान का नाश कर जब परमतत्व का साक्षात्कार संपन्न होता है, तब उस उपासना को ज्ञानमार्गीय संज्ञा दी जाती है|
भक्तिमार्ग में भक्ति ही भगवान्‌ के साक्षात्कार का मुख्य साधन स्वीकृत की जाती है| शाण्डिल्य के अनुसार भक्ति ईश्वर में सर्वश्रेष्ठ अनुरक्ति है| नारद जी के अनुसार ईश्वर से परम प्रेम ही भक्ति है| दोनों ही मार्ग उपादेय तथा स्वतंत्र रूप से फल देनेवाले हैं| उपासना में गुरु की बड़ी आवश्यकता है। गुरु के उपदेश के अभाव में साधक कर्णधार रहित नौका पर सवार के सामान है जो अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचने में समर्थ नहीं होता।
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गीता और सारे उपनिषद ओंकार की महिमा से भरे पड़े हैं| अतः मुझ जैसे अकिंचन व अल्प तथा सीमित बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए स्वभाववश ओंकार का ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ उपासना है|
ॐ तत्सत! ॐ शिव! शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि! ॐ ॐ ॐ!!
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कृपा शंकर
०३ दिसंबर २०१९

Sunday, 30 November 2025

संत ज्ञानेश्वर और भगवान श्रीकृष्ण का विट्ठल विग्रह ---

 संत ज्ञानेश्वर और भगवान श्रीकृष्ण का विट्ठल विग्रह ---

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आज प्रातः संत ज्ञानेश्वर का एक चित्र देखा जिसमें वे एक वृक्ष के नीचे पद्मासन में बैठकर भगवान श्रीकृष्ण के विट्ठल विग्रह का ध्यान कर रहे हैं। वह विग्रह मुझे बहुत अच्छा लगा। उसको देखते देखते विट्ठल के ध्यान में मैं भी आनंदमय हो गया। महाराष्ट्र में भगवान श्रीकृष्ण की उपासना इसी रूप में होती है। वे एक ईंट पर सावधान की मुद्रा में खड़े हैं, और हाथ कमर पर रखे हुए हैं।
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कथा है कि छठी शताब्दी में पुंडलिक नामक एक भक्त पंढरपुर, महाराष्ट्र में जन्मे। पुंडलिक जी का अपने माता-पिता एवं अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण में अनन्य भाव था, जो भगवान को अति पसंद था। रुक्मणी जी के साथ एक दिन भगवान उस भक्त के द्वार पर प्रकट हुए और बोले, “पुंडलिक!, देखो बालक, हम रुक्मिणी जी के साथ तुम्हें दर्शन देने आए हैं।” उस वक़्त पुंडलिक अपने पिता के पैर दबा रहे थे तथा वे भगवान से बोले, “हे नाथ! मैं अभी अपने पिताजी की सेवा में लगा हूँ, आपको थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी; तब तक आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा करें।” भगवान ने वैसा ही किया, और वे कमर पर दोनों हाथ रखकर, एक ईंट पर खड़े हो गए। रुक्मिणी जी भी एक दूसरी ईंट पर ही खड़े होकर प्रतीक्षा करने लगीं। पिताजी की सेवा से निवृत्त होकर पुंडलीक ने पीछे की ओर देखा तो पाया कि भगवान तो विग्रह का रूप ले चुके हैं। पुंडलिक ने उस विग्रह को अपने घर में स्थापित कर उसकी सेवा करना आरंभ कर दिया। ईंट को मराठी में विट कहते हैं तो ईंट ओर खड़े होने के कारण प्रभु का नाम विट्ठल पड़ गया।
३० नवंबर २०२३


Friday, 28 November 2025

जीवन में पूर्णता, और समर्पण कैसे हो ?

 जीवन में पूर्णता, और समर्पण कैसे हो ?

