Saturday, 18 November 2017

नेहरु थे भारत में पहली बूथ कैप्च्युरिंग के मास्टर माइंड ......

(जिन राजनेताओं को हम महान समझते हैं, आवश्यक नहीं है कि वे सचमुच महान होते हैं)
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नेहरु थे भारत में पहली बूथ कैप्च्युरिंग के मास्टर माइंड ......
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जवाहर लाल नेहरू ने देश में हुए प्रथम आम चुनाव में उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से पराजित घोषित हो चुके कांग्रेसी प्रत्याशी मौलाना अबुल कलाम 'आजाद' को किसी भी कीमत पर जबरदस्ती जिताने के लिए आदेश दिये थे | उनके आदेश पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं गोविन्द वल्लभ पन्त ने रामपुर के जिलाधिकारी पर घोषित हो चुके परिणाम बदलने का दबाव डाला, और इस दबाव के कारण प्रशासन ने जीते हुए प्रत्याशी विशन चन्द्र सेठ की मतपेटी के वोट मौलाना अबुल कलाम 'आज़ाद' की पेटी में डलवा कर दुबारा मतगणना करवा कर मौलाना अबुल कलाम 'आज़ाद' को जिता दिया |
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यह रहस्योदघाटन उत्तर प्रदेश के तात्कालीन सुचना निदेशक शम्भुनाथ टंडन ने अपने एक लेख मे किया है |
उन्होंने अपने लेख "जब विशन सेठ ने मौलाना आजाद को धुल चटाई थी भारतीय इतिहास की एक अनजान घटना" में लिखा है की भारत मे नेहरु ही बूथ कैप्चरिंग के पहले मास्टर माइंड थे | उस ज़माने में भी बूथ पर कब्जा करके परिणाम बदल दिये जाते थे और देश के प्रथम आम चुनाव मे सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही कांग्रेस के 12 हारे हुए प्रत्याशियों को जिताया गया | देश के बटवारे के बाद लोगो मे कांग्रेस और खासकर नेहरु के प्रति बहुत गुस्सा था लेकिन चूँकि नेहरु के हाथ मे अंतरिम सरकार की कमान थी इसलिए नेहरु ने पूरी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके जीत हासिल थी |
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देश के बटवारे के लिए हिंदू महासभा ने नेहरु और गाँधी की तुष्टीकरण की नीति को जिम्मेदार मानते हुए देश मे उस समय जबरजस्त आन्दोलन चलाया था और लोगो मे नेहरु के प्रति बहुत गुस्सा था, इसलिए हिंदू महासभा ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओ के विरुद्ध हिंदू महासभा के दिग्गज लोगो को खड़ा करने का निश्चय किया था | इसीलिए नेहरु के विरुद्ध फूलपुर से संत प्रभुदत्त ब्रम्हचारी और मौलाना अबुल के विरुद्ध रामपुर से भईया विशन चन्द्र सेठ को लडाया गया | नेहरु को भी अंतिम राउंड मे जबरजस्ती 2000 वोट से जिताया गया | वही सेठ विशन चन्द्र के पक्ष मे भारी मतदान हुआ और मतगणना के पश्चात प्रशासन ने बकायदा लाउडस्पीकरों से सेठ विशन चंद को 10000 वोट से विजयी घोषित कर दिया | और फिर रामपुर मे हिंदू महासभा के लोगो ने विशाल विजयी जुलुस भी निकाला |
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फिर जैसे ही ये समाचार वायरलेस से लखनऊ फिर दिल्ली पहुची तो मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की अप्रत्याशित हार के समाचार से नेहरु तिलमिला और तमतमा उठे। उन्होंने तुरंत उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं गोविन्द वल्लभ पन्त को चेतावनी भरा संदेश दिया की मै मौलाना की हार को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नही कर सकता, अगर मौलाना को जबरजस्ती नही जिताया गया तो आप अपना इस्तीफा शाम तक दे दीजिए |
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फिर पन्त जी ने आनन फानन मे सुचना निदेशक (जो इस लेख के लेखक है) शम्भू नाथ टंडन को बुलाया और उन्हें रामपुर के जिलाधिकारी से सम्पर्क करके किसी भी कीमत पर मौलाना अबुल को जिताने का आदेश दिया. . फिर जब शम्भु नाथ जी के कहा की सर इससे दंगे भी भडक सकते है तो इस पर पन्त जी ने कहा की देश जाये भाड़ मे नेहरु जी का हुकम है | फिर रामपुर के जिलाधिकारी को वायरलेस पर मौलाना अबुल को जिताने के आदेश दे दिये गए | फिर रामपुर के सीटी कोतवाल ने सेठ विशनचन्द्र के पास गया और कहा कि आपको जिलाधिकारी साहब बुला रहे है जबकि वो लोगो की बधाईयाँ स्वीकार कर रहे थे | और जैसे ही जिलाधिकारी ने उनसे कहा कि मतगणना दुबारा होगी तो सेठ विशन चन्द्र ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि मेरे सभी कार्यकर्ता जुलुस में गए है ऐसे मे आप बिना मतगणना एजेंट के दुबारा कैसे मतगणना कर सकते है ? लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गयी और जिलाधिकारी के साफ साफ कहा कि सेठ जी हम अपनी नौकरी बचाने के लिए आपकी बलि ले रहे है क्योंकि ये नेहरु का आदेश है |
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शम्भु नाथ टंडन जी ने आगे लिखा है कि चूँकि उन दिनों प्रत्याशियो के नामो की अलग अलग पेटियां हुआ करती थी और मतपत्र पर बिना कोई निशान लगाये अलग अलग पेटियों मे डाले जाते थे इसलिए ये बहुत आसान था कि एक प्रत्याशी के वोट दूसरे की पेटी मे मिला दिये जाये | देश मे हुए प्रथम आमचुनाव की इसी खामी का फायदा उठाकर अय्याश नेहरु इस देश की सत्ता पर काबिज हुआ था और उस नेहरु ने इस देश मे जो भ्रष्टाचार के बीज बोये थे वह आज उसके खानदान के "काबिल" वारिसों के अच्छी तरह देखभाल करने की वजह के एक वटवृक्ष बन चूका है |
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लेखक :- शम्भू नाथ टंडन (तत्कालीन सूचना निदेशक)
साभार :- गाँधी और नेहरू : हिंदुस्तान का दुर्भाग्य
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गगन शर्मा भारतीय
Owner
नरेंद्र दामोदर दास मोदी
Nov 14, 2015
(उपरोक्त लेख Google+ पर १४ नवम्बर २०१५ को श्री गगन शर्मा भारतीय द्वारा "नरेंद्र दामोदर दास मोदी" नाम के पेज पर छापा था, जहाँ से साभार कॉपी/पेस्ट किया गया है| धन्यवाद)

यहाँ और अभी .....

यहाँ और अभी .....

इसी समय भगवान हमारे साथ है जिन्हें देखने के लिए कुछ तो दूरी होनी चाहिए पर कोई दूरी है ही नहीं| वह कहीं दूर नहीं है| वह तो निकटतम से भी निकट है|

क्या आँखें अपने भीतर झाँक कर देख सकती हैं कि वहाँ भीतर से कौन देख रहा है?
क्या हृदय अनुभूत कर सकता है कि उसके भीतर कौन धड़क रहा है?
कौन तो यह साँसें ले रहा है? कौन यह सोच रहा है?

एकमात्र अस्तित्व उसी का है| वही मेरा उपास्य है| वह मुझ से पृथक नहीं है| वही मैं हूँ|

ॐ ॐ ॐ !!


१७ नवम्बर २०१७

यदि भगवान में श्रद्धा और विश्वास है तो भयभीत होने का कोई कारण नहीं है ....


