Saturday, 5 April 2025

कृष्ण मृग यानी काले हिरण को प्राचीन भारत में पवित्र माना गया था ---

कृष्ण मृग यानी काले हिरण को प्राचीन भारत में पवित्र माना गया था| प्राचीन भारत में कृष्ण मृग निर्भय होकर घुमते थे, उनका शिकार प्रतिबंधित था| मनुस्मृति में कहा गया है कि जितनी भूमि पर स्वतन्त्रतापूर्वक घूमता हुआ कृष्ण मृग मिले वह यज्ञ की पुण्यभूमि है|

मुझे एक तपस्वी साधू ने बताया था कि तपस्या करने करने के लिए वह स्थान सर्वश्रेष्ठ है जहाँ .......(१) कृष्ण मृग निर्भय होकर घुमते हों, (२) शमी वृक्ष यानी खेजडी के वृक्ष हों, (३) जहाँ निर्भय होकर मोर पक्षी रहते हों, और (४) कूर्म भूमि हो, यानि कछुए की पीठ के आकार की भूमि हो|
राजस्थान का विश्नोई समाज तो खेजडी के वृक्षों और कृष्ण मृगों की रक्षा के लिए अपने प्राण भी न्योछावर करता आया है| उन विश्नोइयों के गाँव में जाकर सलमान खान फ़िल्मी हीरो ने कृष्ण मृग का शिकार किया| वह वहाँ से तुरंत भाग गया, यदि गाँव वालों के हाथ में आ जाता तो अपने जीवन में अगले दिन का प्रकाश नहीं देख पाता| धन्य है विश्नोई समाज जो हर प्रकार के प्रलोभन और भय के पश्चात भी इस मुकदमें में अडिग खडा रहा और बीस वर्ष तक प्रतीक्षा कर के भी सलमान खान को सजा दिलवाई|
हरियाणा में नवाब पटौदी नाम का पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी भी काले हिरण का शिकार करते पकड़ा गया था| उसको भी सजा अवश्य मिलती पर उसको तो प्रकृति ने ही सजा दे दी| वह अधिक दिन जीवित नहीं रहा| ६ अप्रेल २०१८

जीवात्मा जब परमात्मा से लिपटी रहती है, तब वह भी परमात्मा से एकाकार होकर उसी ऊँचाई तक पहुँच जाती है ---

सन २००१ की बात है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कच्छल द्वीप पर एक अति विशाल और बहुत ही ऊँचे वृक्ष को देखा, जिस पर एक लता भी चढ़ी हुई थी| वृक्ष की जितनी ऊँचाई थी, लिपटते-लिपटते वहीं तक वह लता भी पहुँच गई थी| जीवन में पहली बार ऐसे उस दृश्य को देखकर परमात्मा और जीवात्मा की याद आ गई, और एक भाव-समाधि लग गई| वह बड़ा ही शानदार दृश्य था जहाँ मुझे परमात्मा की अनुभूति हुई| प्रभु को समर्पित होने से बड़ी कोई उपलब्धी नहीं है|
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जीवात्मा जब परमात्मा से लिपटी रहती है, तब वह भी परमात्मा से एकाकार होकर उसी ऊँचाई तक पहुँच जाती है| परमात्मा को हम कितना भी भुलायें, पर वे हमें कभी भी नहीं भूलते| सदा याद करते ही रहते हैं| उन्हें भूलने का प्रयास भी करते हैं तो वे और भी अधिक याद आते हैं| वास्तव में वे स्वयं ही हमें याद करते हैं| कभी याद न आए तो मान लेना कि --
"हम में ही न थी कोई बात, याद न तुम को आ सके."
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ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
6 अप्रेल 2022

खुद की कमी दूर करने का प्रयास हम करें, और भगवान पर दोष न डालें ---

आत्म-विश्लेषण --- सत्य तो यह है कि अपनी कमियों को तो हम दूर नहीं कर पाते, और सारा दोष भगवान को दे रहे हैं। कहते हैं कि "भगवान की मर्जी"। खुद की कमी दूर करने का प्रयास हम करें, और भगवान पर दोष न डालें। यह बात मैं स्वयं के लिए ही नहीं कह रहा, सभी के लिए कह रहा हूँ।

हम धर्म का आचरण करेंगे, तभी धर्म की रक्षा होगी, और तभी धर्म हमारी रक्षा करेगा| धर्म के आचरण से ही जीवन में हमारा सर्वतोमुखी विकास, और सब तरह के दुःखों से मुक्ति होगी| धर्म क्या है और इसका पालन कैसे हो, इसे महाभारत, रामायण, भागवत, मनुस्मृति, आदि ग्रन्थों व श्रुतियों में बड़े विस्तार से और स्पष्ट रूप से समझाया गया है| आवश्यकता धर्मग्रंथों के स्वाध्याय, और परमात्मा के ध्यान की है| गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने तो इतना भी कहा है कि स्वधर्म का थोड़ा-बहुत पालन भी इस संसार के महाभय से हमारी रक्षा करेगा|