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(प्रश्न) : निज जीवन में पूर्णता को प्राप्त किए बिना तृप्ति और संतुष्टि नहीं मिलती। लेकिन पूर्णता को हम कैसे प्राप्त हों?
(उत्तर) : हमारी अंतर्रात्मा कहती है कि जिन का कभी जन्म भी नहीं हुआ, और मृत्यु भी नहीं हुई, उनके साथ जुड़ कर ही हम पूर्ण हो सकते हैं।
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(प्रश्न) : लेकिन वे हैं कौन?
(उत्तर) : जिनकी हमें हर समय अनुभूति होती है, वे परमब्रह्म परमशिव परमात्मा ही पूर्ण हो सकते हैं। उन को उपलब्ध होने के लिए ही हमने जन्म लिया है। जब तक उनमें हम समर्पित नहीं होते, तब तक यह अपूर्णता रहेगी॥
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(प्रश्न) : उन्हें हम समर्पित कैसे हों ?
(उत्तर) : एकमात्र मार्ग है -- परमप्रेम, पवित्रता और उन्हें पाने की एक गहन अभीप्सा। अन्य कोई मार्ग नहीं है। जब इस मार्ग पर चलते हैं, तब परमप्रेमवश वे निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं। ॐ तत्सत् !!
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"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते।
पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"

कृपा शंकर
२९/११/२०२४

Thursday, 27 November 2025

शिव के नाम पर पाखंड करने की चाल इंदिरा की थी, बाला तो मुखोटे थे ---

 (Acharya Chandrashekhar Shaastri की वाल से साभार copy/pasted लेख)

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शिव के नाम पर पाखंड करने की चाल इंदिरा की थी, बाला तो मुखोटे थे, जो अब उतर गया है शवसेना
नवाब मलिक ने बिल्कुल सच बोला कि शिवसेना का जन्म हिंदुत्व के लिए नहीं हुआ था और ना ही शिवसेना कभी हिंदुत्ववादी रही ।
दरअसल शिवसेना को इंदिरा गांधी ने बनाया था। इंदिरा गांधी के समय में मुंबई ट्रेड यूनियन, मजदूर नेताओं और हड़ताल कराने वालों का गढ़ बन गया था। शंकर गुहा नियोगी से लेकर जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में बहुत लंबी लंबी हड़ताल चली जिसमें रेलवे से लेकर महाराष्ट्र सरकार के तमाम विभाग जैसे परिवहन से लेकर बिजली विभाग शामिल थे सब के सब हड़ताल के चपेट में थे ।
उसी जमाने में पानी वाली बाई के नाम से मशहूर मृणाल गोरे ने जो पानी को लेकर आंदोलन किया था उसे आजाद भारत का महिलाओं द्वारा किया गया सबसे बड़ा आंदोलन कहते हैं । लाखों की संख्या में महिलाएं घरों से निकलकर सड़क पर प्रदर्शन की थी
तब इंदिरा गांधी को लगा कि हड़ताल से निपटने का सबसे अच्छा उपाय यही है इनके सामने भी एक गुंडागर्दी खड़ी कर दी जाए। इंदिरा गांधी ने यह नोटिस किया कि इस हड़ताल में सब लोग एक भारतीय की हैसियत से शामिल होते हैं यानी कहीं कोई क्षेत्रवाद नहीं होता था उसके बाद इंदिरा गांधी ने यह सोचा क्यों ना महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद का बीज बो दिया जाए जिससे कोई ईसाई जॉर्ज फर्नांडिस या फिर कोई छत्तीसगढ़ का शंकर गुहा नियोगी आकर महाराष्ट्र में अपनी पैठ बनाकर हड़ताल ना कर सके और यूनियन बाजी बंद हो जाए
इंदिरा गांधी ने बाल ठाकरे को बढ़ावा दिया और बाल ठाकरे ने इंदिरा गांधी के साथ मिलकर बड़ी चालाकी से मुंबई की एकता को तोड़ने का काम किया बाल ठाकरे ने सबसे पहला आंदोलन दक्षिण भारतीयों खासकर शेट्टी लोगों के खिलाफ किया उन्होंने नारा दिया बजाओ पुंगी भगाओ लूंगी यानी मुंबई में जितने भी दक्षिण भारतीय थे उनको शिवसेना के गुंडे लाठी लेकर मार मार कर भगाते थे फिर उसके बाद बाल ठाकरे ने अपना आंदोलन उत्तर भारतीयों के खिलाफ किया फिर उसके बाद बाल ठाकरे ने अपना आंदोलन गुजरातियों के खिलाफ किया ।
बाल ठाकरे ने एक साथ सभी बाहरी लोगों पर हमला नहीं बोला क्योंकि उन्हें पता था यदि वह एक साथ सब पर हमला बोलेंगे इकट्ठे होकर जवाब देंगे इसीलिए इंदिरा गांधी की सलाह पर बारी-बारी से एक-एक के खिलाफ हमला किया गया यहां तक कि जब इंदिरा गांधी ने भारत में इमरजेंसी लगाई थी उस वक्त बाल ठाकरे और शिवसेना के साथ खड़ी थी और बाल ठाकरे का समर्थन किया
और जैसा हर एक आंदोलन में हुआ है इंदिरा गांधी ने पहले किसी को आगे करके अपना काम निकाला बाद में उसे खत्म कर दिया चाहे वह पंजाब का भिंडरावाले हो या फिर नागालैंड का मूवीवा हो
इंदिरा गांधी के शह पर शिवसैनिकों को तहबाजारी वसूली, ठेले वालों से वसूली, टेंपो वालों से वसूली और अपना यूनियन बनाकर बड़े-बड़े उद्योगपतियों से वसूली का चस्का लग गया था इसलिए उन्होंने अपना काम चालू रखा और बाद में थोड़े समय के लिए इन्होंने हिंदूवादी का चोला जरूर ओढ़ा था।
और पैसे बनाने के लिए शिवसेना ने ही माइकल जैक्सन का कंफर्ट मुंबई में आयोजित करवाया था और उस कंफर्ट का पूरा टिकट शिवसेना ने बेचा था