यदि भगवान में श्रद्धा और विश्वास है तो भयभीत होने का कोई कारण नहीं है | हमारे किसी भी शास्त्र में भयभीत होने की शिक्षा नहीं दी गयी है | यह एक विजातीय प्रभाव है |  निर्भीकता की जितनी अच्छी शिक्षा गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने दी है, उतनी कहीं भी किसी भी अन्य धर्मग्रंथ में नहीं है |  डरना ही है तो अपने बुरे कर्मफलों से डरो, अन्य किसी भी वस्तु से नहीं |
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एक सच्चे हिन्दू को कभी भी नहीं डरना चाहिए| भगवान ने हमारी ही रक्षा के लिए अस्त्र धारण कर रखे हैं| उन शस्त्रधारी भगवान को ह्रदय में रखकर असत्य व अन्धकार की शक्तियों का निरंतर प्रतिकार करो, और अपने पथ पर अडिग रहो|
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 जीवन में विषमताओं को स्वीकार करो | ये सब विषमताएँ हमारे विगत के विचारों का ही घनीभूत रूप हैं जो हमारे समक्ष प्रकट हो रहे हैं | ये हमारी ही सृष्टि हैं |
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सत्य का प्रमाण स्वयं की ही अनुभूति है | उन सब विचारधाराओं से दूर रहो जो दूसरों से घृणा करना सिखाती हैं, जो अपने से पृथक विचार वालों की ह्त्या करना सिखाती है, जो आत्महीनता का बोध कराती हैं, जो यह सिखाती हैं कि तुम जन्म से पापी हो, या फिर असहमति होने पर हमें भयभीत करती हैं | परमात्मा प्रेम का विषय है, भय का नहीं | जो सीख हमें भयभीत होना सिखाती है वह धार्मिक नहीं हो सकती |

१७ नवम्बर २०१७

Friday, 17 November 2017

नित्य नियमित ध्यान साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है....

हे कूटस्थ सच्चिदानंद परब्रह्म परमशिव, आपको नमन ! आप सब नाम-रूपों से परे सम्पूर्ण अस्तित्व हैं | यह "मैं" और "मेरा" रूपी पृथकता आपको समर्पित है | और कुछ देने को हैं भी नहीं, सब कुछ तो आप ही हैं | ॐ ॐ ॐ !!
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नित्य नियमित ध्यान साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अन्यथा परमात्मा को पाने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है | मन पर निरंतर मैल चढ़ता रहता है जिस की नित्य नियमित सफाई आवश्यक है | साधना में कर्ताभाव न हो, कर्ता तो भगवान स्वयं ही हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

जिसने काम जीता उसने जगत जीता .....

जिसने काम जीता उसने जगत जीता .....
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मन ही हमारे सभी बंधनों, और मन ही हमारे मोक्ष का कारण है | हमारा अति चंचल मन ही हमारे लिए एक दुःखरूपी संसार की सृष्टि कर देता है जिसमें हम फँसे हुए हैं | साधना के मार्ग पर मेरा अनेक सत्संगियों व साधकों से सत्संग हुआ है | अधिकांश साधकों ने बिना किसी झिझक के यह स्वीकार किया कि साधना के पथ पर उनकी सबसे बड़ी बाधा क्रमशः ..... मन में उत्पन्न होने वाली काम वासना, फिर प्रमाद और फिर अहंकार थी | मेरा भी यही मत है कि opposite sex के प्रति आकर्षण ही भक्ति में सबसे बड़ी बाधा है |
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इस से बचाव के लिए ..... सात्विक भोजन, निरंतर सत्संग, कुसंग का त्याग, दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति अति आवश्यक है | पुराने संस्कार कभी भी जागृत हो सकते हैं अतः निरंतर सावधानी चाहिए | सावधानी हटी, दुर्घटना घटी | अपनी कमजोरियों को दूर करने के लिए भगवान से भी प्रार्थना करें | निष्ठावान भक्त की सहायता भगवान अवश्य करते हैं |
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यहाँ सभी पाठक परिपक्व और समझदार हैं, अपना भला-बुरा समझते हैं, अतः अधिक लिखना उचित नहीं है | सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१६ नवम्बर २०१७

पञ्चमुखी महादेव के आध्यात्मिक रूप का सारांश .....

पञ्चमुखी महादेव के आध्यात्मिक रूप का सारांश .....
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गहरे ध्यान में दीर्घ काल से साधनारत योगमार्ग के साधकों को आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में एक स्वर्णिम आभा के दर्शन होते हैं| फिर धीरे धीरे उस स्वर्णिम आभा के मध्य में एक नीले रंग का प्रकाश दिखाई देता है| फिर धीरे धीरे उस नीले रंग के प्रकाश के मध्य में एक सफ़ेद रंग का प्रकाश दिखाई देता है, जिसके मध्य में एक अत्यधिक चमकदार सफ़ेद रंग के ही पंचकोणीय नक्षत्र के दर्शन होने लगते हैं| उस पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र का दर्शन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है| उसी पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र का उन्नत योगी ध्यान करते हैं| वे उस ज्योतिर्मय नक्षत्र से भी परे जाने की साधना करते हैं|
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इस ज्योतिर्मय क्षेत्र को कूटस्थ कहते हैं और निज चेतना की उसमें स्थिति कूटस्थ चैतन्य कहलाती है| कूटस्थ चैतन्य में प्रणव ध्वनि ओंकार जिसे अनाहत नाद भी कहते हैं का स्वतः ही श्रवण होने लगता है जिसमें रम जाना राममय हो जाना है| ॐ ही कूटस्थ अक्षर ब्रह्म है| वह विराट श्वेत ज्योति ... ज्योतिर्मय ब्रह्म है, वही क्षीर सागर है जहाँ शेषाशायी भगवान विष्णु का निवास है|
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वह पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र पंचमुखी महादेव हैं| उन्नत योगीगण उन्हीं का ध्यान करते हैं| प्राण ऊर्जा को मूलाधार चक्र से उठाकर अन्य सभी चक्रों को भेदते हुए सहस्त्रार तक लाना ही कुण्डलिनी का जागरण है, और उस महाशक्ति कुण्डलिनी का परमशिव से मिलन ही योग है|
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ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है ..... जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है| शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं ..... ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|
पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं|
दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं|
उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है| काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है| काल के पाँच अंग ..... तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं|
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
प्राण भी पांच ही हैं जो पञ्चप्राण कहलाते हैं|
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है..... शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है|
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शिव का अर्थ है ..... कल्याणकारी| शंभू का अर्थ है ..... मंगलदायक| शंकर का अर्थ है ..... शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
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ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ||
ॐ नमःशिवाय || ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
१६ नवम्बर २०१७

प्रसिद्धि की कामना ..... अपकीर्ति का द्वार है .....

प्रसिद्धि की कामना ..... अपकीर्ति का द्वार है .....
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हमारे मन में यदि यश की, प्रशंसा की और प्रसिद्धि की कामना है तो ये हमें निश्चित रूप से मिलेंगी पर साथ साथ इसका निश्चित दंड भी अपयश, निंदा, और अपकीर्ति (बदनामी) के रूप में भुगतना ही पड़ेगा| जो कुछ भी इस सृष्टि में हम प्राप्त करना चाहते हैं वह तो हमें मिलता ही है पर उसका विपरीत भी निश्चित रूप से मिलता है| यह प्रकृति का नियम है|
इस से बचने का एक ही उपाय है ..... हम कर्ताभाव, कामनाओं और अपेक्षाओं से मुक्त हों| इसके लिए हमें साधना/उपासना करनी ही पड़ेगी|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

सुख और शांति कहाँ मिलेंगी ? .....

सुख और शांति कहाँ मिलेंगी ? .....
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सुख और शांति ये दोनों मन की एक अवस्था मात्र है | बाहर कहीं भी सुख और शांति नहीं है | प्रारब्ध कर्मों का फल टल नहीं सकता, उसे तो भुगतना ही पड़ता है | कर्म जितने कट जाएँ उतना ही ठीक है | अपने मन को ही सुखी और शांत रहने का प्रशिक्षण देना पड़ता है | पतंग उड़ती है, उड़ती है और अनंत आकाश में उड़ते ही रहना चाहती है, पर कर्मों की डोर उसे खींच कर बापस ले आती है | प्रारब्ध कर्मों के फल को तो भुगतना ही पड़ेगा |
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अपने घर में एक अलग कमरे की या अलग कोने की व्यवस्था कर लो जहाँ कम से कम व्यवधान हो | वहीं नित्य नियमित बैठ कर अपने इष्ट देव का स्मरण , जप व ध्यान करो | जब भी मन अशांत हो वहाँ जा कर बैठ जाओ, शांति वहाँ अवश्य मिलेगी |
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वह स्थान ही हिमालय की गुफा होगी, वही काशी, मथुरा, वृन्दावन और तीर्थराज प्रयाग होगा, वही त्रिवेणी होगी | सामाजिकता अपने आप ही कम हो जायेगी और कामनाएँ भी समाप्त होने लगेंगी | स्वाध्याय के लिए रामचरितमानस और गीता .... ये दो ग्रन्थ ही पर्याप्त हैं | इनसे पूरा मार्गदर्शन मिल जाता है |
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भगवान परमशिव सबका कल्याण करेंगे | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा .....