लौकिक रूप से हमें यह प्रयास करते रहना चाहिए कि भारत की प्राचीन शिक्षा और कृषि व्यवस्था फिर से जीवित हो| मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर उन्हें धर्माचार्यों की एक प्रबन्धक समिति को सौंपा जाये जो यह सुनिश्चित करे कि मंदिरों के धन का उपयोग सिर्फ सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में ही हो| सनातन हिन्दू धर्म विरोधी जितने भी प्रावधान भारत के संविधान में हैं, उन्हें हटाया जाये| हम सत्य सनातन धर्म की निरंतर रक्षा करें| ५ अप्रेल २०२१

मोक्षमार्ग ---

 मोक्षमार्ग ---

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अब आत्मतत्व, सनातनधर्म व राष्ट्रहित के अतिरिक्त अन्य किसी भी विषय पर विचार के लिए मेरे पास समय नहीं है। मेरे हृदय में क्या है यह मैं किसी को बता नहीं सकता, क्योंकि उसे समझने वाले नगण्य हैं। फिर भी मोक्षमार्ग पर चलने वाले मेरे अनेक मित्र हैं जो नित्य नियमित परमात्मतत्व का ध्यान, मनन, और निदिध्यासन करते हैं, व निरंतर परमात्मा की चेतना (कूटस्थ-चैतन्य) में रहते हैं। भौतिक रूप से वे मुझसे दूर हैं लेकिन परमात्मा में वे मेरे साथ एक हैं।
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गीता के निम्न चार मंत्रों में भगवान ने सम्पूर्ण मोक्षमार्ग बताया है ---
"या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।२:६९।।"
"आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।२:७०।।"
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।२:७१।।"
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति।।२:७२।।"
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जिन्हें परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा है, वे किन्हीं श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु आचार्य की शरण लें। अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं है। श्रुति भगवती इसका स्पष्ट आदेश देती है। उपरोक्त चारों मंत्रों का स्वाध्याय स्वयं करें। इनमें पूरा मोक्षमार्ग है।
ॐ तत्सत् ॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
५ अप्रेल २०२३

Friday, 4 April 2025

परमात्मा से जीवात्मा को, यानि परमात्मा से हमें कौन जोड़ कर रखता है? यह ब्रह्मांड टूट कर बिखरता क्यों नहीं है?

परमात्मा से जीवात्मा को, यानि परमात्मा से हमें कौन जोड़ कर रखता है? यह ब्रह्मांड टूट कर बिखरता क्यों नहीं है? किस शक्ति ने ब्रह्मांड को जोड़ कर सुव्यवस्थित रूप से धारण कर रखा है? .

"ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो वृहस्पतिः। शं नो विष्णुरुरुक्रमः। ॐ नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि। ॠतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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हमारे शास्त्रों के अनुसार ध्यान-साधना में प्राप्त "आनंद" ही है, जो जीवात्मा को यानि हमें ब्रह्म से जोड़कर एक रखता है। वह आनंद हमारे प्राण-तत्व की अभिव्यक्ति है। ब्रह्म है -- पूर्णत्व, जिसके बारे में श्रुति भगवती कहती है --
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते॥
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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हमारी भौतिक सृष्टि में Entangled subatomic particles चाहे वे कितनी भी दूर हों, एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। एक अदृश्य शक्ति उन्हें आपस में जोड़ कर रखती है।
यह बात कुछ वर्ष पूर्व जेनेवा स्विट्ज़रलैंड के पास Large Hadron Collider में Unified field theory पर चल रहे प्रयोगों में सिद्ध हुई थी। एक बहुत बड़े भारतीय भौतिक वैज्ञानिक ने बहुत लम्बे समय तक चले प्रयोगों के बाद यह पाया कि जिस तरह Electromagnetism, Gravity और Atomic forces होती हैं, उसी तरह की एक और अति सूक्ष्म Pervasive quantum force होती है जो सारे Subatomic particles को आपस में जोड़ती है। वह Force इतनी सूक्ष्म होती है कि हमारे विचारों से भी प्रभावित होती है। वह force यानि वह शक्ति ही है जो सारे ब्रह्मांड को आपस में जोड़ कर एक रखती है।
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यह खोज जिन वैज्ञानिक ने की उन्होनें बड़ी विनम्रता से अपने नाम पर इस शक्ति का नाम रखने से मना कर दिया, जबकि उन्हें इसका अधिकार था। इस आविष्कार के पश्चात वे एक गहरे ध्यान में चले गए और जब उनकी चेतना लौटी तो इस Conscious universal force का नाम उन्होंने "BLISSONITE" रखा जिसका अर्थ ही होता है -- आनंद की शक्ति।
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एक चुनौतीपूर्ण प्रश्न यह भी रहा है कि quantum particles अपना व्यवहार क्यों बदल देते हैं जब उन्हें observe किया जाता है? यह एक वास्तविकता है जिसका ज्ञान प्राचीन भारत के मनीषियों को था। वे अपने संकल्प से आणविक संरचना को परिवर्तित कर किसी भी भौतिक पदार्थ का बाह्य रूप बदल सकते थे।
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आनंद ने ही हमें परमात्मा से जोड़ रखा है। वह आनंद ही प्राण-तत्व है, जो घनीभूत होकर कुंडलिनी महाशक्ति के रूप में व्यक्त होता है। वह कुंडलिनी महाशक्ति ही परमशिव से मिलकर जीव को शिव के साथ एकाकार कर देती है। वह प्राणतत्व ही पंचप्राणों के द्वारा हमारे शरीर को जीवित रखता है। ये पंचप्राण ही वे गण हैं जिनके अधिपति ओंकार रूप में गणेश जी हैं। इन पंचप्राणों के दस सौम्य, और दस उग्र रूप ही दस महाविद्याएँ हैं।
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किसी भी साधना/उपासना में आनंद की अनुभूति ही परमात्मा की अनुभूति है। आनंद का स्त्रोत प्रेम है। भगवान को हम अपना पूर्ण प्रेम जब देते हैं, तब आनंद की अनुभूति होती है। भगवान सारे संबंधों से परे भी हैं, और संबंधों में भी हैं। वे माता भी हैं, और पिता भी। सारे ज्ञात-अज्ञात संबंधी, मित्र, शत्रु, और सारे रूप वे ही हैं। वे ही प्रकाश, अंधकार, ज्ञान, अज्ञान, विचार, ऊर्जा, प्रवाह, गति, स्पंदन, आवृतियां, अनंतता, चेतना, प्राण, और विस्तार आदि हैं। जैसा मुझे समझ में आया वैसा ही अपनी सीमित अल्प बुद्धि से लिख दिया। इससे अधिक मुझे कुछ भी नहीं मालूम।
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन !!

तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
५ अप्रेल २०२३

Thursday, 3 April 2025

शुक्राचार्य द्वारा आराधित असाध्य रोग,अकाल मृत्यु निवारक ।। मृतसंजीवनीमंत्र।।

 शुक्राचार्य द्वारा आराधित असाध्य रोग,अकाल मृत्यु निवारक ।। मृतसंजीवनीमंत्र।।


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ॐहौं ॐजूं ॐ स: ॐभू: ॐभुव: ॐस्व: ॐमह: ॐजनः ॐ तपः ॐ सत्यं

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं

त्र्यबकं यजामहे सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्

भर्गोदेवस्य धीमहि उर्वारुकमिव बंधनान्

धियो योन: प्रचोदयात् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्

ॐसत्यं ॐतपः ॐजन: ॐ मह: ॐस्व: ॐभुव: ॐभू: ॐ स: ॐजूं ॐहौं ॐ।।

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इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं... उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए... जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.

इस मंत्र के जप से असाध्य रोग कैंसर, क्षय, टाइफाइड, हैपेटाइटिस बी, गुर्दे, पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियों को दूर करने में भी मदद मिलती है। इस मंत्र का प्रतिदिन विशेषकर सोमवार को 101 जप करने से सामान्य व्याधियों के साथ ही मानसिक रोग, डिप्रैशन व तनाव आदि दूर किए जा सकते हैं।

तेज बुखार से शांति पाने के लिये औंगा की समिधाओं द्वारा पकाई गई दूध की खीर से हवन करवाना चाहिए। मृत्यु-भय व अकाल मृत्यु निवारण के लिए हवन में दही का प्रयोग करना चाहिए।

इतना ही नहीं मृत्युंजय जप व हवन से शनि की साढ़ेसाती, वैधव्य दोष, नाड़ी दोष, राजदंड, अवसादग्रस्त मानसिक स्थिति, चिंता व चिंता से उपजी व्यथा को कम किया जा सकता है। भयंकर बीमारियों के लिए मृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप व उसका दशमांश का हवन करवाना उत्तम रहता है।

सारी सृष्टि सारा ब्रह्मांड -- मेरा शरीर है, सारे प्राणी मेरा परिवार हैं ---


सारी सृष्टि सारा ब्रह्मांड -- मेरा शरीर है, सारे प्राणी मेरा परिवार हैं। मैं कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म (निरंतर विस्तृत, सर्वव्यापक) परमशिव (परम कल्याणकारी) हूँ, जो इस समय यह एक अति साधारण, सामान्य, अकिंचन मनुष्य बन गया है।
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इस समय मैं एक निमित्त मात्र हूँ, कर्ता तो परमशिव है। मैं जो कुछ भी लिखता हूँ, वह मेरा सत्संग है, जिसका एकमात्र उद्देश्य -- अपने स्वयं, सनातन-धर्म और भारत के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करना है। मैं अपने या किसी अन्य के मनोरंजन के लिए बिल्कुल भी नहीं लिखता। कौन क्या सोचता है यह उसकी समस्या है, मेरी नहीं। ॐ शिव शिव शिव !!
अप्रैल ४, २०२३.