Thursday 1 June 2017

मेरा अपना स्वराज्य .....

मेरा अपना स्वराज्य .....
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परमात्मा का दिया हुआ एक मेरा अपना स्वराज्य है जिसमें किसी का भी हस्तक्षेप नहीं है| मैं अपने राज्य में बहुत सुखी हूँ| उस साम्राज्य में सारी सृष्टि .... सारी आकाश गंगाएँ, सारे चाँद, तारे, नक्षत्र और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| जो भी सृष्ट हुआ है, वह सब उस साम्राज्य के भीतर है| उस से बाहर कुछ भी नहीं है|

वह साम्राज्य भाव-जगत से भी परे कूटस्थ चैतन्य का है| जगन्माता के रूप में परमात्मा स्वयं उसका संचालन और रक्षा कर रहे हैं|
 

उस साम्राज्य में सिर्फ प्रेम ही प्रेम और आनंद ही आनंद है| परमात्मा सदा मुझे उसी चेतना में रखे जहाँ समस्त सृष्टि मेरा परिवार है, और समस्त ब्रह्मांड मेरा घर| वही मेरा संसार है| मेरा केंद्र सर्वत्र है, पर परिधि कहीं भी नहीं|
वहाँ कोई अन्धकार नहीं है, सर्वत्र प्रकाश ही प्रकाश है|


ॐ तत्सत् | ॐ श्री गुरवे नमः | ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत है ---- 'परमात्मा'|
    पुस्तकों से ज्ञान नहीं मिलता है| पुस्तकों से सूचना मात्र मिलती है| ज्ञान बाहर नहीं है|
    समस्त ज्ञान हमारे स्वयं के भीतर है जो परमात्मा की कृपा से ही अनावृत होता है|
    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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