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा .....
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आज से २३७ वर्ष पूर्व १३ नवम्बर १७८० को गुजराँवाला पंजाब में एक महानतम हिन्दू वीर ने जन्म लिया जो बाद में महाराजा रणजीतसिंह जी (१३ नवम्बर १७८० ---- २७ जून १८३९) के नाम से प्रसिद्ध हुए| वे हिन्दू जाति के महानतम वीरों में से एक थे| उन को बारंबार नमन|
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महाराजा रणजीत सिंह जी सन १८१३ की एक रात्री में अपनी सेना के साथ अटक के किले पर अधिकार करने के लिए बढ़ रहे थे| मार्ग में एक बरसाती नदी थी जिसमें बाढ़ आई हुई थी| अटक के किले में पठान सिपाही निश्चिन्त होकर सो रहे थे | महाराजा रणजीतसिंह जी की सेना एक बार तो अटक गई| पर महाराजा रणजीत सिंह जी ने नदी के किनारे एक स्थान ढूँढा जहाँ पानी की गहराई कम थी, और ..... "सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा" ..... कहते हुए अपना घोड़ा नदी में उतार दिया और नदी के पार पहुँच गए| उनके पीछे पीछे उनकी सारी सेना भी नदी को पार कर गयी और अटक के किले को घेर लिया| पठान सिपाही महाराजा रणजीत सिंह जी की फौज को देखकर डर गए और किले को छोडकर भाग गए| बाद में उन्होंने वहाँ के प्रशासक जहाँदाद को एक लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि देकर अटक के किले और उसके आधीन सारी भूमि को अपने राज्य में मिला लिया|
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वे एक कुशल शासक तो थे ही, साथ साथ एक महान भक्त और योगी भी थे| वाराणसी के वर्तमान विश्वनाथ मंदिर (भग्नावशेषों पर जिसका पुनर्निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने किया था) के शिखर पर चढा हुआ सारा सोना महाराजा रणजीत सिंह जी ने दान में दिया था| उनकी राज्यव्यवस्था आदर्श थी| भारत माँ के इस वीर पुत्र को कोटि कोटि नमन !
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१३ नवम्बर २०१७

Sunday, 12 November 2017

किस किस से संघर्ष करें ? क्या करें और क्या न करें ? आध्यात्मिक साधना का सबसे बड़ा रहस्य .....

किस किस से संघर्ष करें ? क्या करें और क्या न करें ? आध्यात्मिक साधना का सबसे बड़ा रहस्य .....
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हमारे भीतर का तमोगुण, हमारी आसुरी प्रवृत्ति, हमारे दुर्गुण, और बाहरी जगत की आसुरी शक्तियाँ, .... इन सब से संघर्ष करते करते तो हमारी सारी ऊर्जा यहीं समाप्त हो जायेगी| जीवन ही नहीं बचेगा तो साधना कब और कैसे करेंगे? किस किस से संघर्ष करें? क्या करें और क्या न करें? उपदेश तो बहुत हैं पर जीवन बहुत छोटा है, बुद्धि अति अल्प और सीमित है, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है| इस घोर निराशा भरे अन्धकार में किधर और कहाँ जाएँ?
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कोई घबराने की आवश्यकता नहीं है| भगवान में श्रद्धा और विश्वास रखें| अपना पूर्ण प्रेम उन्हें दें| भगवान के पास सब कुछ है पर एक चीज नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं, वह है हमारा परम प्रेम| जब हम उन्हें अपना पूर्ण प्रेम देंगे तो उनकी भी परम कृपा हम पर अवश्य ही होगी| भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में वचन दिया है ....


मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि |
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि || १८:५८ ||

मेरे में चित्तवाला होकर तू मेरी कृपासे सम्पूर्ण विघ्नोंको तर जायगा, और यदि तू अहंकारके कारण मेरी बात नहीं सुनेगा तो तेरा पतन हो जायगा|

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः || १८:६६ ||

संपूर्ण धर्मों को अर्थात संपूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्यागकर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा| मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर||

कितना बड़ा वचन दे दिया है भगवान ने ! और क्या चाहिए ?
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>>>>> आध्यात्मिक साधना का सबसे बड़ा रहस्य ......

यह सारे रहस्यों का रहस्य है, इस से बड़ा कोई दूसरा रहस्य नहीं है|
जीवन के जो भी कार्य हम करें वह भगवान की प्रसन्नता के लिए ही करें, न कि अहंकार की तृप्ति के लिए| धीरे धीरे अभ्यास करते करते हम भगवान के प्रति इतने समर्पित हो जाएँ कि स्वयं भगवान ही हमारे माध्यम से कार्य करने लगें| हम उनके एक उपकरण मात्र बन जाएँ| कहीं कोई कर्ताभाव ना रहें, एक निमित्त मात्र ही रहें| यह सबसे बड़ा आध्यात्मिक रहस्य और मुक्ति का मार्ग है|

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् || ११:३३ ||

इसलिये तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ और यशको प्राप्त करो तथा शत्रुओंको जीतकर धनधान्यसे सम्पन्न राज्यको भोगो | ये सभी मेरे द्वारा पहलेसे ही मारे हुए हैं, हे सव्यसाचिन् तुम निमित्तमात्र बन जाओ ||
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हर समय परमात्मा की स्मृति बनी रहे| उन्हें हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रेम दें| और हमारे पास देने के लिए है ही क्या? सब कुछ तो उन्हीं का है| हे भगवन, आपकी जय हो| आपका दिया हुआ यह मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार सब कुछ बापस आपको समर्पित है| मुझे आपके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
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ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ नवम्बर २०१७

सबसे अधिक कठिन कार्य :---

सबसे अधिक कठिन कार्य :---

हमारे लिए सबसे अधिक कठिन कार्य है ..... इस संसार में रहते हुए परमात्मा के प्रति अभीप्सा, तड़प और प्रेम की निरंतरता को बनाए रखना| इससे अधिक कठिन कार्य और कोई दूसरा नहीं है| इस संसार में हर कदम पर माया विक्षेप उत्पन्न कर रही है जो हमें परमात्मा से दूर करती है| घर-परिवार के लोगों, सांसारिक मित्रों और जन सामान्य के नकारात्मक स्पंदन हमें निरंतर परमात्मा से दूर करते हैं|
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हमें ढूँढ़ ढूँढ़ कर समान सकारात्मक विचार और स्पंदन के साधकों जिनका एक ही लक्ष्य है ....परमात्मा की प्राप्ति, का एक समूह बनाना चाहिए और उनके साथ सप्ताह में कम से कम एक दिन सामूहिक ध्यान साधना और सत्संग आयोजित करने चाहियें| वे एक ही गुरु-परम्परा के हों तो बहुत ही अच्छा| बड़े नगरों में ऐसे अनेक समूह हैं जिनके यहाँ सप्ताह में कम से कम एक बार तो सामूहिक ध्यान होता ही है| यदि ऐसे समूह न बना सकें तो प्रतिदिन किसी मंदिर में जाना चाहिए| यदि वहाँ भी सकारात्मकता न मिलती हो तो एकांतवास करें| नकारात्मक लोगों से मिलने से तो अच्छा है किसी से भी न मिलें|
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मिलना भी उसी से है जो हमारे लक्ष्य में सहायक हो, चाहे किसी से भी न मिलना पड़े, बात भी वही करनी है अन्यथा बिना बात किये रहें, भोजन भी वो ही करना है जो लक्ष्य में सहायक हो, अन्यथा बिना भोजन किये रहें, हर कार्य वो ही करना है जो हमें हमारे लक्ष्य की ओर ले जाता हो| किसी भी तरह का समझौता एक धोखा है| एक साधक के लिए सबसे बड़ा धोखा हमारी तथाकथित सामाजिकता है| मैं पुनश्चः कह रहा हूँ कि सबसे बड़ी बाधा हमारी तथाकथित सामाजिकता है| धन्य हैं वे परिवार जहाँ पति-पत्नी दोनों ही प्रभुप्रेमी हैं और जिनका एक ही लक्ष्य है ..... परमात्मा की प्राप्ति|
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हे परम ब्रह्म परमात्मा भगवान परम शिव, आपका विस्मरण एक क्षण के लिए भी ना हो| हमें अपने मायावी आवरण और विक्षेप से मुक्त करो| हमें निरंतर सत्संग प्राप्त हों, हम सदा आपकी ही चेतना में रहें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ नवम्बर २०१६

जीवन का यह संध्याकाल है, पता नहीं कब हरी झंडी मिल जाए .....