विश्व के तीन स्थानों पर इस समय युद्ध की पूरी संभावनायें हैं। यह कोई ज्योतिषीय भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि वर्तमान घटनाक्रम के गहन विश्लेषण का सार है ---

 विश्व के तीन स्थानों पर इस समय युद्ध की पूरी संभावनायें हैं। यह कोई ज्योतिषीय भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि वर्तमान घटनाक्रम के गहन विश्लेषण का सार है ---

(१) भारत का -- चीन और पाकिस्तान से युद्ध।
(२) रूस व बेलारूस का -- यूक्रेन व उसके समर्थकों से युद्ध।
(३) ताइवान व उसके समर्थकों का -- चीन से युद्ध।
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भारत बिलकुल मध्य में पड़ता है। भगवान भारत की निश्चित रूप से रक्षा करेंगे। भारत का दुर्भाग्य था कि तत्कालीन भारत सरकार ने भारत की रक्षा नहीं की और तिब्बत का पूरा भाग चीन को सौंप दिया। यही नहीं, पाकिस्तान का निर्माण भी भारत का दुर्भाग्य था। जिस भूमि पर पाकिस्तान बना वहाँ हम अपनी अस्मिता की रक्षा नहीं कर पाये। भारत के लद्दाख और कश्मीर का बहुत बड़ा भूभाग पाकिस्तान और चीन ने हमसे छीन रखा है।
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यूक्रेन व जार्जिया के साथ भी अन्याय हुआ है। ये देश अपनी स्वयं की रक्षा करने में असमर्थ हैं। यूक्रेन अपनी रक्षा के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है। रूस ने यूक्रेन से पूरा क्रीमिया प्रायदीप छीन लिया, अजोव सागर पर भी अधिकार कर रखा है, और यूक्रेन के दोनेत्स्क क्षेत्र पर अपने समर्थकों से अधिकार करवा रखा है। यूक्रेन में बहुत अधिक तनाव है। यदि अमेरिका के बीच में कूद पड़ने का भय नहीं होता तो अब तक रूसी सेना पूरे यूक्रेन पर अधिकार कर चुकी होती।
ऐसे ही जार्जिया की स्थिति है। इस देश के उत्तर में रूस है, व दक्षिण में तुर्की, अज़र्बेजान और आर्मेनिया। जार्जिया के अब्खाजिया और दक्षिण ओशेतिया प्रान्तों पर रूसी सेना ने अधिकार कर रखा है। पूर्व रूसी तानाशाह स्टालिन मूल रूप से जार्जिया का ही था।
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दक्षिण चीन सागर के ताइवान द्वीप की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में भारत के लोगों को अच्छी तरह पता है। विश्व में सबसे अधिक तनाव वहीं है। कभी भी वहाँ युद्ध छिड़ सकता है। वहाँ युद्ध छिड़ गया तो भारत भी अछूता नहीं रहेगा।
कुछ दिनों में रूसी राष्ट्रपति की होने वाली भारत की यात्रा, रूस का एक बहुत बड़ा कूटनीतिक अभियान है, जिसमें भारत को भी अपनी सर्वश्रेष्ठ कूटनीतिक प्रतिभा दिखानी होगी।
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कृपा शंकर
२७ नवंबर २०२१