Wednesday 18 January 2017

दीर्घसूत्रता मेरा सबसे बड़ा दुर्गुण है .........

दीर्घसूत्रता मेरा सबसे बड़ा दुर्गुण है .........
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मैं अन्य किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूँ, स्वयं की ही कर रहा हूँ| मैं अपने पूरे जीवन का सिंहावलोकन कर के विश्लेषण करता हूँ तो पाता हूँ कि मेरे जीवन में, मेरे व्यक्तित्व में सबसे बड़ी कमी कोई है तो वह है ....... 'आत्मविस्मृति'......, जिसका एकमात्र कारण है .....'दीर्घसूत्रता'.....|
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आत्मविस्मृति दीर्घसूत्रता के कारण ही होती है| यह दीर्घसूत्रता सब से बड़ा दुर्गुण है जो हमें परमात्मा से दूर करता है| दीर्घसूत्रता का अर्थ है काम को आगे के लिए टालना| यह दीर्घसूत्रता ही प्रमाद यानि आलस्य का दूसरा नाम है| साधना में दीर्घसूत्रता यानि आगे टालने की प्रवृति साधक की सबसे बड़ी शत्रु है, ऐसा मेरा निजी प्रत्यक्ष अनुभव है|
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सबसे बड़ा शुभ कार्य है भगवान की भक्ति जिसे आगे के लिए नहीं टालना चाहिए| जो लोग कहते हैं कि अभी हमारा समय नहीं आया, उनका समय कभी भी नहीं आयेगा|
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जल के पात्र को साफ़ सुथरा रखने के लिए नित्य साफ़ करना आवश्यक है अन्यथा उस पर जंग लग जाती है| एक गेंद को सीढ़ियों पर गिराओ तो वह उछलती हुई क्रमशः नीचे की ओर ही जायेगी| वैसे ही मनुष्य की चित्तवृत्तियाँ (जो वासनाओं के रूप में व्यक्त होती है) अधोगामी होती है, वे मनुष्य का क्रमशः निश्चित रूप से पतन करती हैं| उनके निरोध को ही 'योग' कहा गया है|
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नित्य नियमित साधना अत्यंत आवश्यक है| मन में इस भाव का आना कि .....'थोड़ी देर बाद करेंगे'....., हमारा सबसे बड़ा शत्रु है| यह 'थोड़ी देर बाद करेंगे' कह कर काम को टाल देते हैं वह ..... 'थोड़ी देर'..... फिर कभी नहीं आती| इस तरह कई दिन और वर्ष बीत जाते हैं| जीवन के अंत में पाते हैं की बहुमूल्य जीवन निरर्थक ही नष्ट हो गया|
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अतः मेरे अनुभव से यह दीर्घसूत्रता, प्रमाद और आलस्य सब एक ही हैं| यही सबसे बड़ा तमोगुण है| यही माया का सबसे बड़ा हथियार है| यह माया ही है जिसे कुछ लोग 'शैतान' या 'काल पुरुष' कहते हैं| सृष्टि के संचालन के लिए माया भी आवश्यक है पर इससे परे जाना ही हमारा प्राथमिक लक्ष्य है|
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जब ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार कहते हैं की --- "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि" --- अर्थात् प्रमाद ही मृत्यु है तो उनकी बात पूर्ण सत्य है| भगवान सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के आचार्य हैं और भक्तिसुत्रों के आचार्य देवर्षि नारद के गुरु हैं| उनका कथन मिथ्या नहीं हो सकता|
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सभी मनीषियों का साधुवाद और सब को मेरा सादर नमन|
"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
पौष शु. १० वि.सं.२०७२| 19जनवरी2016.

2 comments:

  1. शुभ प्रभात. अपने दिवस का प्रारंभ ईश्वर के ध्यान से से करें. हर पल प्रभु का स्मरण करें.
    जब भूल जाएँ तो याद आते ही ईश्वर स्मरण फिर करना शुरू कर दें. रात्रि को सोने से पहिले भी परमात्मा का ध्यान कर के ही सोएँ. सनातन धर्म को जीवन मैं साकार करें. हरि ओम् तत्सत.
    Start your day with meditation on God. Throughout the day think of God all the time. If you forget then start thinking of Him again when you remember.
    Before going to bed again meditate deeply in the night. Love Him unconditionally with all your heart. Om Tat Sat.

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  2. दीर्घसूत्रता (जो कार्य करना है उसे आगे टालने कि प्रवृत्ति) और प्रमाद व अनियमितता >>>>> ये माया के सबसे बड़े अस्त्र हैं जो हमें परमात्मा से दूर करते हैं| ये हमारी साधना में बाधक ही नहीं, पतन के भी सबसे बड़े कारण हैं|
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    नियमित ध्यान आवश्यक है अन्यथा हमारे में परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा (अतृप्त प्यास और तड़प) ही समाप्त हो जायेगी| परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा और परमात्मा से परम प्रेम (भक्ति) .... ये दो ही तो सबसे बड़े साधन हैं हमारे पास| ये होंगे तभी प्रभु की कृपा होगी और तभी सद्गुरु मिलेंगे| ये ही नहीं रहे तो पतन निश्चित है| यदि हम जीवन में किसी प्रयास के प्रति गंभीर हैं, तो उसके लिए हमें दृढ निश्चयी तथा नियमित होना ही पडेगा| जैसे स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम आवश्यक है वैसे ही साधना में सफलता के लिए नियमित ध्यान आवश्यक है|
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    जो काम करना है उसे अभी और इसी समय करो, आगे के लिए मत टालो| यही सफलता का रहस्य है| वो आगे आना वाला समय कभी नहों आयेगा| उपासना का समय हो जाये तो उसी समय उपासना करो, आगे के लिए मत टालो| तभी तो उपास्य के गुण हमारे में आयेंगे|
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    ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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