जीवन के इस संध्याकाल में अब कहीं भी जाने की या चला कर किसी से भी मिलने की कोई कामना नहीं रही है | भगवान अपनी इच्छा से कहीं भी ले जाए या किसी से भी मिला दे, उसकी मर्जी, पर मेरी स्वयं की कोई इच्छा नहीं है | जीवन से पूर्ण संतुष्टि और ह्रदय में पूर्ण तृप्ति है, कोई असंतोष नहीं है |
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जहां तक आध्यात्म का सम्बन्ध है, कण मात्र भी कोई संदेह या शंका नहीं है| इस अति अल्प और अति सीमित बुद्धि में समा सकने योग्य गहन से गहन आध्यात्मिक रहस्य भी रहस्य नहीं रहे हैं| सब कुछ स्पष्ट है| परमात्मा की पूर्ण कृपा है| कहीं कोई कमी नहीं है| भगवान ने मुझे अपना निमित्त बनाया यह उनकी पूर्ण कृपा है| सारी साधना वे ही कर रहे हैं, साक्षी भी वे ही हैं, साध्य साधक और साधना भी वे ही हैं| मुझे करने योग्य कुछ भी नहीं है, सब कुछ वे ही कर रहे हैं|
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आप सब महान आत्माओं को नमन !
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कठोरतम ह्रदय में भी परम प्रेम के पुष्प पल्लवित होते हैं .....

कठोरतम ह्रदय में भी परम प्रेम के पुष्प पल्लवित होते हैं .....
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शुष्क से शुष्क मरूभूमि में और पथरीली चट्टान पर भी सुन्दर पुष्पों को उगते, खिलते और महकते हुए मैनें देखा है| गंदे पानी में भी अनायास गुलाब के फूलों को अपनी सुगंध बिखेरते हुए मैनें देखा है|

मेरी दृष्टी में हम सब के नीरस और अति कठोर ह्रदय की बंजर भूमि में भी भक्ति रुपी सुन्दर सुगन्धित पुष्प खिल रहे हैं और उनकी महक हमारे ह्रदय से सभी हृदयों में व्याप्त हो रही है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

अपनी आध्यात्मिक साधना के पथ पर हम निरंतर अग्रसर रहें ......

अपनी आध्यात्मिक साधना के पथ पर हम निरंतर अग्रसर रहें ......
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इस संसार में हमारे बारे में कोई क्या सोचता है और कौन क्या कहता है, इसकी परवाह न करते हुए निरंतर हम अपने पथ पर अग्रसर रहें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, और कहीं पर भी न रुकें | अपनी विफलताओं व सफलताओं की ओर भी न देखें, वे एक अवसर के रूप में आई थीं, कुछ सिखाने के लिए, और कुछ भी उनका महत्त्व नहीं था | महत्व इस बात का भी नहीं है कि अपने साथ क्या हो रहा है, महत्व सिर्फ इस बात का है कि ये अनुभव हमें क्या सिखा रहे हैं और क्या बना रहे हैं | हर परिस्थिति कुछ ना कुछ सीखने का एक अवसर है | कौन क्या सोचता है या कहता है, यह उसकी समस्या है, हमारी नहीं | हमारा कार्य सिर्फ चलते रहना है क्योंकि ठहराव मृत्यु और चलते रहना ही जीवन है | इस यात्रा में वाहन यह देह पुरानी और जर्जर हो जायेगी तो दूसरी देह मिल जायेगी, पर अपनी यात्रा को मत रोकें, चलते रहें, चलते रहें, चलते रहें, तब तक चलते रहें, जब तक अपने लक्ष्य को न पा लें |
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अंशुमाली मार्तंड कमलिनीकुलवल्लभ भुवनभास्कर भगवान आदित्य जब चमकती हुई अपनी दिव्य आभा और प्रकाश के साथ अपने पथ पर अग्रसर होते हैं, तब मार्ग में कहीं भी किंचित भी तिमिर का कोई अवशेष उन्हें नहीं मिलता | उन्हें क्या इस बात की चिंता होती है कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है ? निरंतर अग्रसर वे भगवान भुवन भास्कर आदित्य ही इस साधना पथ पर हमारे परम आदर्श हैं जो सदा प्रकाशमान और गतिशील हैं |
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वैसा ही एक आत्मसूर्य कूटस्थ है, जिसकी आभा निरंतर सदा हमारे समक्ष रहे, वास्तव में वह हम स्वयं ही हैं | उस ज्योतिषांज्योति आत्मज्योति के चैतन्य को निरंतर प्रज्ज्वलित रखें और अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को उसी में विलीन कर दें | वह कूटस्थ ही परमशिव है, वही नारायण है, वही विष्णु है, वही परात्पर गुरु है और वही परमेष्ठी परब्रह्म हमारा वास्तविक अस्तित्व है |
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जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उससे तो अच्छा है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दें | या तो यह देह ही रहेगी या लक्ष्य की प्राप्ति ही होगी जो हमारे जीवन का सही और वास्तविक उद्देश्य है | भगवान हमें सदा सफलता दें |
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ॐ तत्सत् ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
१० नवम्बर २०१७

Wednesday, 8 November 2017

सारे भौतिक प्रदूषणों का कारण मानसिक व वैचारिक प्रदूषण है ......

सारे भौतिक प्रदूषणों का कारण मानसिक व वैचारिक प्रदूषण है ......
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हमारा वैचारिक प्रदूषण ही सारे प्रदूषणों का कारण है | हमारे विचार, हमारा चिंतन, हमारी मानसिकता ही प्रदूषित हो गयी है, अतः प्रकृति हमारे से कुपित है | यही इस सभ्यता का सर्वनाश करेगा |
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हमारे विचार ही इस सृष्टि के समस्त घटनाक्रमों को संचालित कर रहे हैं | जैसा हम सोचते हैं, जैसे हमारे विचार हैं, वे ही घनीभूत होकर बाहर के विश्व में प्रकट हो रहे हैं |
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वास्तविक विकास आत्मिक विकास है | बड़ी बड़ी इमारतें और साफ़ सुथरी व चौड़ी सड़कें ही विकास की निशानी नहीं हैं | वास्तविक विकास है नागरिकों का चरित्र | वह शिक्षा अशिक्षा है जो व्यक्ति को चरित्रवान नहीं बनाती | हम दूसरों को ठगने, बेईमानी करने, व कामुकता का निरंतर चिंतन करते हैं, यह हमारा पतन है | यह भीतर का पतन ही बाहर परिलक्षित हो रहा है |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

दिल्ली का प्रदूषण .....

दिल्ली अब रहने योग्य नगर नहीं रहा है | पर जिनकी आजीविका वहीं है वे तो दिल्ली में ही रहेंगे | दिल्ली के चारों ओर नीम, पीपल, बड़ जैसे वातावरण को शुद्ध करने वाले वृक्षों की अति सघन वृक्षावली लगानी चाहिए | नगर के भीतर जहाँ भी संभव हो वहाँ नीम व पीपल जैसे वृक्षों को लगाना चाहिए | हर परिवार को अपने घरों में तुलसी के पौधे खूब लगाने चाहिएँ | निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम हो और सार्वजनिक वाहनों का अधिक से अधिक | सरकारी भूमि पर जहाँ खूब दिखावटी दूब और सजावटी बगीचे लगे हैं, के स्थान पर वातावरण को शुद्ध करने वाले वृक्ष लगाए जाएँ | धीरे धीरे युक्लिप्टस और गुलमोहर जैसे वृक्षों को हटा दिया जाए, और उनके स्थान पर नीम के पेड़ लगाए जायें | मंत्रियों और सांसदों के घरों में पीपल और नीम के सारे पेड़ कटवा दिए गए थे, उन्हें बापस लगाया जाए | तभी दिल्ली प्रदूषण मुक्त होगी, अन्यथा दिल्ली में सारे वाहन बंद कर सिर्फ तांगे चलाने पड़ेंगे |

सदा सफल हनुमान ....

अब तक के सारे ज्ञात और अज्ञात इतिहास और साहित्य के सर्वाधिक और सदा सफल यदि कोई पात्र हैं तो वे हैं श्री हनुमान जी जिन्हें किसी भी काम में कभी भी कोई असफलता नहीं मिली| वे सदा सफल रहे| इतना ही नहीं उन्होंने अपने आराध्य देव भगवान श्रीराम के प्रति जितना प्रेम और सेवाभाव अपने निज जीवन में व्यक्त किया उतना अन्य कोई भी नहीं कर पाया|
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इसीलिये वे स्वयं सदा पूज्य हैं| भारत में सर्वाधिक मंदिर भी श्री हनुमान जी के ही हैं| उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि हम भगवान से सदा निरंतर जुड़े रहें| वे स्वयं भी भगवान ही हैं| उनकी जय हो|
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मनोजवं मारुत तुल्यवेगं जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं |
वातात्मजमं वानर यूथ मुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
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हनुमान जी के चरित्र में तीन गुण ऐसे हैं जिन का दस लाखवाँ भाग भी यदि किसी को उपलब्ध हो जाए तो वह भगवान श्री राम को पा सकता है| वे गुण हैं ----
(1) पूर्ण प्रेम|
(2) पूर्ण समर्पण|
(3) पूर्ण सेवा|
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हे हनुमान जी, आप हमारे रक्षक हैं| सब तरह के विक्षेप, आवरण व बाधाओं से हमारी रक्षा करो|
हमें अपनी परम प्रेम रूपा पूर्ण भक्ति दो| अन्य किसी भी तरह की कोई कामना और विकार हमारे में ना रहे|
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हमारे राष्ट्र की रक्षा करो| किसी भी तरह के असत्य और अन्धकार का अवशेष हमारे राष्ट्र में ना रहे| यह राष्ट्र पूर्णतः धर्मनिष्ठ और अखंड हो| यहाँ रामराज्य पुनश्चः स्थापित हो|
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हमारा अस्तित्व राममय हो| किसी भी तरह की पृथकता ना हो|
ना मैं रहूँ न कोई मेरापन रहे, सिर्फ तुम रहो और मेरे प्रभु श्री राम रहें|
श्री राम, राम, राम, राम, राम, राम ||
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कहइ रीछपति सुनु हनुमाना, का चुप साधी रहेहु बलवाना|
पवन तनय बल पवन समाना, बुद्धि बिबेक बिज्ञान निधाना |
कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होय तात तुम पाहि ||
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* शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्‌॥1॥

भावार्थ:-शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥

* नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥2॥

भावार्थ:-हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥

* अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3॥

भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥3

भगवान की परम कृपा ही भारत से भ्रष्टाचार को मिटा सकती है .....

भगवान की परम कृपा ही भारत से भ्रष्टाचार को मिटा सकती है, यह किसी मनुष्य के वश की बात नहीं है .....
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भारत में नोटबंदी के क्रांतिकारी निर्णय का एक वर्ष पूर्ण हो गया है| यह देशहित में एक नए युग का प्रारम्भ था| व्यक्तिगत रूप से तो पास में पैसा नहीं होने का आनंद आया| अनाप-शनाप पैसा होता तो मुझे भी बहुत अधिक पीड़ा होती| कैसे भी कम पैसों से काम चलाया पर कोई शिकायत नहीं है| कम पैसे में काम चलाना सिखाने के लिए मैं इस नोटबंदी की घटना का आभारी हूँ|
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जो लोग नोटबंदी को लूट बताते हैं उनके लिए 2g, 3g, coal-gate, और cw घोटाले तो सिर्फ हाथ की सफाई थे|
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कटु सत्य तो यह है कि भारत की नौकरशाही यानि ब्यूरोक्रेसी ही सबसे अधिक भ्रष्ट है जिस पर लगाम लगाना असंभव है| अब तो न्यायपालिका भी भ्रष्ट हो गयी है| भारत की सबसे बड़ी समस्या ही ऊपर के स्तर पर छाया भ्रष्टाचार है| यह भ्रष्टाचार वर्त्तमान व्यवस्था की एक मजबूरी है|
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हर बड़ी राजनीतिक रैली में २०-२५ करोड़ रुपये खर्च होते हैं| चुनावों के लिए हर राजनीतिक दल को हज़ारों करोड़ रुपये चाहिएँ| इन रुपयों की व्यवस्था और प्रबंध उच्च सरकारी अधिकारी ही करते हैं| चाहे वे परजीवी हों पर इन भ्रष्ट अधिकारियों की आवश्यकता हर राजनीतिक दल को होती है| ईमानदारी दिखाने के लिए पैसा विदेशी बैंकों में जमा करा दिया जाता है| भारत में उच्चतम स्तर पर वे ही अधिकारी राज करते हैं जो जितने अधिक भ्रष्ट व कुटिल होते हैं, क्योंकि व्यवस्था ही ऐसी है, जिसे वर्त्तमान परिस्थितियों में बदलना असंभव है|
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यह भ्रष्टाचार भारत को अंग्रेजी शासन व्यवस्था की देन है जिन्होनें भारत को लूटने के लिए ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया| अंग्रेज़ी शासन व्यवस्था से यह भ्रष्टाचार हमें विरासत में मिला जो वर्तमान व्यवस्था में और भी कई गुणा अधिक बढ़ गया है|
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भगवान की परम कृपा ही भारतवर्ष से भ्रष्टाचार को मिटा सकती है, यह किसी मनुष्य के वश की बात नहीं है|

Tuesday, 7 November 2017

"समत्व" कोई संकल्प मात्र नहीं, भगवान की परम कृपा का फल है .....

"समत्व" कोई संकल्प मात्र नहीं, भगवान की परम कृपा का फल है .....
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने "समत्व" को योग बताया है| यह "समत्व" कहने को तो सब से आसान व सरल शब्द है, पर इसे निज जीवन में अवतरित करना उतना ही कठिन है| समत्व की सिद्धि सिर्फ संकल्प मात्र से ही नहीं हो सकती, इस की सिद्धि अनेक जन्मों की तपस्या के उपरांत, भगवान की परम कृपा से ही होती है|
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समत्व ही समाधि है और समत्व ही ज्ञान है| समत्व में स्थित व्यक्ति ही ज्ञानी है, और समत्व में स्थित व्यक्ति ही समाधिस्थ है|
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भगवान कहते हैं .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||" २:४८

सर्वप्रथम तो इस श्लोक के शब्दार्थ पर विचार करते हैं, फिर आगे की चर्चा करेंगे|
शब्दार्थ ...... योगस्थः – योग में स्थित होकर, कुरु – करो, कर्माणि – अपने कर्म, सङ्गं – संग यानि आसक्ति को, त्यक्त्वा – त्याग कर, धनञ्जय – हे अर्जुन, सिद्धि-असिद्धयोः – सफलता तथा विफलता में, समः – समभाव, भूत्वा – होकर, समत्वम् – समता, योगः – योग, उच्यते – कहा जाता है|
योगस्थ होकर आसक्ति को त्याग कर समभाव से कर्म करने का आदेश भगवान यहाँ देते हैं, फिर समभाव को ही योग बताते हैं| यहाँ समझना कुछ कठिन है, फिर भी भगवान की कृपा से समझ में आ जाता है|
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भगवान फिर आगे आदेश देते हैं कि .....
"बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते |
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ||" २:५० ||
अर्थात (समत्व) बुद्धि युक्त मनुष्य यहाँ जीवित अवस्था में ही पुण्य और पाप दोनों का त्याग कर देता है| अतः तू योग (समत्व) में लग जा क्योंकि योग ही कर्मों में कुशलता है|
भगवान का यह आदेश भी भगवान की कृपा से समझ में आ जाता है|
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योगसुत्रों में भगवान पातञ्जलि द्वारा बताए "योगः चित्तवृत्तिनिरोधः" और गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए "समत्वं योग उच्यते" में कोई अंतर नहीं है, क्योंकि चित्तवृत्तिनिरोध से समाधि की प्राप्ति होती है जो समत्व ही है|
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"योगस्थ" होना क्या है ?
सारा कर्ताभाव जहाँ तिरोहित हो जाए, भगवान स्वयं ही एकमात्र कर्ता जहाँ हो जाएँ, जहाँ कोई कामना व आसक्ति नहीं हो, भगवान स्वयं ही जहाँ हमारे माध्यम से प्रवाहित हो रहे हों, मेरी समझ से वही योगस्थ होना है, और वही समत्व यानि समाधि में स्थिति है|
यही मुझे भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से समझ में आ रहा है| इसके आगे जो कुछ भी है वह मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०७ नवम्बर २०१७

Monday, 6 November 2017

भगवान का भक्त कौन है ????? .....

भगवान का भक्त कौन है ????? .....
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यह एक शाश्वत प्रश्न है कि भगवान का भक्त कौन है? इसका बड़ा सुन्दर और सटीक उत्तर भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही गीता के १८ वें अध्याय के ६५ वें श्लोक में दिया है| उन्होंने स्पष्ट कहा है .....

"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ||"


इस श्लोक की बड़ी अद्भुत व्याख्याएँ अनेक स्वनामधन्य महान आचार्यों ने की हैं| अतः मैं और कुछ भी नहीं लिखना चाहता| इतना ही अपनी सीमित और अल्प बुद्धि से कहूँगा कि ......

जिसके पास अपना स्वयं का मन ही नहीं रहा है, जिसने अपना मन भगवान को पूर्णतः समर्पित कर दिया है वही भगवान का सबसे बड़ा भक्त है, और वही भगवान को सर्वाधिक प्रिय है|

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

Sunday, 5 November 2017

भारत व पाकिस्तान, और भारत व चीन के मध्य, भविष्य में युद्ध की पूरी संभावना है ......

भारत व पाकिस्तान, और भारत व चीन के मध्य,  भविष्य में युद्ध की पूरी संभावना है .......
अमेरिका और उत्तरी कोरिया के मध्य तो कभी भी युद्ध नहीं होगा क्योंकि इसका दुष्परिणाम दोनों को पता है | पर भारत और पकिस्तान, व भारत व चीन के मध्य भविष्य में युद्ध की पूरी संभावना है |
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अपनी जिहादी विचारधारा के कारण पकिस्तान भारत को कभी भी सुख शान्ति से नहीं रहने देगा, क्योंकि पाकिस्तान का अघोषित लक्ष्य ही भारत को नष्ट कर पाकिस्तान में मिलाना है |
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चीन ने तिब्बत पर अधिकार उसके जल-संसाधनों के कारण ही किया है जिन्हें वह चीन की ओर मोड़ना चाहेगा | यह भारत कभी भी सहन नहीं कर पायेगा और उसे चीन से एक निर्णायक युद्ध लड़ना ही होगा, अन्यथा पूरा उत्तरी भारत एक मरुभूमि में परिवर्तित हो जाएगा | हिमालय से भारत में आने वाली नदियाँ भारत की जीवनरेखा हैं | चीन अति गुप्त रूप से हिमालय के जल संसाधनों को चीन की ओर मोड़ने का अनवरत प्रयास कर रहा है | यह बात भारत का तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व अपनी अदूरदर्शिता के कारण कभी भी नहीं समझ पाया |
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चीन ने तिब्बत पर अधिकार किया इसका असली कारण वहाँ की अथाह जल राशि, और भूगर्भीय संपदा है, जिसका अभी तक दोहन नहीं हुआ है| तिब्बत में कई ग्लेशियर हैं और कई विशाल झीलें हैं| भारत की तीन विशाल नदियाँ ..... ब्रह्मपुत्र, सतलज, और सिन्धु ..... तिब्बत से आती हैं| गंगा में आकर मिलने वाली कई छोटी नदियाँ भी तिब्बत से आती हैं| चीन इस विशाल जल संपदा पर अपना अधिकार रखना चाहता है इसलिए उसने तिब्बत पर अधिकार कर लिया| हो सकता है भविष्य में वह इस जल धारा का प्रवाह चीन की ओर मोड़ दे| इस से भारत में तो हाहाकार मच जाएगा पर चीन का एक बहुत बड़ा क्षेत्र हरा भरा हो जाएगा|
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चीन का सीमा विवाद उन्हीं पड़ोसियों से रहा है जहाँ सीमा पर कोई नदी है, अन्यथा नहीं| रूस से उसका सीमा विवाद उसूरी और आमूर नदियों के जल पर था| ये नदियाँ अपना मार्ग बदलती रहती हैं, कभी चीन में कभी रूस में| उन पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों की सेनाओं में एक बार झड़प भी हुई थी| अब तो दोनों में समझौता हो गया है और कोई विवाद नहीं है|
वियतनाम में चीन से युआन नदी आती है जिस पर हुए विवाद के कारण चीन और वियतनाम में सैनिक युद्ध भी हुआ था| उसके बाद समझौता हो गया|
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चीन को पता था कि भारत से एक न एक दिन उसका युद्ध अवश्य होगा अतः उसने भारत को घेरना शुरू कर दिया| बंगाल की खाड़ी में कोको द्वीप इसी लिए उसने म्यांमार से लीज पर लिया| अब जिबूती में उसने अपना सैनिक अड्डा बना लिया है |
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भारत को तिब्बत पर अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए था| अंग्रेजों का वहाँ अप्रत्यक्ष अधिकार था| आजादी के बाद भारत ने भारत-तिब्बत सीमा पर कभी भौगोलिक सर्वे का काम भी नहीं किया जो बहुत पहिले कर लेना चाहिए था| सन १९६२ में बिना तैयारी के चीन से युद्ध भी नहीं करना चाहिए था| जब युद्ध ही किया तो वायु सेना का प्रयोग क्यों नहीं किया? चीन की तो कोई वायुसेना तिब्बत में थी ही नहीं| १९६२ के युद्ध के बारे बहुत सारी सच्ची बातें जनता से छिपाकर अति गोपनीय रखी गयी हैं ताकि लोग भड़क न जाएँ|
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भारत-चीन में सदा तनाव बना रहे इस लिए अमेरिका की CIA ने भारत में दलाई लामा को घुसा दिया| वर्त्तमान में

Saturday, 4 November 2017

यह Monkey Business क्या होता है ? .....

यह Monkey Business क्या होता है ? ......
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आजकल की सारी मार्केटिंग और स्टॉक मार्केट का धंधा एक Monkey Business यानि बंदरों का व्यापार ही है| एक व्यापारी एक गाँव में आया जहाँ बहुत सारे जंगली बन्दर थे, और घोषणा कर दी कि वह एक सौ रूपये में एक बन्दर खरीदेगा| कई लोगों ने सोचा कि यह पागल हो गया है, फिर भी लोभवश उन्होंने एक एक बन्दर पकड़ कर उस व्यापारी को बेच दिये| व्यापारी ने तुरंत नकद सौ सौ रूपये का भुगतान सब को कर दिया| यह समाचार आसपास के सारे गाँवों में फ़ैल गया| लोग जंगलों से बन्दर पकड़ पकड़ कर लाने लगे|
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अगले दिन उस व्यापारी ने घोषणा की कि आज से वह दो सौ रुपये का एक बन्दर खरीदेगा| सबको उसने नकद दो सौ दो सौ रुपयों का भुगतान देना शुरू कर दिया| लोगों ने पागलों की तरह बन्दर पकड़ने शुरू कर दिए|
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तीसरे दिन उसने घोषणा कर दी कि प्रति बन्दर अब वह पाँच सौ रूपये नकद देगा| लोगों ने ढूंढ ढूंढ कर सारे बन्दर बेच दिए, अब जंगल में एक भी बंदर नहीं बचा| लोग अगली घोषणा की प्रतीक्षा करने लगे|
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जब सारे बन्दर बिक गए तब उसने घोषणा की कि बंदरों के व्यापार में उसने खूब रुपये कमाए हैं अतः एक महीने के बाद वह प्रति बन्दर पूरे दो हज़ार रुपये नकद देगा, तब तक वह किसी काम से एक माह के लिए अन्य स्थान पर जा रहा है| एक माह के बाद लौटने का वचन देकर सारे बन्दर वह अपने मुनीम और नौकरों के भरोसे छोड़ गया|
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लोग चिंतित हो गए कि अब और बन्दर कहाँ से लायें| धीरे धीरे उसके नौकरों ने यह अफवाह फैला दी कि मुनीम जी दो नंबर में यानी Black में एक हज़ार रुपये में एक बन्दर बेचने को तैयार हैं| यह अफवाह सारे फ़ैल गयी| लोगों ने मुनीम जी के पास आना शुरू कर दिया| मुनीम जी का उत्तर होता कि चिंता मत करो, अभी तो मैं ब्लैक में एक हज़ार का एक बन्दर बेच रहा हूँ जिसके सेठ जी पूरे दो हज़ार दे देंगे| अंततः लाभ तो आपको ही है|
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लोगों ने अब पागलों की तरह बन्दर खरीदने शुरू कर दिए| जिनके पास रुपये नहीं थे उन्होंने ब्याज पर रुपये उधार लिए और खूब बन्दर खरीदे| जिन जिन लोगों ने बन्दर खरीदे वे सब उनको अच्छी तरह खिला-पिला कर सम्भाल कर रखते हुए सेठ जी के आने की प्रतीक्षा करने लगे|
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जिस दिन सेठ जी को आना था, उस दिन सेठ जी नहीं आये| लोग उनके मुनीम जी के पास गए तो पाया कि मुनीम जी और उनके सब नौकर गायब हो गए हैं| लोगों ने सारे ढूँढा, पर न तो सेठ जी मिले और न उनके नौकर|
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इस धंधे का पुराना नाम Monkey Business था, अब इसे Stock Market और Marketing कहते हैं| इस धंधे में कई लोग करोड़पति हो गए और कई लोग पूरे कंगाल| यह तो एक सूत्र यानि Formula है| सारी Marketing ऐसे ही होती है| अतः अपने विवेक से काम लें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!


रानी पद्मावती का अपमान हर हिन्दू का अपमान है .....

रानी पद्मावती का अपमान हर हिन्दू का अपमान है ......
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रानी पद्मावती का अपमान हर हिन्दू का अपमान है| रानी पद्मावती अकेली ही चितौड़ गढ़ की जौहर-बावड़ी के विराट अग्निकुंड में नहीं कूदी थीं, उनके साथ समस्त मातृशक्ति की हजारों हिन्दू महिलाऐं भी थीं जिन्होनें सामूहिक बलात्कार के इच्छुक नर पिशाचों से अपने धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिए जीवित ही अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राण देना स्वीकार किया|
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इन हज़ारों हिन्दू महिलाओं ने अपने विवाह के समय के सर्वश्रेष्ठ सुहाग वस्त्र पहिन कर, सुहागिनों का सा शृंगार कर, गीत गाते हुए, पुरोहितों से तिलक करवा कर हँसते हँसते अपने पति-परमेश्वर का स्मरण करते हुए जौहर-बावड़ी के अग्निकुंड में कूद कर धर्मंरक्षार्थ अपने प्राण देना स्वीकार किया, न कि आतताइयों की कुत्सित काम वासना का शिकार बनना| यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी गौरवशाली घटना थी| इस इतिहास को कालान्तर में भी अनेक बार दोहराया गया|
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ऐसी प्रातः स्मरणीया देवी के साथ एक आततायी लुटेरे नीच राक्षस का अपमानजनक काल्पनिक प्रणय प्रसंग और काल्पनिक आलिंगन-चुम्बन के दृश्य दिखाना समस्त हिन्दू जाति के धर्म और स्वाभिमान का अपमान है| लानत है हमारे ऊपर यदि हम ऐसे दृश्यों को कला के नाम पर चित्रण और प्रदर्शित करने की अनुमति दें|
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हिन्दुओं का अपमान करने वाले इन तथाकथित हिन्दू सेकुलर कुलकलंकियों और बिकी हुई विदेशी स्वामित्व की प्रेस वालों को यदि रोमांटिक दृश्यों का ही आनंद लेना है तो ऐसे दृश्य अपने परिवार की बुजुर्ग महिलाओं ...... अपनी दादी, माँ और बहिनों के साथ करें| इन्हें दूसरों के पूर्वजों के अपमान करने का कोई अधिकार नहीं है|
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यह विरोध सिर्फ राजपूत जाती का नहीं है, पूरे हिन्दू समाज का है| रानी पद्मावती सभी हिन्दुओं के लिए माता के समान है| अपनी माता को फिल्म में फूहड़ नृत्य कराते हुए और एक लुटेरे राक्षस से प्रणय और चुम्बन कराते हुए देखना हमारे लिए तो मृत्यु के सामान है|
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जिन हिन्दू नारियों ने धर्मारक्षार्थ अपना उच्चतम बलिदान दिया वे हिन्दू सभ्यता और संस्कृति की प्रतीक हैं, कोई मनोरंजन का साधन नहीं| हमारे लिए हमारा धर्म सबसे बड़ा है, न कि फूहड़ आत्मघाती मनोरंजन| अपने धर्म पर हो रहे इस मर्मान्तक प्रहार का प्रतिकार करें| भगवान हमारे धर्म व संस्कारों की रक्षा करे|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
०४ अप्रेल २०१७

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पुनश्चः :---  महाराणी पद्मिनी भाटियाणी सही नाम था, न कि रानी पद्मावती| जन्म सन १२८५ ई.| भाटी राजपूतों की बेटी थी इसलिए भाटियाणी थी| जन्म स्थान .. पूगल, बीकानेर| पिता का नाम रावल पुनपाल भाटी और माँ का नाम जामकँवर देवड़ी| भाई ... राजकुमार चरड़ा,राजकुमार लूणराव| मामा ...गोरा चौहान, और ममेरा भाई बादल चौहान| नाना ... राजा हमीर देवड़ा चौहान|
चितौड़ के राजा रावल रतन सिंह जी के साथ परिणय सन १३०० ई.के लगभग हुआ| महाराणी पद्मिनी ने अपने मान सम्मान की रक्षा के लिए लगभग १६ हज़ार क्षत्राणियों के साथ जौहर किया था| धूर्त शैतान नरपिशाच अल्लाउद्दीन खिलजी महाराणी पद्मिनी को छूना तो दूर, देख तक नही पाया था|
(स्त्रोत : विभिन्न लेख) (कहीं पर जन्म स्थान जैसलमेर भी लिखा है)

इंडोनेशिया का अम्बोन (Ambon) द्वीप ........

इंडोनेशिया का अम्बोन (Ambon) द्वीप ........
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मसालों में हम जायफल और जावित्री का जो उपयोग करते हैं वे इंडोनेशिया के अम्बोन द्वीप से आते हैं| वहाँ और भी अनेक मसाले प्रचूरता में होते हैं जिनके लिए यह और आसपास के कुछ अन्य द्वीप बहुत प्रसिद्ध हैं, पर पूरे विश्व में जायफल और जावित्री का सर्वाधिक उत्पादन अम्बोन द्वीप पर ही होता है|
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इस द्वीप के स्वामित्व के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों में अनेक संघर्ष और युद्ध हुए हैं| सबका एक ही लक्ष्य था .... मसालों की लूट| द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने इस द्वीप पर अपना अधिकार कर लिया था| अब तो यह इण्डोनेशिया के मालुकू द्वीपसमूह का एक हरा-भरा और उपजाऊ द्वीप है|
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जायफल और जावित्री ये दोनों एक ही वृक्ष पर होते हैं| मुख्य फल तो जायफल होता है, और उसके चारों ओर एक गहरे लाल रंग का जाल सा होता है, वह जावित्री होता है| दोनों की तासीर अलग अलग होती है|
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इससे कुछ कुछ मिलती जुलती जलवायु भारत के निकोबार द्वीप समूह में भी है जहाँ अब मसालों की खेती को वैज्ञानिक ढंग से विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है| पर अब भी हमें अधिकाँश मसालों का आयात ही करना ही पड़ता है|
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लौंग की बेल को सुपारी के वृक्ष पर चढ़ा कर लौंग उगाई जाती है| भारत में जो लौंग हमें मिलती है वह जन्जीवार से आयातित की हुई हल्की गुणवत्ता की होती है| श्रीलंका में सबसे अच्छी गुणवत्ता की लौंग होती है पर वह भारत आ ही नहीं पाती है|
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पहले ताड़ का खाद्य तेल (Palm oil) मलयेशिया से आयातित किया जाता था| पर अब तो भारत में ही इसका उत्पादन होने लगा है| भारत में निकोबार के कुछ द्वीपों में खूब ताड़ के वृक्ष लगाए गए हैं जो भारत में आवश्यक Palm oil को बनाने में पर्याप्त हैं|
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मसालों की खेती यदि वैज्ञानिक पद्धति से की जाए तो बहुत लाभदायक है|


०३ नवम्बर २०१७

Friday, 3 November 2017

मेरु शीर्ष ......

मेरु शीर्ष ......
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मेरुशीर्ष (Medulla Oblongata) मानव देह का सर्वाधिक संवेदनशील भाग है| मेरुदंड की समस्त शिराएँ यहाँ मस्तिष्क से जुड़ती हैं| पूरी देह का नियन्त्रण यहीं से होता है| इस स्थान की कोई शल्य क्रिया नहीं हो सकती| यहीं पर सूक्ष्म देहस्थ आज्ञा चक्र है|
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यह स्थान भ्रूमध्य की सीध में खोपड़ी में ठीक पीछे कि ओर होता है| जीवात्मा का निवास यहीं पर होता है| योगियों को यहीं पर सर्वव्यापी नादब्रह्म का श्रवण व सर्वव्यापी ज्योति के दर्शन होते हैं, जिसके लिए भ्रूमध्य में गुरु की आज्ञा से ध्यान करते हैं| मनुष्य की चेतना यहीं से नियंत्रित होकर ऊर्ध्वमुखी होती है| ब्रह्मांड कि ऊर्जा भी यहीं से प्रवेश कर के देह को जीवंत रखती है| इसी के ठीक थोडा सा ऊपर वह बिंदु है जहाँ हिन्दू शिखा रखते हैं| मनुष्य जीवन के सारे रहस्य यहीं छिपे हुए हैं|
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क्रियायोग साधना में योगी अपने गुरु की आज्ञानुसार गुरु प्रदत्त विधि से अपनी प्राण ऊर्जा को मानसिक रूप से सुषुम्ना पथ में मूलाधार चक्र से उठाकर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि व आज्ञा .... चक्रों को भेदता हुआ ऊपर-नीचे गमन करता है|
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आज्ञा चक्र के जागृत होने पर कोई रहस्य, रहस्य नहीं रहता|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

गिद्ध दृष्टी .....

गिद्ध दृष्टी .....
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बहुत अधिक ऊँचाई पर उड़ता हुआ गिद्ध जब अपनी गिद्ध-दृष्टी से भूमि पर पड़ी हुई मृत लाश को देखता है तो उस पर टूट पड़ता है, वैसे ही मनुष्य का मन भी एक गिद्ध है, जो विषय-वासनाओं का चिंतन करते हुए अपनी गिद्ध-दृष्टी से उनकी पूर्ति के अवसर ढूँढ़ता रहता है और अवसर मिलते ही उन पर टूट पड़ता है|
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ऐसे ही कई लोगों की गिद्ध-दृष्टी होती है जो दूसरों से घूस लेने, दूसरों को ठगने व लूटने को लालायित रहते हैं| ऐसे लोग बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं पर अन्दर उनके कूट कूट कर लालच व कुटिलता भरी रहती है|
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हे प्रभु, हम अपने विचारों के प्रति सदा सजग रहें और निरंतर आपकी चेतना में रहें| सब तरह के कुसंग, बुरे विचारों और प्रलोभनों से हमारी रक्षा करो|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

"संतुष्टि".... जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है .....

"संतुष्टि".... जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है .....
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सभी साधू-संतों का मैं पूर्ण सम्मान करता हूँ| भारत के सभी प्रमुख सम्प्रदायों के अनेक संत महात्माओं से मेरा सत्संग हुआ है| हर प्रमुख सम्प्रदाय में एक से बढ़कर एक विद्वान् व तपस्वी संत हैं| कोई छोटा-बड़ा नहीं है, सभी आदरणीय हैं| स्वभाव से मेरी रूचि वेदान्त व योग दर्शन में है, अतः आचार्य शंकर की परम्परा से स्वभाववश मैं सर्वाधिक प्रभावित हूँ|
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श्रुतियों को समझने योग्य बुद्धि तो भगवान ने इस जन्म में नहीं दी है, पर फिर भी जितना इस सीमित और अति अल्प बुद्धि में समा सकता है, उतना न्यूनतम अनिवार्य और आवश्यक ज्ञान भगवान ने अवश्य दिया है|
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मुझे पूर्ण संतुष्टि है| जितना भी भगवान ने मेरी पात्रता के अनुसार मुझे दिया है, उस से अधिक और कुछ भी मुझे नहीं चाहिए| यह संतुष्टि और संतोष ही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है| मेरा जीवन चाहे हिमालय जितनी बड़ी बड़ी कमियों से भरा हो पर मैं इसे सफल मानता हूँ क्योंकि भगवान ने मुझे अपना प्रेम और संतोष-धन यानि संतुष्टि दी है| और चाहिए भी क्या?

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

हम यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्ण अस्तित्व हैं .....

हम यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्ण अस्तित्व हैं .....
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हम यह देह नहीं, परमात्मा की सर्वव्यापकता हैं| परमात्मा के साथ वैसे ही एक हैं, जैसे महासागर में जल की एक बूँद| जल की यह बूँद जब तक महासागर से जुड़ी हुई है, अपने आप में स्वयं ही महासागर है| पर महासागर से दूर होकर वह कुछ भी नहीं है| वैसे ही परमात्मा से दूर होकर हम कुछ भी नहीं हैं|
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यह सृष्टि ..... प्रकाश और अन्धकार की मायावी लीला का एक खेल मात्र है| परमात्मा ने समष्टि में हमें अपना प्रकाश फैलाने और अपने ही अन्धकार को दूर करने का दायित्व दिया है| उसकी लीला में हमारी पृथकता का बोध, माया के आवरण के कारण एक भ्रममात्र है|
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हमारा स्वभाव परम प्रेम है| जब भी समय मिले शांत स्थिर होकर बैठिये| कमर सीधी ओर दृष्टि भ्रूमध्य में स्थिर रखिये| अपनी चेतना को इस देह से परे, सम्पूर्ण सृष्टि और उससे भी परे जो कुछ भी है, उसके साथ जोड़ दीजिये| हम यह देह नहीं, बल्कि सम्पूर्ण अस्तित्व हैं|
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प्रयासपूर्वक अपनी चेतना को कूटस्थ में यानि आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में रखिये| वहाँ दिखाई दे रही ब्रह्मज्योति और सुन रही प्रणव ध्वनि रूपी अनाहत नाद हम स्वयं ही हैं, यह नश्वर देह नहीं| हर श्वास के साथ वह प्रकाश और भी अधिक तीब्र और गहन हो रहा है और सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्माण्ड और सृष्टि को आलोकित कर रहा है| कहीं भी कोई असत्य और अन्धकार नहीं है| यह ज्योति और नाद हम स्वयं हैं, यह देह नहीं ..... यह भाव बार बार कीजिये| यह हमारा ही आलोक है जो सम्पूर्ण सृष्टि को ज्योतिर्मय बना रहा है| इस भावना को दृढ़ से दृढ़ बनाइये| नित्य कई बार इसकी साधना कीजिये|
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परमात्मा के संकल्प से यह सृष्टि बनी है| हम भी उसके अमृतपुत्र और उसके साथ एक हैं| जो कुछ भी परमात्मा का है वह हमारा ही है| हम कोई भिखारी नहीं हैं| परमात्मा को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| परमात्मा का संकल्प ही हमारा संकल्प है| प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य है|
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निरंतर भगवान का स्मरण करते रहो| जब भूल जाओ तब याद आते ही फिर स्मरण प्रारम्भ कर दो| याद रखो कि भगवान स्वयं ही अपना स्मरण कर रहे हैं| उन्हीं की चेतना में रहो| जैसे एक मोटर साइकिल की देखभाल करते हैं वैसे ही इस देहरूपी मोटर साइकिल की भी देखभाल करते रहो| यह देह एक motor cycle ही है जिसकी maintenance भी एक कला है, उस कला से इस motor cycle की maintenance करते रहो क्योंकि यह लोकयात्रा इसी पर पूरी करनी है|
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सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०२ नवम्बर २०१७